पुष्पांजलि चक्रवर्ती राज जौहर जी द्वारा पुष्पांजलि
सर्वप्रथम में अपने गुरुदेव नित्यलीला प्रविष्ट विष्णुपाद 108 त्रिदण्डी स्वामी श्रीमत् भक्तिदयित माधव गोस्वामी महाराज जी के चरणों में अनन्त कोटि साष्टांग प्रणाम करते हुए उनकी अहेतुकी कृपा की प्रार्थना करता हूँ ।
हमारे परमादरणीय आचार्य देव इस जगत में भगवान राम के अयोध्या धाम में प्रकट डाने वाली तिथि रामनवमी के शुभ दिन पर आसाम के ग्वालपाड़ा नामक स्थान में प्रकट हुए। अत: आज का दिन सभी वैष्णवों, विशेष रूप से श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के सभी वैष्णवों के लिए खुशी मनाने का दिन है।
जो कुछ थोड़ा-बहुत मैंने, श्री महाराज जी के विषय में गुरुवर्ग के पवित्र मुख से श्रवण किया है, उसी को दोहरा रहा हूँ । जब वे ब्रह्मचारी थे, वे हरिगुरु वैष्णवों की सेवा प्रगाढ़ रुचि, निष्कपटता एवं निष्ठा से किया करते थे। उच्च शिक्षित होने के बावजूद भी आप बर्तन धोने जैसी छोटी-छोटी सेवा भी किया करते थे । वैष्णवों के साथ प्रसाद ग्रहण करने को अपना परम सौभाग्य बतलाते हुए वे भक्ति के आवेश में रुदन किया करते थे। ऐसे आवेशों के दौरान वे कभी-कभी केले की उन पत्तलों को भी खा लिया करते थे जिसमें प्रसाद परिवेषण किया जाता था । इस स्थिति को देखकर हमारे गुरुदेव ने ब्रह्मचारियों को विशेष रूप से निर्देश दिए थे कि वे ध्यान रखें कि प्रसाद स्वाते समय ये केले के पत्ते न खाएं। उन दिनों उनकी प्रगाढ़ भक्ति की यह अवस्था थी कि वे उनको मिलने हेतु आए अपने स्वजनों को भी नहीं पहचानते थे। वे ‘परमहंस’ की भान्ति व्यवहार कर रहे थे । अपने गुरुदेव के चरण कमलों की निष्कपट सेवा करने से वे उनके परमप्रिय बन गए थे। मैंने गुरुवर्ग के पवित्र मुखारविन्द से यह भी सुना है कि हमारे गुरुदेव यह कहा करते थे कि उनके एकमात्र सच्चे शिष्य ‘तीर्थ महाराज’ हैं जो कि उनके पश्चात उनसे भी अधिक सुन्दरता से इस संस्था का संचालन करेंगे। अपने चरणों में उनकी अनुपम एवं अद्वितीय शरणागति के गुणों एवं श्री हरिगुरु वैष्णवों की सेवा के लिए उनके अनथक प्रयासों को देखते हुए गुरु महाराज जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में उनका चयन कर दिया। अपने अन्तिम प्रवचन में हमारे परम आराध्यतम् गुरुदेव जी ने सभी भक्तों के समक्ष घोषणा की कि उनके पश्चात् त्रिवण्डि स्वामी तीर्थ महाराज इस संस्था के अगले आचार्य होंगे एवं मात्र उनको ही हरिनाम दीक्षा तथा सन्यास प्रदान करने का अधिकार होगा ।
यह मेरा दृढविश्वास है कि पूज्यपाद महाराज जी शुद्ध वैष्णवोचित गुणों, जिनका चैतन्य महाप्रभु ने अपने शिक्षाष्टकम् के तृतीय श्लोक में वर्णन किया है, के साक्षात् श्री विग्रह हैं।
में पूज्य श्रील आचार्यदेव के चरणकमलों में प्रणामान्जलि के रूप में उपरोक्त भावनाओं को व्यक्त कर रहा हूँ तथा साथ ही उनसे विनम्र प्रार्थना करता हूँ कि मेरी सभी त्रुटियों को अनदेखा करके वे इन्हें स्वीकार करें तथा श्रीगुरुदेव एवं वैष्णवों के इस अकिन्चन दास पर सदैव अपनी कृपा की वृष्टि करते रहें ।
वैष्णवों का विनीत दास
चैतन्य चरणदास अधिकारी