पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी भक्ति सर्वस्व निष्किंचन महाराज जी द्वारा

कृष्ण कृपा श्रीमूर्ति भक्तिबल्लभ तीर्थ महाराज, अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ संस्थान (पंजीकृत) के प्रधान आचार्य हैं। वे राम नवमी 12 बैशाख, 25 अप्रैल 1924 को आसाम के ग्वालपाड़ा नामक स्थान में प्रकट हुए। उनके पिता का नाम श्री धीरेन्द्र कुमार गुहराय तथा माता का नाम श्रीमती सुधांशुबाला गुहराय था। इनके बचपन का नाम कामाख्या चरण था। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम. ए. किया।

बचपन से ही से शान्त, गंभीर एवं सांसारिक कार्यकलापों से विरक्त थे । सरकारी पद हेतु नियुक्ति पत्र प्राप्त करने पर भी इन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया तथा उस समय अपने गुरुदेवजी के परामर्श पर भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा लिखित ‘जैवधर्म’ का अध्ययन किया था जिससे आपके सारे संशय समाप्त हो गये थे । अन्तत: आपने अखिल भारतीय चैतन्य गौड़ीय मठ के संस्थापकाचार्य नित्यलीला प्रविष्ट ॐ 108 श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज के पवित्र चरणों में, श्री श्यामानन्द गौड़ीय मठ में सन् 1947 में स्वयं को समर्पित कर दिया।

तेजपुर कालेज (आसाम) के प्रधानाचार्य ने श्रील आचार्य देव के बारे में एक बार कहा था कि वे इन्हें पिछले 40-50 वर्षों से जानते हैं परन्तु उन्होंने उनके जीवन में कोई त्रुटि नहीं पाई क्योंकि वे आचरणवान प्रचारक हैं अर्थात वे अपने दिए उपदेशों पर पहले स्वयं आचरण करते हैं और तब प्रचार करते हैं। अपने गुरुदेव के प्रति आपकी निष्ठा अद्वितीय है। आप अपने गुरुदेव जी द्वारा 1961 में त्रिदण्डि सन्यासी के रूप में दीक्षित हुए तथा त्रिदण्डिस्वामी श्रीमत् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज के नाम से जाने गए।

वे सन्यासियों एवं ब्रह्मचारियों के साथ पूरे वर्ष के दौरान भारतवर्ष के हर कोने की यात्रा पर रहते हैं तथा बिना किसी जाति मत एवं धर्म के भेदभाव से आत्मा की उन्नति अर्थात भगवान श्री कृष्ण में प्रेम की प्राप्ति के संबंध में भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के संदेश को, जो कि आत्म धर्म’ ‘सनातन धर्म,’ ‘वैष्णव धर्म’, या ‘भागवत धर्म’ के रूप में जाना जाता है, जनसाधारण तक पहुंचाते हैं । असाधारण विद्वान होने के साथ-साथ उनकी प्रकृति बच्चों की तरह सरल है । में बहुत भाग्यशाली हूँ कि में पिछले लगभग 45 वर्षों से उनके सम्पर्क में रह रहा हूँ तथा में सर्वशक्तिमान् भगवान श्रीकृष्ण का ऋणी हूँ कि उन्होंने मुझे उनके सम्पर्क में रहने का अवसर प्रदान किया क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण के शुद्धभक्त का संग भगवान श्रीकृष्ण की कृपा के बिना सम्भव नहीं है।

वर्तमान समय में पूज्यपाद आचार्यदेव कृष्ण भावना अन्दोलन के विग्रह स्वरूप हैं। आप श्री कृष्ण प्रेम के आकाश में सूर्य की भान्ति चमक रहे हैं। जो कोई भी उनके सम्पर्क में आएगा निश्चित रूप से इसी निष्कर्ष पर पहुँचेगा । अपने गुरुदेव के प्रति दृढ़ निष्ठा के क्षेत्र में वे ‘महाभारत’ के ‘भीष्म पितामह’ की तरह हैं। वे एक प्रेरक भक्ति आचार्य हैं।

वे विनम्र संत का स्वभाव रखते हैं, सहनशील । दूसरों को सम्मान देने में आगे रहते हैं जबकि स्वयं सम्मान नहीं चाहते । वैष्णव धर्म की अप्रतिम जानकारी रखते हैं एवं श्रीकृष्ण की शुद्ध भक्ति के आकर्षक ‘प्रचारक आचार्य’ हैं। आपके इन्हीं गुणों से आकर्षित होकर भारत के सभी भागों में रहने वाले हज़ारों लोग उनके मार्ग दर्शन में भक्ति का अभ्यास कर रहे हैं । ग्रन्थों के अनुसार ऐसे शुद्ध वैष्णव के निर्देशानुसार चलने में ही ‘वैष्णवता’ निहित है क्योंकि जीवन में सर्वोच्च उपलब्धि श्रीकृष्ण प्रेम की प्राप्ति का कारण वैष्णवता ही है। हमारी संस्था उनके योग्य मार्गनिर्देशन में बहुमुखी उन्नति कर रही है । परमपूज्यपाद महाराज इस संस्था के एक अत्यन्त असाधारण व्यक्तित्त्व हैं। उनके त्रुटिहीन मार्गदर्शन में व भक्ति सेवा में उनका सहयोग करने में ही कल्याण निहित है।

वैष्णव दासानुसदास
भक्ति सर्वस्व निष्किंचन