पूज्यपाद कृष्ण गोपाल कराका जी द्वारा
महापुरुष शुभ दिनों में वैकुंठ जगत से इस धरातल पर अवतीर्ण होते हैं। कृष्ण कृपा श्रीमूर्ति श्री भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज जी उसी दिन आविर्भूत हुए जिस दिन भगवान राम अयोध्या में राजा दशरथ के महल में प्रकट हुए थे। उन्होंने श्री श्रीमत् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज के सम्पर्क में आकर उनकी शरण ग्रहण की। अतिअल्प काल में ही आपने अपने आध्यात्मिक गुरुदेव जी की निःस्वार्थ एवं निष्कपट सेवा करके उनका दिल जीत लिया तथा शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार जीवन यापन करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। स्नेहमय अपने गुरुदेव जी की शैली में आपका आचरण हमेशा से सात्त्वत शास्त्रानुसार रहा है।
अपने मधुर स्वभाव, प्रभावशाली एवं हृदयाकर्षक भाषणों के कारण आप अपने गुरुदेव जी की भाँति महान आचार्य बन गए। हम जैसे पतितों के उद्धार के लिए आप अपने निजी सुखों का परित्याग करके रेलगाड़ी से बसों से एवं पैदल चल कर यात्रा करते हैं।
आपकी शिक्षायें श्रीकृष्ण के शुद्ध प्रेम सम्बन्धी हैं। जो कि श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की शिक्षाओं पर ही आधारित हैं। श्रीकृष्ण ही परम पुरुषोत्तम दिव्य पुरुष, स्वयं भगवान तथा सर्व कारणों के कारण हैं, और वे ही नन्द महाराज के पुत्र के रूप में लीलायें करते हैं। श्रीकृष्ण ने ही श्रीराधा की स्वर्णमयी अंग कार्ति को स्वीकार करके श्रीचैतन्य महाप्रभु का भक्त रूप ग्रहण किया है। पूज्यपाद महाराज जी ने अपने ज्ञान भक्ति मय उपदेशों तथा सदाचार और प्रेममय व्यवहार से यह सिद्ध कर दिया है कि वे भगवान के शुद्ध प्रेम के संदेश वाहक तथा प्रेमभक्ति के अग्रदूत गोस्वामी गणों के सच्चे अनुयायी हैं।
हम साक्षात् देखते हैं कि आप सदा प्रेम पूर्ण भक्ति रस का आस्वादन करते हुए अपने आपको भूल कर उच्च स्वर से श्रीकृष्ण, श्रीमहाप्रभु श्रीनित्यानन्द प्रभु और उनके पार्षदों का नाम गान कर नाम संकीर्तन महा यज्ञ कर भजन करते हैं जो कि कलियुग में श्री राधा कृष्ण की पूजा तथा भक्ति का सच्चा तथा अति प्रभावशाली साधन है।
अन्त में में आपके पवित्र चरणों में बार-बार दण्डवत् प्रणाम करता हूँ। सांसारिक विषयों में आसक्ति के कारण शुद्धभक्तिपथ पर चलने में अक्षम, आपका दास अहेतुकी कृपा की प्रार्थना करता हूँ ।
आप वैष्णवों का दीन दास
कृष्ण गोपाल दास