पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति प्रेमिक साधु महाराज जी ने कहा

आज की शुभ तिथि में भगवान श्री राम चन्द्र जी का आविर्भाव हुआ और आज ही के दिन हमारे आचार्य देव का आविर्भाव हुआ। भगवान का आविर्भाव और उनके भक्तों का आविर्भाव दोनों एक ही बात है। जैसे हमारे गुरु महाराज जी का आविर्भाव उत्थान एकादशी के दिन हुआ था, उस दिन सारी दुनियाँ के वैष्णव लोग इस व्रत का पालन करते हैं। इसी तरह हमारे शिक्षागुरु पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी का आविर्भाव श्री राम नवमी को हुआ । इस दिन भी सारी दुनिया के लोग इस व्रत का पालन करते हैं। भगवान तो कहते हैं कि ‘आचार्य मां विजानीयान्नावमन्येत् कर्हिचित्’ अर्थात मुझको ही आचार्य समझना उन्हें सामान्य मनुष्य मत समझना, शास्त्र तो गुरुदेव को सर्वदेवमाय कहते हैं। श्रीलविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर श्री गुरुदेवाष्टक में कहते हैं-

साक्षाद्धरित्वेन समस्त शास्त्रैरुक्तस्तथा भाव्यत एव सद्भिः ।
किन्तु प्रभार्यः प्रिय एव तस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम् ॥

अर्थात ये ठीक है कि गुरुदेव भगवान के अत्यन्त प्रिय होते हैं। यद्यपि तमाम शास्त्रों ने उन्हें साक्षात् हरि ही कहा है। एक बात मैं बता दूँ कि गुरु भी दो प्रकार के होते हैं- दीक्षा गुरु और शिक्षा गुरु । शिक्षा गुरु को भी सामान्य मत समझना । ये भगवान के अवतार होते हैं। शिक्षा गुरु भी दीक्षा गुरु की तरह श्रीकृष्ण का रूप होते हैं व अन्तर्यामी होते हैं। आज मैं इनके पास बैठा हूँ इसलिए प्रशंसा कर रहा हूँ, ऐसी बात नहीं । इनका अद्भुत चरित्र में तब से देख रहा हूँ जब से मैं मठ में आया हूँ। हरिनाम लेने के एक साल बाद जब मेरी दीक्षा हुई तो दीक्षा का हवन इत्यादि सब महाराजजी ने ही किया, इसके बाद कृपा करके महाराज जी ने मुझे सन्यास वेश भी दिया।

एक बार की बात है हम अपने गुरु महाराज जी के साथ व्रजमण्डल परिक्रमा कर रहे थे। परिक्रमा जब ब्रह्माण्ड घाट पर पहुंची तो गुरु महाराज जी ने कहा के “कृष्ण बल्लभ” भविष्यत् में आचार्य होगा। ये तब की बात है जब महाराज जी का सन्यास भी नहीं हुआ था। इसके इलावा अपने प्रकट काल में ही गुरु महाराज जी ने एक पत्र पूज्यपाद जगमोहन प्रभु को दिया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि मेरे देहान्त के बाद तीर्थ महाराज जी आचार्य होंगे। में देखता हूँ कि गुरु महाराज जी की पूर्ण कृपा है महाराज जी के ऊपर । शुरु से अभी तक मैंने जो इनका चाल चलन देखा तो उसमें मैंने कभी नहीं देखा कि इन्होंने कभी किसी के आगे किसी की भी निन्दा की हो । सर्वथा निष्कलंक जीवन है महाराज जी का।

कई वर्ष पहले की बात है एक बार आसाम में किसी ने गुरु महाराज जी को पूछा कि अभी तो प्रचार ठीक चल रहा है परन्तु भविष्य में मठ का क्या होगा ? मैंने अपने कानों से सुना कि गुरुजी ने कहा तुमको इसकी चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है मेरे बाद इससे भी ज्यादा प्रचार होगा । आज देखा जा रहा है कि गुरुजी का संकल्प पूरा हो रहा है। आज जैसा प्रचार महाराज जी के द्वारा श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की शुद्धभक्तिवाणी का हो रहा है ऐसा प्रचार भगवान के निजजन के इलावा, भगवान के अभिन्न प्रकाश के इलावा कोई नहीं कर सकता है। अन्त में मैं महाराज जी की शुभ- आविर्भाव तिथि में उनके श्रीचरणों में दण्डवत् प्रणाम करता हुआ अपनी कथा को विश्राम देता हूँ ।

परमपूज्य त्रिदण्डिस्वामी श्रीश्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी के ब्रह्मचारी अवस्था का नाम