आदरणीय वैष्णव चरणों में
दण्डवत् प्रणाम,
आपके आदेशानुसार संपूर्ण रूप से अयोग्यता होने पर भी श्री गुरु वैष्णव प्रसन्नता के लिये गुरु जी की महिमा कीर्तन लिख रहा हूं। सबसे पहले मैं श्रील गुरुदेव जी के चरण कमलों में असंख्य कोटी दण्डवत् प्रणाम करते हुये उनकी अहेतुकी कृपा प्रार्थना करता हूं । पूज्यपाद वैष्णववृन्दों के चरण कमलों की कृपा प्रार्थना करता हूँ। जिससे मैं गुरु जी की महिमा लिख सकूं । श्रील गुरु महाराज जी की सहनशीलता वृक्ष की सहनशीलता से भी कहीं अधिक देखी श्री नवद्वीप धाम परिक्रमा में श्रील गुरुदेव जी महाराज जी तेज धूप से तपती हुई सड़क पर अपने कोमल चरण कमल प्रसन्न मुद्रा में सड़क पर रखते हुये इस तरह चल रहे थे जैसे सड़क गर्म न हो जबकि हम लोग तपती सड़क पर एड़ियां उठा 2 कर डरते 2 कदम रख रहे थे और बहुत कष्ट सा महसूस कर रहे थे। गुरु जी की सहनशक्ति देखते हुये मन आश्चर्यचकित हो रहा था कि कैसे गुरु जी इतने वृद्ध होते हुये भी सुबह लगभग चार बजे से सात तक कभी – 2 रात तक लगातार पैदल चलते हुये जगह पर सभी तीर्थ स्थानों का दर्शन करते व कराते हुये तथा जगह की महिमा बताते हुऐ बिल्कुल शान्त भाव से चल रहे थे । न कोई थकावट का भाव चेहरे के ऊपर, न कोई थकावट से परेशानी | भक्तों के प्रार्थना करने पर भी कि आपके लिये वाहन की व्यवस्था है, आप वाहन पर चलिये । लेकिन गुरु जी हमेशा अनिच्छा प्रकट करते थे। इसी तरह श्री वृन्दावन धाम में गर्म रेत पर चलते 2 जब बार- 2 गुरु जी के चरण कमलों में काटें चुभ जाते तो गुरु जी कभी दुःख नहीं मानते थे बल्कि कहते कि यह वृन्दावन की गोपीयों के चरणों की धूलि है। यह कार्ट लगने से हमारे स्कून में प्रवेश करेगी और हमें कृष्ण प्रेम भक्ति
घनौली, रोपड़ ( पंजाब ) प्रदान करेगी। इससे हमारा मंगल ही है।
गुरुजी को कभी हमने गुस्सा होते नहीं देखा मेरे जैसे अयोग्य पतित शिष्य को भी गुरु जी ने श्रीचैतन्य महाप्रभुजी की भांति हमेशा प्यार से समझा-2 कर अच्छा बनाने के लिये प्रेरणा दी। ज्यादातर गुरु जी का प्रसाद व सोना कभी भी ठीक समय पर नहीं होता, तब गुरु जी को विचलित होते नहीं देखा। गुरु जी को ज्यादातर विश्राम के लिये भी समय नहीं मिलता। जब भी देखो गुरु जी मिलने आये व्यक्ति, शिष्य या गृहस्थ भक्त, सब साथ- प्रेम पूर्वक बात करते रहते हैं अपने शरीर की, स्वास्थ्य की चिन्ता छोड़ कर । जब कोई गुरु जी से इस सम्बन्ध में प्रार्थना करता कि आप के लिये विश्राम अति आवश्यक है तो गुरु जी हमेशा यही कहते हैं कि हरि कथा कहते – 2 प्राण वायु निकल जाये तो अच्छा है। यह तो अच्छा है कि लोग हर समय मुझे हरि कथा में लगाये रहते हैं। इसी तरह गुरु जी हरिनाम संकीर्तन का प्रचार करने के लिये कितने तरह के कष्ट सहते हुये भी गांव-गांव में, शहर- 2 में जाकर हरिनाम संकीर्तन का प्रचार करते हैं। जब कि व्यस्थापक गुरु जी के रहने की व प्रसाद इत्यादि की व्यवस्था अच्छी तरह से नहीं कर पाते, तब भी गुरु जी अपने शरीर व स्वास्थ्य की चिन्ता छोड़ कर खूब उत्साह के साथ जगह 2 जाते हैं, नगर संकीर्तन करते हैं व हरि कथा कहते हैं। 