कलावती रसोल्लासा गुणतुङ्गा व्रजे स्थिता।
श्रीविशाखाकृतं गीतं गायन्ति समाद्य ता मताः॥
गोविन्द-माधवानन्द-वासुदेवा यथाक्रमं।
(गौ. ग. दी. 288 श्लोक)
व्रजलीला में जो ‘कलावती’ हैं वे गौरलीला में ‘श्रीगोविन्द घोष’ हैं। ये उत्तर राढ़ीया शौक्रकायस्थ कुल में आविर्भूत हुए थे। अग्रद्वीप में इनका श्रीपाठ है। श्रीमाधव और श्रीवासुदेव घोष इनके ही भाई हैं।ये प्रसिद्ध सुकण्ठ कीर्तनीया थे—
सुकृति माधव घोष—कीर्तने तत्पर।
हेन कीर्तनीया नाहि पृथिवी-भितर॥
याहारे कहेन-वृन्दावनेर गायन।
नितयानन्द-स्वरूपेर महाप्रियतम॥
माधव, गोविन्द, वासुदेव—तिन भाइ।
गाइते लागिला, नाचे ईश्वर-निताइ॥
(चै.भा.अ. 5/257-259)
(सुकृतिशाली माधव घोष संकीर्तन में तत्पर रहते हैं। इन जैसा कीर्तन करने वाला पृथ्वी में नहीं है। आप श्रीनित्यानन्द और स्वरूप दामोदर के बहुत प्रिय है, सभी आपको वृन्दावन का गायक कहते हैं। श्रीमाधव, श्रीगोविन्द और श्रीवासुदेव यह तीनों भाई गाते हैं और नित्यान्द प्रभु नृत्य करते हैं।)
गोविन्द, माधव, वासुदेव—तिन भाइ।
याँ-सबार कीर्तने नाचे चैतन्य-निताइ॥
(चै.च.आ. 10/115)
(अर्थात् श्रीगोविन्द, श्रीमाधव और श्रीवासुदेव इन सब के कीर्तन में श्रीमहाप्रभु और श्रीनित्यान्द नृत्य करते हैं।)
गौड़ देश में प्रचार में आने के समय श्रीमन् नित्यान्द प्रभु के साथ श्रीवासुदेव घोष तथा श्रीमाधव गोष आए थे किन्तु गोविन्द घोष उस समय श्रीमन्महाप्रभु जी के पास नीलाचल में ही थे—
प्रभु-संगे रहे गोविन्द पाइया सन्तोष
(चै.च.आ 10/118)
ये श्रीगौरांग महाप्रभु जी की शाखा में गिने गए हैं।
श्रीवासुदेव घोष जी का तमलूक में , श्रीमाधव गोष जी का दांइहाट में एवं श्रीगोविन्द गोष का अग्रद्वीप में श्रीपाट (निवास स्थान) है। अग्रद्वीप के नज़दीक काशीपुर विष्णुतला में घोष ठाकुर का वास था। किसी-किसी का कहना है कि वैष्णवतला में इनका आविर्भाव स्थान है। श्रीगोविन्द घोष श्रीमन्महाप्रभु जी के साथ श्रीवास आंगन में, काज़ी दलन वाले दिन नगर संकीर्तन में तथा राघव भवन में हुए कीर्तन में संगी थे। इसके इलावा पूरी में रथ के आगे संकीर्तन कर रही सात-मण्डलियों में से चौथी मण्डली में ये मूल कीर्तनीया थे। तब मूल कीर्तनीया के पीछे गाने वाले अर्थात दोहार करने वाले थे-हरिदास (छोटे), विष्णुदास, राघव, माधव , तथा वासुघोष। इस मण्डली में श्रीवक्रेश्वर पण्डित जी ने नृत्य किया था।
इन्होंने श्रीमन्महाप्रभु जी के निर्देश से प्राप्त कृष्ण-शिला से अग्रद्वीप में श्रीगोपीनाथ विग्रह प्रकटित किए थे। श्रीमन्महाप्रभु जी के निर्देशानुसार श्रीगोविन्द घोष जी ने गृहस्थाश्रम स्वीकार किया था। ऐसा प्रवाद है अर्थात कहा जाता है कि उनकी स्री व पुत्र के स्वधाम गमन से भी बहुत चिन्तित हुए थे कि उनकी मृत्यु के बाद कौन उनका पिण्ड देगा तो उसी समय श्रीगोपीनाथ जी ने स्वप्न में गोविन्द घोष को कहा-“तुम चिन्ता मत करना, मैं पिण्ड दूँगा।“
जब श्रीगोविन्द गोष जी ने तिरोधान लीला की तो उससे अगले दिन श्रीगोपीनाथ जी ने उनका पिण्डदान किया था। आज भी श्रीगोविन्द घोष ठाकुर जी की अप्रकृत में श्रीगोपीनाथ जी पिण्डदान करते हैं।
चैत्र कृष्णद्वादशी तिथि में श्रीगोविन्द घोष ठाकुर जी का तिरोधान हुआ। श्रीवासुदेव गोष का कार्तिक शुक्ला द्वितीया में अप्रकट हुए।
श्रीगोविनद घोष ठाकुर जी द्वारा रचित पदावली –
(1)
प्राणेर मुकुन्द हे! कि आजि शुनिलू आचम्वित,
कहिते पराण याय, मुखे नाहि वाहिराय,
श्रीगौरंग छाड़िवे नवद्वीप॥
इहातो न जानि मोरा, सकाले मिलिनुँ गोरा,
अवनत माथे आच्छे वसि।
निझरे नयन झरे, बुक वहि धारा पड़े,
मलिन हैयाच्छे मुख शशी॥
देखिते तखन प्राण सदा करे आनचान,
सुधाइते नाहि अवसर।
क्षणके सम्वित हैल, तवे मुइ निवेदिल,
शुनिया दिलेन ए उत्तर॥
आमि त’ विवश हैया, तारे किछु ना कहिया,
धाइया, आइलुँ तुया पाश।
एइ त’ कहिलुँ आमि, ये करिते पार तुमि,
मोर नाहि जीवनेर आश॥
शुनिया मुकुन्द काँदे, हिया स्थिर नाहि बान्धे
गदाधरेर बदन हेरिया।
ए गोविन्द घोष कय इहा येन नाहि हय,
तवे मुञि याइमु मरिया॥
(2)
हेदे रे नदीयावासी कार मुख चाओ।
बाहु पसारिया गोराचाँदे फिराओ॥
तो सबारे के आर करिबे निज कोरे।
के याचिया दिवे प्रेम देखिया कातरे॥
कि शेल हियाय हाय कि शेल हियाय।
पराण पुतली नवद्वीप छाड़ि याय॥
आर न याइव मोर गोरांगेर पाश।
आर न करिव मोरा कीर्तन विलास॥
काँदये भकतगण बुक विदारिया।
पाषाण गोविन्द घोष ना याय मिलिया॥
स्रोत: श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज द्वारा रचित ग्रन्थ “गौर-पार्षद” में से