श्रीअभिराम ठाकुर अत्यंत प्रभावशाली आचार्य थे। उन्होंने कई नास्तिक व वैष्णव धर्म के विरोधियों को भजन में लगाया व उनका उद्धार किया। उनके पास अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति थी। नास्तिक लोग उन्हें देख कर कांप जाते थे। वे इस प्रकार उन्मादित अवस्था में रहते थे जैसे नित्यानंद प्रभु उनमें प्रवेश कर गए हों।
यह श्रीनित्यानन्द जी के प्राण, द्वादश गोपालों में से एक, ब्रज के ‘ श्रीदाम’ सखा हैं—
पुरा श्रीदामनामासिदभिरामोऽधुना महान्।
द्वात्रिंशता जनैरेव वाह्यं काष्ठमुवाह यः॥
(गौ. ग. दी. 126 श्लोक)
हुगली ज़िले के अन्तर्गत थानाकूल कृष्णनगर में इनका निवास स्थान था। इनकी पत्नी का नाम श्रीमति मालिनी देवी था। अभिराम ठाकुर जी का श्रीपाट, जो कृष्णनगर में अवस्थित है, थाना या द्वारकेश्वर नदी के तट पर अवस्थित होने की वजह से इसे थानाकूल-कृष्णनगर के नाम से जाना जाता है। इनके निवास स्थान पर जो मन्दिर है, उस श्रीमन्दिर के द्वार पर एक बकुल का वृक्ष है। ये स्थान सिद्ध बकुलकुंज के नाम से जाना जाता है। अभिराम ठाकुर जी जब यहाँ आए थे तो सर्वप्रथम वे इसी वृक्ष के नीचे आकर बैठे थे। श्रीमन्दिर के सामने वाले तालाब को खोदते समय अभिराम ठाकुर जी ने यहाँ एक श्रीगोपीनाथ विग्रह पाया था। उसी समय से वह पुष्करिणी ‘ अभिराम कुण्ड’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त श्रीमन्दिर में श्रीब्रजबल्लभ (युगल) मूर्ति, श्रीशालग्राम और श्रीगोपाल मूर्ति भी विराजित हैं। श्रीअभिराम ठाकुर जी अत्यन्त तेजस्वी व शक्तिशाली आचार्य थे। श्रीनित्यानन्द प्रभु जी के आदेश से भक्ति धर्म प्रचार के समय उन्होंने बहुत से पाषण्डियों का उद्धार किया था—
अभिराम गोस्वामीर प्रताप प्रचण्ड।
याँरै देखी काँपे सदा दुर्जय पाषण्ड॥
नित्यानन्द आवेशे उन्मत्त निरन्तर।
जगते विदित याँर कृपा मनोहर॥
(भक्ति रत्नाकर)
[श्रीअभिराम गोस्वामी जी का बहुत तेज प्रताप है, जिनको देखकर दुर्जन और पाखण्डी सदा काँपते हैं। ये नित्यानन्द जी के आवेश में सदा उन्मत्त रहते हैं, जिनकी मनोहर कृपा से सारा जगत परिचित है।]
रामदास अभिराम—सख्य-प्रेमराशि।
षोलषांगेर काष्ठ तुलि’ ये करिल वाँशी॥
(चै. च. आ. 10/116)
[श्रीरामदास अभिराम जी सख्य प्रेम में प्रतिष्ठित थे। उन्होंने सोलह साङ्ग की एक काष्ठ को अर्थात इतनी बड़ी लकड़ी के टुकड़े को, जिसे 32 आदमी मिलकर उठा पाते हों, उठा कर वंशी की भान्ति धारण कर लिया था।]
श्रीचैतन्य चरितामृत के अनुसार 32 व्यक्तियों द्वारा ढोये जाने वाले तथा भक्ति रत्नाकर लिखितानुसार 100 से अधिक व्यक्तियों द्वारा ढोये जाने वाले एक वृहद् काष्ठ को इन्होंने प्रेमोन्मत्त अवस्था में उठा कर वंशी के समान धारण किया था—
शताधिक लोके यारे नारे चालाइते।
हेन काष्ठे वंशी करि धरिलेन हाते।
(भक्ति रत्नाकर 4/123)
