पूज्यपाद त्रिवण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति प्रचार पर्यटक महाराज
मैं सबसे पहले परम पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी भक्ति शरण त्रिविक्रम महाराज जी के चरणों में प्रणत होकर उनकी अहेतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ। अपने शिक्षागुरु परमपूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी के श्री चरणों में प्रणत होकर उनकी अहेतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ। मंच पर उपस्थित सभी त्रिदण्डपादगणों के चरणों में प्रणत होकर उनकी अहेतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ । सभा में उपस्थित मातृ वृन्द श्रीतृवृन्द- सज्जनवृन्द आप सभी प्रसन्न हों ।
आज विशेष शुभदा तिथि है। इस तिथि को अवलम्बन करके भगवान राम अविर्भूत हुए थे और इसी पावन तिथि को हमारे महाराज परमपूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी भी आविर्भूत हुए थे। यद्यपि मेरे पूर्व वक्ताओं से आपने काफी कुछ पूज्यपाद महाराज जी के बारे में सुना । तब भी वैष्णवों ने मुझे आदेश किया कुछ कहने के लिये सो कुछ निवेदन कर रहा हूँ रात्री के अभी सवा ग्यारह बज गये हैं इसलिए संक्षेप में कहूँगा । अपने गुरुवर्गीय परम पूज्यपाद यायावर महाराज जी के आश्रित गृहस्थ भक्त वट कृष्ण प्रभु जी के पास उपदेश सुनकर मैं मठ में आया था। उन्होंने ही एक पत्र पूज्यपाद तीर्थ महाराज जी के नाम लिखकर मुझे इनके पास भेजा था। मुझे अभी तक याद है कि मैं रात के बारह बजे कलकत्ता मठ में पहुंचा था, घर में बिना कुछ बताये। जब में मठ में पहुंचा उस समय पूज्यपाद तीर्थ महाराज कलकत्ता मठ में नहीं थे इसलिये मैंने वह चिट्टी अपने गुरु महाराज नित्यलीला
प्रविष्ट ॐ विष्णुपाद 108 श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी को दे दी। मैं पूज्यपाद तीर्थ महाराज जी का चिर ऋणी हूँ क्योंकि उनके नाम की चिट्ठी लेकर ही में सर्वप्रथम मठ में आया था व उन्हीं की कृपा से मैं मठ में रह पाया हूँ। मैं तो ऐसा समझता हूँ क्योंकि पूज्यपाद तीर्थ महाराज जी गुरुजी के अत्यन्त प्रिय हैं इसलिये उनके नाम की चिट्ठी पाकर ही उन्होंने मुझे मठ में रख लिया ।
आज भगवान श्री राम चन्द्र जी की भी आविर्भाव तिथि है। तमाम शास्त्र बतलाते हैं कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। एक बात ही बार-बार मेरे दिमाग में घूम रही है वह ये कि भगवान राम का व पूज्यपाद महाराज जी का आचरण काफी मिलता जुलता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जिस प्रकार सभी को यथायोग्य मर्यादा देते हैं। आज प्रात: काल के अनुष्ठान में आप देखा ही कि पूज्यपाद महाराज जी ने भी किस प्रकार अपने गुरुवर्ग व गुरुभाई वर्ग का सम्मान किया। किस प्रकार सभी को मर्यादा प्रदान की । मर्यादा रक्षण भी एक प्रकार का साधु भूषण होता है।
कई बार मैं सोचता हूं कि काम-क्रोध व लोभादि में आसक्त इस जीव को अचानक मायापुर में बुलाकर क्यों पूज्यपाद तीर्थ महाराज जी ने मुझे इस सन्यास वेश में सजाया, मालूम नहीं में इस सन्यास धर्म की ठीक प्रकार से रक्षा कर सकूं इसलिये मैं उनके श्रीचरणों में शरणागत होता हूं तथा अपना सारा दायित्व में उन्हीं पर समर्पण करता हूं तथा उनके चरणों में कातर प्रार्थना करता हूं कि वे कृपा करके मेरी रक्षा करें।
जब में मठ में आया उस समय श्रील गुरुमहाराज जी का जो स्नेह मुझे मिला, आज भी मैं उसी स्नेह रज्जू में बँधा हुआ हूँ। मुझे उम्मीद है कि मैं इसी स्नेह में रह पाँऊगा । मुझे मालूम नहीं कि भविष्य में मेरी क्या गति होगी ? गुरुदेव अन्तर्यामी हैं, वैष्णव अन्तर्यामी हैं इनकी स्नेह छाया में ही मैं अपने बाकी जीवन को व्यतीत कर पाऊँगा, ऐसी मैं आशा करता हूँ ।