सादर दण्डवत्
आप का कृपा पत्र मिला, पढ़ कर दिल में अति प्रसन्नता हुई । आपके आदेशानुसार वर्तमान आचार्यदेव की महिमा के सम्बन्ध में दो घटनायें लिखने की चेष्टा कर रहा हूँ वैसे मैं कोई लेखक नहीं हूँ अतः मेरे भाव को ग्रहण करके उस पर विचार कर लें :-
यह बात चंडीगढ़ मठ के 1978 के वार्षिक उत्सव की है। उस दिन लगभग प्रातः 9 बजे हरियाणा सरकार के मुख्य सचिव (Chief Secretary) श्री एस. डी. भाँवरी महादेय जी शायद आजकल Tribune के Trustee हैं। हमारे गुरुदेव श्री श्रील 108 श्रील भक्ति दयित माधव महाराज जी से अपने काफिले यानि और अधिकारियों सहित मिलने आये। मैं भी वहाँ बैठा हुआ था। कई बातें होती रहीं । बीच में भाँबरी साहब अपनी तैनाती (Post- ing ) के बारे में गुरु जी को बताते रहे। यह सब सुन कर गुरु महाराज जी बोले ” मेरे तीर्थ को भी सरकारी अफसरी मिली थी, आज वो भी बहुत बड़ा अधिकारी होता” फिर श्रील गुरु महाराज जी ने भाँबरी साहब को संक्षेप में वर्तमान आचार्य देव के बारे में सब कुछ बताया कि कैसे इन्हें सरकारी नौकरी मिली और कैसे ये मेरे कहने पर घर, सगे सम्बन्धियों को छोड़कर मठ में आये । उस समय मैं भी नया नया गुरु पदाश्रित हुआ था । यह सब कुछ सुन कर भी मुझे कुछ खास समझ नहीं आया परन्तु अब चिन्तन करता हूँ तो श्रील गुरु महाराज के इन शब्दों में कि “मेरा तीर्थ” में वर्तमान आचार्य देव के प्रति उनका कितना स्नेह था मैं हैरान रह जाता हूँ ।
नवद्वीप धाम परिक्रमा में जब रुद्र द्वीप की ओर परिक्रमा जाती है तो रास्ते में भारद्वाज टीला पर परिक्रमा रूकती है। वहाँ पर आचार्य देव मुझे ढूंढते हैं कि हमारा भारद्वाज कहां है? यह उनका कहना मुझे बहुत ही अच्छा लगता है।
इसी तरह जब गोकुल महावन मठ के श्री विग्रह खंडित हो गये । खंडित करने वाले पकड़े गये। अब उन लोगों को सजा दिलवानी थी तो उसमें प्रत्यक्षदर्शी गवाह चाहिए था वो त्रिदण्डि स्वामी साधु महाराज ही थे। तब मैंने देखा कि सभी पुराने पुराने महात्मा साधु महाराज जी को Pressurise कर रहे थे कि कोर्ट में गवाही देकर उन लोगों को सज़ा दिलवानी चाहिये में स्वयं इसी पक्ष में बहुत पक्के तौर पर था । यहाँ साधु महाराज की साधुता देवी और आचार्य देव के प्रति उनकी श्रद्धा देखकर मैं हैरान रह गया। साधु महाराज जी ने थैला उठाया और वर्तमान आचार्य देव के पास राजपुरा में सलाह पहुँच गये। जब श्रील साधु महाराज श्रील आचार्य देव से राजपुरा में मिले तब संयोग से में भी श्रीमहाराज जी के कमरे में ही था। श्री साधु महाराज के उस प्रश्न के उत्तर में कि क्या हमें गोकुल महावन के मठ के श्री विग्रहों को खंडित करने वालों को सज़ा दिलवानी चाहिए?
श्रील आचार्य देव ने श्री चैतन्य चरितामृत के पयारों का हवाला दे कर समझाया कि हम बृजवासियों पर शासन करने वाले कौन होते हैं? बृजवासी भगवान श्री कृष्ण के सम्बंधी हैं क्या हम उनको सज़ा दिलवाएंगे ? यद्यपि यह सारा वार्तालाप बंगला में हो रहा था परन्तु मुझे सब समझ में आ रहा था। श्रील आचार्यदेव जी ने आगे समझाया कि हमारी सेवा में कमी होने के कारण भगवान हम से रूठ कर चले गये हैं। मैंने उपरोक्त विषय में अपने सभी महात्माओं तथा अन्य सम्प्रदाय के महात्माओं से सलाह लेकर देखी तो सभी श्री विग्रहों को खंडित करने वालों को सज़ा दिलवाने के पक्षधर थे। परन्तु यह हमारे आचार्य देव की गुरुता है, बृजवासियों के प्रति दर्शन है। मैं यह सोच-सोच कर हैरान होता रहता हूँ कि श्रील आचार्य देव जी ने शास्त्र की वाणी, अपने गुरु महाराज जी की वाणी और अपने गुरुवर्ग की एक 2 बात के अनुसार अपने जीवन को ढाला है। हो सकता है यही उनकी गुरुता हो ।
1989-90 की बात है कलकत्ता मठ में अपने कमरे में बैठे श्रील आचार्य देव परमपूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज मुझ से बोले – “मुझे इस बात का बहुत कष्ट है कि हमारे गुरुदेव श्री श्रील 108 श्रील भक्ति दयित माधव महाराज जी को हस्पताल में अन्तिम दिनों में नर्सों ने टीका बगैरह लगाते समय छुआ। हमारे गुरु जी नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे।” आगे फिर बोले कि मैं कोई मठ मन्दिर या Building देखकर या Presidentship के लिए नहीं आया था मैं तो श्रील गुरुमहाराज जी को देख कर आया था। उनका आचरण, त्याग, वैराग्य, गुरुनिष्ठा, नाम निष्ठा और वैष्णवों के प्रति स्नेह देख देख कर में हैरान रह जाता हूँ।
मुझे अच्छी तरह याद है कि श्रील गुरु महाराज जी के समय आचार्य देव के शरीर का रंग काफी श्याम था जो कि शक्ति संचारित होने के बाद गौर हो गया है।
प्रभु जी मैंने आपके आदेशानुसार जो कुछ भी समझ में आया लिख दिया। आप जैसा ठीक समझें करें। बाकी वर्तमान आचार्य देव हमारे गुरु ही हैं क्योंकि श्री माधव महाराज जी ने हरिनाम और दीक्षा दी है परन्तु उस की पुष्टि श्रील आचार्य देव जी ने ही की है। अतः अन्त में मैं उन के श्री चरणों में कोटि कोटि दण्डवत् करता हूँ।
वैष्णव दासानुदास
कृष्ण सुन्दर दास
( के.एल. भारद्वाज)