[एक सौ लोग मिलकर जिसे हिला भी न पाते हों, उस लकड़ी को उन्होंने वंशी की भान्ति धारण कर लिया था।]
इस प्रकार की अलौकिक लीला के दर्शन से भक्तगण महाविस्मित हुए थे। इनके प्रणाम करने से विष्णुशिला या विष्णु अर्चा-विग्रह के अतिरिक्त अन्यान्य शिला वा मूर्ति फट पड़ती थी—ऐसी कहावत अभी तक प्रचलित है।
अवैष्णवगण भी इनका प्रणाम सहन नहीं कर सकते थे। श्रीनित्यानन्द जी के पुत्र श्रीवीरचन्द्र गोस्वामी और श्रीगंगा माता गोस्वामिनी इनका प्रणाम सहन कर पाई थीं—ऐसा ठाकुर रचित श्रीवीरभद्राष्टक में और गंगा स्तोत्र में उल्लिखित है।
श्रील अभिराम ठाकुर जी का एक अद्भुत जयमंगल चाबुक था। इस चाबुक के द्वारा वे जिसको भी मारते थे, वही प्रेम में उन्मत्त हो जाता था। एक दिन श्रीनिवासाचार्य जी अभिराम भवन में आए तो अभिराम ठाकुर जी ने तीन बार श्रीनिवास जी के शरीर में जयमंगल चाबुक का स्पर्श कराया। अभिराम जी की पत्नी मालिनी देवी जी ने अपने पति को श्रीनिवास जी के शरीर में चाबुक स्पर्श करने से मना भी किया था। कारण श्रीनिवास तब बालक थे और चाबुक के स्पर्श से वे प्रेमोन्मत्त हो जाते। श्रीनिवासाचार्य प्रभु अभिराम ठाकुर जी के अति प्रियतम, कृपा व स्नेह के पात्र थे। दीक्षित न होने पर भी वे शिष्य की तरह थे। वह जयमंगल चाबुक अभी भी मन्दिर के अन्दर सन्दूक में रखा हुआ है। अभिराम ठाकुर जी के सम्बन्ध में भक्ति रत्नाकर में इस प्रकार लिखा है—
अहे श्रीनिवास! कत कहिव तोमारे?
जीव उद्धारिते अवतीर्ण विप्रघरे॥
सर्वशास्रे पण्डित परम मनोरम।
नृत्य-गीत वाद्ये विशारद निरूपम॥
प्रभु नित्यानन्द बलरामेर इच्छाते।
करिल विवाह विज्ञ विप्रेर गृहेते॥
श्रीअभिराम पत्नी नाम श्रीमालिनी।
ताँहार प्रभाव यत कहिते न जानि॥
(भक्ति रत्नाकर 4/105)
[हे श्रीनिवास! आपको कहाँ तक बताऊँ, जीवों का उद्धार करने के लिए अभिराम जी विप्र के घर अवतीर्ण हुए। वे सर्वशास्रों के ज्ञाता व परम मनोहर थे। नृत्य, गीत और वाद्यों के बजाने में वह उपमा रहित विशारद थे। श्रीबलराम जी की इच्छा से उन्होंने श्रीनित्यानन्द दास नामक ज्ञानवान विप्र जी के घर में विवाह किया था। श्रीअभिराम जी की पत्नी का नाम श्रीमति मालिनी देवी था। उनका जो प्रभाव था, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।]
बहुत से लोग ऐसा कहते हैं कि बालिमठ इनके द्वारा प्रतिष्ठित है।
चैत्र कृष्ण-सप्तमी तिथि में अभिराम ठाकुर जी का तिरोभाव हुआ था, इसलिए इस तिथि को थानाकूल कृष्णनगर के महोत्सव में बहुत से लोगों का समागम होता है।
हमारे परमगुरु पादपद्म जगद्गुरु श्रीश्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद जी, गौड़ मण्डल की परिक्रमा के समय इसी श्रीपाट पर सपार्षद पधारे थे। श्रीपाट के सेवकों ने उस समय उनकी विशेष भाव से अभ्यर्थना व सम्वर्धना की थी।
स्रोत: श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज द्वारा रचित ग्रन्थ “गौर-पार्षद” में से