दण्डवत् प्रणाम |
आपका आदेश पत्र हमारे घर भी कृपा करके पहुंचा। जिस पर अपने श्रील गुरु महाराज जी के बारे में लिखने को कहा था। आपने जितने प्वाइट्स लिखने को कहे उन सबके बारे में लिखना मेरे लिये तो सम्भव नहीं । सो महाराज जी की 2-3 लीलायें, जो मैंने अनुभव की, लिखकर आपको भेज रहा हूं। कृपा करके आप स्वीकार करें। कुछ लिखने से पूर्व पूज्यपाद निष्किंचन महाराज तथा अन्य सभी मठवासियों को मेरा दण्डवत् प्रणाम ।
बात 1995 की है। न्यूमाडल टाउन, लुधियाना के श्री सनातन धर्म मन्दिर में श्री चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन मण्डल की ओर से 8वां श्री हरिनाम संकीर्तन सम्मेलन चल रहा था । एक दिन मैं मन्दिर के बाहर खड़ा था कि एक कार मेरे पास आकर रुकी कार से श्रीकृष्णा मन्दिर शास्त्री नगर, लुधियाना के ट्रस्ट के प्रधान हुकूमत राय जैन के सुपुत्र श्री सतीश जैन उतरे। पुराने परिचित होने के कारण बड़े प्यार से हम दोनों आपस में मिले और साथ ही श्रील गुरु महाराज जी के दर्शनों के लिये उनके कमरे की ओर चल पड़े। श्रील गुरु महाराज जी अकेले ही अपने कमरे में बैठे थें। सतीश जी ने कुछ फल इत्यादि गुरु महाराज जी के सन्मुख रख दिये और दण्डवत् प्रणाम करते हुए कहने लगे कृपा कीजिए महाराज जी ।
कैसी कृपा चाहते हैं आप ? क्या रूपये की कमी है ? गुरु महाराज जी ने कहा। नहीं, महाराज आपकी बहुत कृपा है सतीश जी ने कहा ।
फिर क्या चाहते हो ?- गुरु जी ने पूछा। हरिभजन ठीक से हो सके यही चाहता हूं -सतीश जैन जी ने कहा ।
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हम कब से आपके घर आ रहे हैं? गुरु जी ने पूछा ।
5-6 साल तो हो ही गये होंगे सतीश जैन ने कहा।
एकादशी व्रत रखते हो? प्याज छोड़ा अभी तक ? थोड़ा गम्भीर व उच्च स्वर में गुरुजी ने पूछा। ( शर्मसार हो गये सतीश जी व हाथ जोड़कर चुपचाप बैठे रहे ।) जब साधु की बात को नहीं मानोगे तब भजन में उन्नति होगी कैसे ? गुरुजी ने कहा ।
बस तभी से सतीश जैन जी ने प्याज आदि अखाद्य वस्तुओं का खाना छोड़ दिया तथा भक्ति की जननी स्वरूपा हरिवासर तिथि एकादशी का व्रत करना प्रारम्भ कर दिया।
बात 1993 की है। तब श्रीसनातन धर्म मन्दिर, न्यूमाडल टाउन, लुधियाना के प्रधान थे श्रीमदन लाल आनन्द । उस वर्ष सम्मेलन में हमने प्रभात फेरी का कार्यक्रम भी रखा था। प्रातः 5:30 बजे प्रभात फेरी का समय था। धीरे धीरे भक्त लोग एकत्रित होने लगे । लगभग 6:30 बजे का समय हो गया परन्तु श्रील गुरु महाराज जी अभी तक अपने कमरे से बाहर नहीं आये थे। मदन लाल कहने लगे कोचर साहब, आप जाओ और महाराज जी से कहो कि काफी देर हो गयी है। ज्यादा देर होने से धूप में चलना मुश्किल