1996 में अमृतसर में दिन भर कीर्तन प्रवचन करने पर रात्री विश्राम के समय बाहर में जगराता होने पर गुरु जी रात भर सो नहीं सके। तब भी अगले दिन गुरु जी के उसी तरह से संकीर्तन व प्रवचन किया जैसा प्रतिदिन करते हैं।
गुरु जी की दयालुता के सम्बन्ध में लिखते समय मुझे ऐसा अनुभव होता है कि सर्वोतम दया प्रत्येक जीव को श्री भगवान के सेवा में लगाने के लिये गुरु जी तन मन व प्राणपन से चेष्ठा करते हैं और योग्य अयोग्य जीवों को उनके स्थान पर जा जाकर खींच लेते हैं। गुरु जी की दया असीम है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जी की भाति सर्वोतम दया बांटते हुये हम ने पतित पावन श्रील गुरु महाराज जी को कई बार नगर संकीर्तन जुलूस में “पैर पकड़ के बोलता हूं – गौरहरि बोलो भाई” कीर्तन कहते हुये सुना । इससे बड़ी दया गुरु जी की क्या होगी कि श्री भगवान का आविर्भाव विशेष होते हुए भी अत्यधिक दीनता प्रकट करते हुये जनसाधारण के बीच में नृत्य कीर्तन करते हुये पुकार पुकार कर कहते हैं कि “हरि बोलो कृष्ण बोलो’ राधा कृष्ण बोल बोल, बोलो रे सारे” कि हे जीव एक बार तो राधे कृष्ण बोलो गौर हरि बोलो आपका अपने आप निस्तार हो जायेगा। आत्मा की दवाई हरिनाम देने के साथ-साथ गुरु जी अपने आश्रित के दुःख देख कर, दया परवश शारीरिक रोग की दवाई भी बता देते हैं।
एक बार मुझे बवासीर हो गई, वह भी ऐसी कि बड़े डाक्टरों को दिखाने बहुत सी देसी दवाईयाँ करने पर भी ठीक नहीं हुई । आखिर डाक्टर साहिब ने मुझे आप्रेशन के लिये बोल दिया। गुरु जी का उन दिनों प्रोग्राम भटिण्डा में चल रहा था। मैं गुरु जी के दर्शन हेतु भटिण्डा गया। गुरु जी के कमरे में प्रवेश करते ही गुरु जी ने हालचाल पूछे तो मेरे मुख से निकल गया, गुरु जी मुझे Piles हो गयी है। गुरु जी ने मुझे और कुछ न पूछ कर कागज पर Aescules HIP tab & Ointment लिख कर दे दिया और Oint- ment लगाने का तरीका भी बता दिया। मेरे हृदय में गुरु जी के प्रति ऐसा विश्वास था कि में निश्चिंत तौर पर गुरु जी के दोबारा दर्शन मिलने से पहले पहले ठीक हो जाऊंगा और हुआ भी ऐसा ही। उसके बाद जब चण्डीगढ़ में गुरु जी का प्रोग्राम हुआ और मुझे दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । तब तक मैं बिल्कुल ठीक हो चुका था। जब मैंने गुरु जी को इस सम्बन्ध में बताया और बात-2 पर दुबारा गुरु जी से दवाई के सम्बन्ध में बात की तो मालूम पड़ा कि मरहम में जैसे बताया था उसके विपरीत ही लगाता रहा। तब भी आराम हो गया यह है गुरु जी की लीला हे एवं दया ।
