दण्डवत् प्रणाम,
विवाह के बाद पहली बार कृपा पत्र मिला । पत्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि आपने मुझे इस योग्य समझा कि मैं भी गुरुजी की महिमा लिखूँ । प्रभुजी सिर्फ आपकी आज्ञा पालन करने के लिये गुरुजी की महिमा की 2-3 घटनायें लिख रही हूँ –
यह घटना उस समय की है जब श्रीमन् महाप्रभु जी का 500वां प्रकट उत्सव श्री नवद्वीप धाम में हुआ । अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ द्वारा आयोजित सोलह कोसीय नवद्वीप धाम परिक्रमा के चौथे दिन जब परिक्रमा पार्टी के भक्त लोग चापाहाटी के गौर गदाधर मंन्दिर से विद्यानगर सार्वभौम भट्टाचार्य के भवन की ओर जा रहे थे कि अकस्मात् देखते ही देखते आकाश को घनघोर घटाओं ने घेर लिया। सभी लोग डर गए कि अभी मूसलाधार वर्षा होगी। भक्त लोग व पालकी में विराजमान श्रीमन्महाप्रभु जी उस समय ऐसे स्थान से गुज़र रहे थे जहाँ दूर दूर तक नज़र दौड़ाने से भी कोई आश्रय स्थल नहीं दिखाई दे रहा था। जिस समय यह घटना घटित हो रही थी उस समय श्री चैतन्य गौड़ीय मठाध्यक्ष आचार्यदेव परम पूज्य पाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज जी ‘हा गौरांग ! हा नित्यानन्द ! उच्चारण करते हुए प्रगाढ़ कीर्तन में रत थे। उन्हीं की ‘कृपा कटाक्ष से अचानक मेघ छिन्न भिन्न हो गए। हाँ, एक दो बूंदे अवश्य गिरीं, जिससे किसी को भी विघ्न नहीं हुआ, बल्कि बादलों के अकस्मात् उड़ने से जो तेज धूप पड़ रही थी वह मधुर हो गई जिसके परिणामस्वरूप उस दिन यात्रियों ने चार द्वीपों की परिक्रमा पूरी कर डाली। आश्चर्य का विषय यह था जब सभी धाम परिक्रमाकारी वापस मठ में पहुँचे तो वहाँ पर सुना कि उस क्षेत्र में मूसलाधार वर्षा हुई तथा ओले भी पड़े में तो इस लीला को देखकर हैरान रह गई। मैं तो यही समझती हूँ कि मेरे पतित पावन गुरुदेव की असीम कृपा व श्रीमन्महाप्रभु की कृपा के कारण ही सब कुछ हुआ। बाकी भगवान और उनके भक्तों की लीला को समझना व लिखना मेरी लेखनी से बाहर है।
2. आज से कोई दस ग्यारह साल पहले मुझे एक महीना ब्रजमण्डल परिक्रमा करने का सुअवसर मिला । उस समय साक्षात् मैंने यह Scene देखा । भगवान् श्री कृष्ण ने गोप बालक व ग्वालों के संग भोजन स्थली में जहाँ पर भोजन पाया था वहाँ पर कटोरी, चम्मच व थाली के निशान भी बने हुए हैं। वहाँ पर कथा करते 2 गुरु महाराज जी को भाव आ गया। उन्होंने कथा करते 2 यह कीर्तन करना शुरू कर दिया ‘यशोमती स्तन्यपायी श्री नन्दनन्दन, इन्द्रनीलमणि ब्रज जनेर जीवन ‘ करीब तीन Stanza बोलने के बाद वे आगे का कीर्तन कर नहीं सके। उन्होंने भाव में विह्वल होकर इतना रोदन किया कि 20-25 मिनट में भी अपने आप को Control नहीं कर पाये। मैंने श्रीपाद कुलदीप प्रभु जी को इशारा किया कि वे टेपरिकार्डर आगे कर दें। एक बार उन्होंने आगे किया तो श्रील गुरुदेव ने हाथ मार पीछे कर दिया । मेरी डरते – 2 हिम्मत नहीं हुई दुबारा कहने की। लेकिन फिर भी उनकी कृपा से मैंने भी जैसे तैसे टेपरिर्काडर आगे कर दिया और कैसेट रिकार्ड कर ली। आज भी मेरे पास वो कैसेट है। ऐसी अद्भुत लीला का वर्णन शब्दों में भी व्यक्त नहीं हो सकता ।
3.
