पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी भक्ति प्रभाव महावीर महाराज जी द्वारा

भगवान श्रीकृष्ण स्वयं परमेश्वर हैं जो कि गोलोक में रहते हैं। वे पृथ्वी पर अवतरित हुए तथा वृन्दावन धाम में उन्होंने अपनी लीलाएं कीं। उन्होंने श्रीमती राधारानी, व्रज गोपियों तथा गोपों के साथ असंख्य लीलाएँ कीं।

श्री राधा एवं श्रीकृष्ण ने मिलित- तनु धारण करके श्रीकृष्ण चैतन्य देव नामक एक व्यक्तित्त्व में स्वयं को प्रकट किया। श्रीचैतन्य देव के दिव्य प्रेम के सन्देश का प्रचार करने के उद्देश्य से हमारे पारमार्थिक गुरु नित्य लीला प्रविष्ट परमहंस ॐ विष्णुपाद 108 श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज ने भगवान चैतन्य महाप्रभु के जन्म स्थान मायापुर धाम में ‘श्री चैतन्य गौड़ीय मठ’ नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्था की देशभर में 20 शाखाएँ हैं। गुरु महाराज के जीवन काल के दौरान त्रिदण्डि स्वामी भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज संस्था के सचिव थे।

दिव्य प्रेम के ध्वजारोही मेरे आध्यात्मिक गुरु श्री भक्तिबल्लभ तीर्थ महाराज जी ने अपने सभी शिष्यों में से तीर्थ महाराज नामक शिष्य को ही परमप्रिय एवं आज्ञाकारी शिष्य पाया जिन्होंने सदैव गुरुदेव के निर्देशानुसार कार्य किया।

यदि हम श्रील आचार्य देव के मठ में बिताए गए जीवन पर दृष्टिपात करें तो हमें पता लगता है कि वे शारीरिक, मानसिक एवं शाब्दिक रूप से परम आराध्यतम् श्रीलगुरुदेव के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित थे व हैं। एक ब्रह्मचारी के रूप में मठ में आने से लेकर आज तक वे अपने आध्यात्मिक गुरुदेव के समर्पित, निष्ठावान एवं ईमानदार अनुयायी रहे हैं। उनकी अहेतुकी शरणागति को देखकर अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ संस्था के संस्थापकाचार्य श्रील भक्तिदयित माधव गोस्वामी महाराज जी ने अपने तिरोभाव से पूर्व यह निश्चय किया कि श्रील त्रिदण्डि स्वामी भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज श्री चैतन्य गौड़ीय मठ संस्था के प्रेजीडेन्ट – आचार्य के रूप में उनके उत्तराधिकारी होंगे । श्रील गुरुदेव के तिरोभाव के पश्चात उन्होंने श्री चैतन्य गौड़ीय की सभी शाखाओं की हर प्रकार की ज़िम्मेदारी संभाल रखी है।

मुझे यह बताने में प्रसन्नता हो रही है कि श्रीलगुरुदेव एवं वैष्णवों के आशीर्वाद से वे नाम संकीर्तन धर्म के प्रचार हेतु विदेश जा रहे हैं।

मैं भाग्यशाली हूँ कि मैंने चैतन्य देव के सन्देश के प्रचारार्थ उनसे ही संन्यास लिया।

उनकी अहेतुकी कृपा एवं आशीर्वाद पर आश्रित
भक्ति प्रभाव महावीर महाराज