इसी तरह मैंने और भी कई बार गुरु जी को कई भक्तों को कोई 2 दवाई बताते हुये देखा । हमारे गुरु पादपद्म की अधिक दयालुता तो ये है कि अपने हर मठ में सत्संगी श्रद्धालुओं के रहने व खाने-पीने की संपूर्ण व्यवस्था की होती है। सत्संग का श्री वृन्दावन धाम परिक्रमा व श्री नवद्वीप धाम परिक्रमा एवं श्री जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा महोत्सव आदि सब की व्यवस्था उत्तम रूप से करते हैं। केवल मात्र इसलिये कि जैसे भी हो सके व्यक्ति भगवान की शरण में आयें। वे भगवान के उन्मुख हो सकें। इस तरह की व्यवस्था नहीं होने पर जनसाधारण सत्संग के सुयोग से व तीर्थ भ्रमण के सुयोग से वंचित रह जाते । भक्ति जो केवल भक्त संग से ही मिलती है। वह संग का अवसर भी गुरु जी भक्तों को साथ लेकर गांव- 2, शहर 2 में जाकर जनसाधारण को प्रदान करते हैं। अतः अपना संग प्रदान करना भी गुरु जी की अपार दयालुता का प्रतीक है। एक बार जब हमारी माता जी जीवन की आखिरी सीढ़ियाँ पार कर रही थी और लुधियाना में Doc- tor ने उनके जीवन की आशा के लिये साफ मना कर दिया था। तब हमने सोचा कि गुरु जी लुधियाना में हैं, अच्छा हो कि माता जी को गुरु जी के दर्शन करा लें। हम माता जी को Van से लेकर मन्दिर गये । जब ऊपर जाकर गुरु महाराज जी को माता जी के बारे में बताया तो गुरु जी ने कहा- “माता जी का दर्शन मिलेगा ?”
हम तो माता जी को गुरु जी के दर्शनों के लिये लेकर आये थे परन्तु गुरु जी के ऐसा कहने पर हमारा माथा गुरु जी के चरणों में झुक गया उनकी दीनता देखकर | दयालुता के बारे में क्या कहें, गुरु जी ने खुद ऊपर मंजिल के से नीचे आकर माता जी को दर्शन दिया, नृसिंह मन्त्र किया माता जी के सामने तथा माता जी के मुख में तुलसी दल दिया और उनको आशीर्वाद भी प्रदान किया। इस तरह देखी जी का असीम दयालुता व दीनता ।
गुरु जी सभी प्राणियों में अपने आराध्य देव का प्रकाश दर्शन करते हैं इसलिये उनको सर्वोत्तम मंगल (विमुख जीव को भगवान के सन्मुख करना ) के लिये अहेतुक भाव से 24 घण्टे में से 24 घण्टे ही लगे रहते हैं। Forners कहीं इस धन से वंचित न रह जायें अतः उनके मंगल के लिये एवम् अपने गुरु वर्ग की आज्ञा पालन करने के लिये गुरु जी विदेश भी गये हुये थे । यद्यपि उनका वृद्ध शरीर इतनी कठिन तपस्या की आज्ञा नहीं टेना नब भी वे अपने शरीर की चिन्ता छोड़ कर सब जगह सब जो का (स्थावर जंगम् ) मंगल विधान करने के पिंजाने हैं। गुरु जी ने प्रत्येक मठ में शुभ तिथियों पर की व्यवस्था की है ताकि जीव भगवान का महाप्रसाद पाकर इस भवसागर से पार हो सकें। जीवों की दुर्दशा को डेन्वने हुये गुरु जी ने कई शुभ तिथियों पर कई मठों में भगवद्- लीला प्रदर्शनियों एवम् शाकियों की भी व्यवस्था की है ताकि भगवान की अद्भुत लीलायों को देख कर एवम् उनकी अपने भक्तों पर कृपा देख कर जीव आकर्षित हो सकें। श्रील गुरु महाराज जी का जीवन चरित्र इतना पवित्र है कि वे हर मुहूर्त में भगवान की सेवा व भक्तों की सेवा में लगे रहते