6-7 साल पहले हमें जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा जाने का सुअवसर मिला। हमारी गाड़ी कई घंटे लेट थी। हम सब रथ यात्रा वाले दिन दोपहर 1 बजे पहुँचें। हमने गुरु महाराज जी का दर्शन किया। दोपहर तीन चार बजे रथ यात्रा का टाइम था। उसी समय गुरु महाराज जी ने हमें कहा कि आज हम लोग रात्रि की गाड़ी से Calcutta जाएँगे, वहाँ से सुबह अगरतला के लिए जहाज से जाना होगा। तुम लोग इतनी दूर से आए जगन्नाथ जी का दर्शन करने के लिए इतना पैसा खर्च कर के आए लेकिन आज जगन्नाथ जी का इच्छा नहीं है गुण्डिचा देवी के मन्दिर में जाने की । इसलिए शायद आज जगन्नाथ जी न जाएँ । इसलिए तुम लोग परम पूज्यपाद भक्ति प्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज के आनुगत्य में जगन्नाथ का दर्शन कल सुबह हमारे जाने के बाद कर लेना दोपहर को हमारे गुरु महाराज जी ने उस दिन कीर्तन किया और स्वयं मृदंग वादन किया। मुझे तो ऐसा लगा कि साक्षात् महाप्रभु मृदंग वादन कर रहे हैं। 10 मिनट मृदंग वादन करने के बाद अमरेन्द्र प्रभु ने मृदंग बजानी शुरू कर दी। सचमुच ही जगन्नाथ जी उस दिन रथ पर नहीं चढ़े और अगले दिन रथ यात्रा महोत्सव शुरू हुआ। उस दिन भी गुरु महाराज जीने कीर्तन किया हे गोपीनाथ ! हे गोपीनाथ !! वृन्दावने चलो हे गोपीनाथ !!!
4 छ: सात साल पहले की बात है में और अश्वनी जी मठ में गए। हम लोग राजधानी से कलकत्ता गए । तथा दोपहर 11 बजे के करीब मठ में पहुँचे। गुरु महाराज जी उस दिन काफी व्यस्त थे। वे बता रहे थे कि 2 मिनट पहले ही मैं Free हुआ हूँ यानि कि बहुत ज्यादा लिखने का काम था, वह पूरा किया। वे यह भी बता रहे थे कि मैं अभी किसी विशेष काम के लिए बाहर जा रहा हूँ। इस के बावजूद भी उन्होंने हमारा सारा हाल चाल पूछने के बाद अपने थैले में से पांच रुपए निकाले और मधु प्रभु से बोला कि इनके लिए रसगुल्ला लेकर आओ। यह लोग बहुत दूर से आया है। मधु प्रभु जी चार रसगुल्ला लेकर आये। गुरु महाराज जी ने स्वयं हम दोनों को रसगुल्ले का प्रसाद दिया और बोले यहीं पर बैठ कर खाओ। फिर बाद में गुरु महाराज जी ने कहा इनके लिए आलू का परांठा अच्छा घी देकर बनाओ और इनको खिलाओ। साथ में दही भी मंगवा कर दिया । फिर स्वयं तीसरी मंजिल से उतर कर कहने लगे इनके लिए पत्तल लगाओ । बहुत देर हो गयी इनको नाश्ता के लिए में समझती हूँ इतना निष्कपट निस्वार्थमय प्यार तो जागतिक पिता माता भी नहीं दे सकते ।
इति
वैष्णव चरणरज किंकरी
विष्णु प्रिया अग्रवाल
पहाड़गंज, नई दिल्ली ।