श्रीपाद वृन्दावन दास ब्रह्मचारी द्वारा
सर्वप्रथम मैं महानतम् दीक्षागुरु कृष्णकृपाश्रीमूर्ति परम पूज्यपाद श्री श्रीमत् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज के 73 वें आविर्भाव दिवस की वर्षगांठ समारोह के पावन अवसर पर उनके चरणकमलों में अनन्त कोटि साष्टांग दण्डवत् प्रणाम भेंट करता हूँ एवं जान व अनजान में उनके चरण कमलों में मेरे द्वारा किए गए अपराधों की क्षमा याचना करता हूँ श्री श्रीगुरु गौरांग व श्री श्रीराधाकृष्ण की शुद्ध भक्ति की प्राप्त हेतु उनकी अहेतुकी कृपा की भी प्रार्थना करता हूँ।
यद्यपि एक विदेशी होने के कारण में शास्त्रों एवं अपने गुरुदेव के लेखों एवं गंभीर भाषणों की महिमा का गुणगान करने में असमर्थ हूँ | तथापि उनकी अहेतुकी कृपा के बल से ही उनको समझना एवं तदनुसार जीवन यापन करना ही मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। मैं इतना दुर्भाग्यशाली हूँ कि भारतवर्ष से बाहर जन्म लेने के कारण अपने गुरु महाराज के अमृत एवं जीवन प्रदान करने वाले चरणकमलों का नित्य संग करने में असमर्थ हूँ ।
गुरुदेव ! मैं आपकी मधुर एवं प्रिय मुस्कान, जो कि मेरे पाषाण सदृश हृदय पर सदैव के लिए अंकित है, को कभी नहीं भुला सकता ।
सभी पापियों एवं अपराधियों में अधम
वृन्दावन दास