‘नित्यानन्द – प्रियभृत्य पंडित धनन्जय।
अत्यन्त विरक्त सदा कृष्ण प्रेममय ।। चै.च.आ. 11/31
श्रीमन्नित्यानन्द जी के प्रिय सेवक धनन्जय पंडित अत्यन्त विरक्त स्वभाव के थे एवं सदा कृष्ण प्रेम में मस्त रहते थे । श्रीनित्यानन्द प्रभु जी के प्रिय पार्षद श्री धनन्जय पंडित श्रीकृष्ण लीला में बलदेव जी के प्रिय व द्वादश गोपालों में से एक वसुदाम सरखा हैं। वसुदाम सरवा यश्च पण्डितः धनन्जयः। गौ०ग0 127
इनके आविर्भाव स्थान और माता पिता के परिचय के सम्बन्ध में मतभेद देखा जाता है। ये 1306 शकाब्दी में चैत्री शुक्ला – पंचमी को चट्टग्राम ज़िले के जाड़ग्राम में आविर्भूत हुये थे। इनके पिता का नाम श्री श्रीपति वन्द्योपाध्याय और माता का नाम श्रीमति कालिन्दी देवी था। इनकी पत्नी का नाम श्रीमति हरिप्रिया था। किन्तु ‘गौरांग माधुरी’ में इस सम्बन्ध में थोडा अलग रूप से वर्णन देखा जाता है। ‘गौरांग माधुरी’ में इस प्रकार लिखा है कि ये वीरभूम ज़िले के अन्नर्गत बोलपुर के निकटवर्ती सियानमुलुक ग्राम में आविर्भूत हुये थे। इनके पिता का नाम श्रीआदि देव वाचस्पति और माता जी का नाम श्रीमति दयामयी देवी था। श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद जी ने श्री चैतन्य चरितामृत के अनुभाष्य में लिखा है कि कोई कोई ऐसा कहता है कि श्री धनन्जय पण्डित की वास्तविक जन्मभूमि चट्टग्राम ज़िले के अन्तर्गत जाड़ग्राम में है।
वर्धमान जिले में मंगलकोट थाना व कैचर डाकघर के अन्तर्गत शीतलग्राम में ही श्री धनन्जय पण्डित का, प्रधान श्रीपाट था। काटोया रेलवे स्टेशन से 9 मील दूरी पर कैचर स्टेशन है। वहां से एक मील उत्तर-पूर्व कोण में शीतलग्राम है । । ऐसा भी कहा जाता है कि साँचड़ा-पांचडा ग्राम में एवं जलन्दी ग्राम में भी इनका श्रीपाट था जो कि वर्धमान जिले के मेमारी रेलवे स्टेशन से 4 मील दूरी पर अवस्थित है । ‘सातदेउले ताजापुर’ ग्राम। इसी सातदेउले ताजापुर ग्राम से 2 मील दूर साँचड़ा – पाँचड़ा ग्राम है। वर्धमान जिले से प्रायः 10 मील पूर्व में लोकनगर डाकघर के अन्तर्गत जालन्दी ग्राम है। श्री धनन्जय पण्डित का कोई वंश नहीं है। शीतल ग्राम में जो सब सेवक हैं वे सब इनके शिष्यों के वंशधर हैं। जलन्दी ग्राम में श्री संजय पण्डित का भी श्रीपाट विद्यमान है। कोई कहता है कि ये श्री संजय पण्डित श्री धनन्जय पण्डित के भाई थे और कोई 2 कहता है कि शिष्य थे।
‘श्रीगौड़ीय वैष्णव अभिधान’ में एवं ‘श्रीगौरांग माधुरी’ में श्री धनन्जय पंडित के गृहस्थ आश्रम की बात कही गयी है और उनकी पत्नी का नाम श्रीमति हरिप्रिया बताया गया है। और भी उल्लेख मिलता है कि ये बाल्यकाल से ही तुलसी जी को तीनों समय साष्टांग प्रणाम करते थे। छोटी उमर में विवाह होने पर भी ये कुछ दिनों के पश्चात ही तीर्थ पर्यटन के लिये निकल पड़े थे। इनके धनी पिता ने इनको रास्ते में खाने-पीने के लिये जो धन दिया था वह सारा ही इन्होंने श्रीमन्महाप्रभु जी के पादपद्मों में समर्पण कर दिया और भिक्षा का बर्तन हाथों में ले लिया था। ‘वैष्णव – वन्दना’ गीति में भी इस विषय का उल्लेख है, जो कि इस प्रकार से है – ‘विलासी वैरागी धन्दों पण्डित धनन्जय । सर्वस्व प्रभुरे दिया भाण्ड हाते लय।।’
श्री धनन्जय पण्डित जी जिन विग्रहों की सेवा करते थे, वे ‘श्रीगोपीनाथ’, ‘श्री श्रीनिताई गौरांग’ एवं ‘श्रीदामोदर’ इनके शीतल ग्राम के प्रधान श्रीपाट में विराजित हैं। श्रीमन्दिर से कुछ ही दूरी पर एक बाग है जिसमें प्रतिवर्ष माघ मास के मध्य में यह श्री विग्रह शुभ विजय करते (अर्थात जाते) हैं। इसी स्थान पर इनका तिरोभाव उत्सव भी सम्पन्न होता है। नवद्वीप में श्रीमन्महाप्रभु जी की संकीर्त्तन विलास लीला के समय ये भी कुछ दिन वहां रहे थे और लीला के संगी बने थे। वहां से शीतल ग्राम में वापस आते समय वे श्रीवृन्दावन धाम के दर्शनों के लिये गये थे। वृन्दावन जाने से पहले साँचड़ा – पाँचड़ा ग्राम में अपने सेवक शिष्य को सेवा में नियोजित किया था। साँचड़ा – पाँचड़ा गाँव में धनन्जय पण्डित के श्रीपाट का कोई चिह्न अभी देखने को नहीं मिलता। शीतल ग्राम में श्रीमन्दिर के प्रवेश मार्ग के बायीं ओर एक तुलसी वेदी है। वही श्री धनन्जय पण्डित की समाधि वेदी है। पाषण्डदलनवाना श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु जी के पार्षदों में भी पाषण्ड को दलन करने की शक्ति का प्रकाश देखने को मिलता है। श्री धनन्जय पण्डित ने शीतल ग्राम के बहुत से दस्युओं और पाषण्डियों का उद्धार किया था।
“धनन्जय पण्डित महान्त विलक्षण।
याँहार हृदये नित्यानन्द अनुक्षण।।
चै.भा.अ. 5/773
महान्त धनन्जय पण्डित जी विलक्षण हैं, जिनके हृदय में नित्यानन्द जी हमेशा विराजमान रहते हैं।
कार्तिक शुक्ला अष्टमी तिथि को श्री धनन्जय पण्डित गोस्वामी जी का तिरोभाव हुआ था।