हैं। उनका हर जीव में अपने इष्ट देव के दर्शन करने के कारण ही, किसी के प्रति भी उन्हें विषयों से सम्बन्धित बात करते हुये नहीं देखा, हमेशा कृष्ण भक्ति से सम्बन्धित बातें करते हुये ही देखा । इससे ये प्रमाणित होता है कि श्रील गुरु महाराज जी का राग, विषयों में न होकर भगवान में है। हमने उनको कभी भी किसी की निन्दा व आलोचना करते हुये भी नहीं देखा । इससे भी यही समझा जायेगा कि उनका किसी के प्रति शत्रु भाव नहीं है। मनुष्य अथवा पशुओं के प्रति भी हमने कभी उनमें हिंसा भाव नहीं देखा। गुरु जी के सेवक गुरु जी के लिये Good Knight Machine लगा देते हैं। गुरु जी उसमें हमेशा अनिच्छा प्रकट करते हैं। वे हमेशा मच्छरदानी लगाते हैं जैसे किसी छोटे से छोटे प्राणी को कोई कष्ट हो, वह हमेशा यही कोशिश करते हैं।
एक बार मैं काकरोजों से अत्यंत दुःखी होकर जैसे मुझे उनको मारने में पाप नहीं हो, गुरु जी सलाह लेने के लिये गया तो गुरु जी ने सबसे पहले मुझे यही बोला कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है अतः इसका नतीजा तुमको अवश्य भुगतना पड़ेगा। गुरु जी ने कहा- हां, हल्दी डालो ये भाग जायेंगे। गुरु जी का दर्शन ही कृष्णमय है इसलिये यह अच्छा है वह बुरा है, ऐसा भाव गुरु जी का है ही नहीं। वह सबको समान भाव से प्यार करते हैं। गुरु जी का चित्त हमेशा भगवान की कथा कीर्तन में सन्लग्न रहने के कारण हमेशा परम शान्त रहता है।
गुरु जी आत्म प्रतिष्ठित हैं। हमने जब से गुरु जी का संग किया है कभी भी उन्हें Un-Balanced नहीं देखा । चित्त की चंचलता विषयों में अभिनीवेष होने की मात्रा पर निर्भर करती है। विषयों में चित्त जितना सलंग्न रहेगा उतना चंचल रहेगा। परन्तु गुरु जी का जीवन 24 घण्टे में से 24 घण्टे ही भगवान की सेवा के लिये है इसलिये वह परम शांत हैं। गुरु जी से तरह तरह के व्यक्तियों द्वारा तरह-तरह के प्रश्न पूछने पर भी गुरु जी उसका शास्त्र युक्ति द्वारा सुन्दर तरीके से उत्तर देते हैं। हर व्यक्ति के दिल में बात बिठा देते हैं, कभी नाराज नहीं होते। गुरु जी अपने को आत्मा समझते हैं और आत्म धर्म भगवान की सेवा में मन, इन्द्रिय, शरीर व बुद्धि से नियुक्त रहते हैं इसलिये परम शांत रहते हैं। गुरु जी कभी-कभी भाषण में भी कहते हैं- “मेरा शरीर तो बंगाल का है।” कहने का भाव वह अपने शरीर को अपने से अलग समझते हैं। प्रचार कार्यक्रम में बहुत शारीरिक असुविधा होने पर भी वे कभी उत्तेजित अथवा अंशात नहीं होते । वे सर्वथा अभिमान शून्य हैं। सर्वश्रेष्ठ होते हुये भी छोटे-2 जीवों को भी सम्मान देते हैं और हरिनाम संकीर्तन के लिये कहीं भी जाने में संकोच नहीं करते । अभिमान शून्य होने के कारण भी उनको कभी गुस्सा होते हुये नहीं देखा ।
अन्त में मैं यही कहूंगा कि तमाम गुणों की खान हमारे गुरु जी ।
वैष्णव दासानुदास
पुरुषोत्तम दास सेखरी
घनौली, रोपड़ (पंजाब)