होगा। मैंने कहा कि मैं गुरुजी को आदेश नहीं दे सकता। वे सब जानीजान हैं। उनकी इच्छा से जो होगा अच्छा ही होगा। लगभग पौने सात बजे गुरुजी कमरे से निकले और मन्दिर के हाल में आ गये। जय ध्वनि हुई, वन्दना प्रारम्भ हुई। तत्पश्चात श्रील गुरु महाराज जी ने भावपूर्ण संकीर्तन प्रारम्भ किया। न करते करते जब हम बाहर आये तो देखा कि जहाँ अभी तक धूप चमक रही थी। वहीं हल्की बूंदा बांदी से सड़कों पर जल का छिड़काव हो गया था व सूर्यदेव बादलों की ओट से नगर संकीर्तन प्रभात फेरी को निहार रहे थे। जिससे सूर्यदेव को भी संकीर्तन को आनन्द आ रहा था तो धूप की तपस न होने के कारण प्रभात फेरी में शामिल भक्त भी आनन्दित थे। अचानक ऐसा दृश्य देखकर सभी इसे गुरु महाराज जी का करिश्मा कह रहे थे।
इसके विपरीत लीला इस वर्ष देहरादून में हुई । हुआ ऐसा कि जब नगर संकीर्तन निकलने को हुआ तो तेज वर्षा प्रारम्भ हो गयी। यथा समय गुरुजी एक सेवक के साथ जो कि उनके ऊपर छाता किये हुआ था, ऊपर सत्संग भवन में आये । इसी बीच गुरुजी ने श्रीपाद चिद्घनानन्द प्रभु को अपने पास बुलाया और धीरे से कहा – “नीचे से श्रीकान्त प्रभु को व अमरेन्द्र को बुलाओ, कृपा करो हम पर श्याम सुन्दर’ गाना होगा। हमेशा की तरह जयध्वनि हुई, वन्दना हुई। ‘श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु दया करो मोरे- इस महाजन कीर्तन से प्रारम्भ किया नगर संकीर्तन । श्रील गुरु महाराज जी ने जय दाओ – जय दाओ ध्वनि गुजित हुई, निताई गौरांग, निताई गौरांग नाम ध्वनि होने लगी। तत्पश्चात ‘हरे कृष्ण’ महामन्त्र का कीर्तन हुआ तथा हरि बोल हरिबोल का जमावभरा संकीर्तन अचानक बन्द हुआ और गुरु महाराज जी ने कहना प्रारम्भ किया कि बाहर तो काफी तेज बारिश हो रही है। आप लोग सभी बैठ जाइये। अभी हम दस मिनट भक्त भगवान की कृपा प्रार्थना करेंगे। तत्पश्चात् संकीर्तन करते हुए बाहर जायेंगे तभी गुरु महाराज जी ने श्रीकान्त प्रभु जी को “कृपा करो हम पर श्यामसुन्दर हे भक्त वत्सल कहलाने वाले।” गाने को कहा। श्रील गुरु महाराज जी, पूज्यपाद निष्किंचन महाराज जी व पूज्यपाद आचार्य महाराज जी आदि वैष्णव स्टेज पर बैठ गये । बाकी सभी नीचे दरियों पर बैठ गये। श्रील गुरु महाराज जी के निर्देशानुसार संकीर्तन प्रारम्भ हुआ । लगभग दस मिनट ही संकीर्तन हुआ । कीर्तन के पूरा होते ही गुरु महाराज जी खड़े हो गये और हाल से बाहर की ओर चल दिये । बाहर जाकर हमने देखा कि वर्षा लगभग बन्द थी। थोड़ी बूंदाबांदी हो रही थी, जो कि मन्दिर की सीढ़ियां उतरते उतरते समाप्त हो गयी। बड़े सुहावने मौसम में नगर संकीर्तन हुआ ।
इति
वैष्णवदासानुदास
जगन्नाथ दासाधिकारी
(जागिरी दास कोचर )
लुधियाना ।