पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति कुसुम यति महाराज जी ने कहा

कुछ कहने से पूर्व मैं अपने गुरु पादमधों में साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करता हुआ उनकी अहेतुकी कृपा करने के लिए भिक्षा करता हूं । अपने सन्यास – गुरु व शिक्षागुरु श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ महाराज जी के श्री चरणों में साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करता हुआ उनकी अहेतुकी कृपा प्रार्थना करता हूं। पूज्यपाद श्री श्रीमद् भक्तिशरण त्रिविक्रम महाराज जी तथा सभी त्रिदण्डिपाद गणों के पादपद्मों में साष्टांग प्रणाम करता हुआ उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूं ।

आज भगवान श्री राम चन्द्र जी की आविर्भाव तिथि है तथा आज ही मेरे सन्यास गुरु व श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के आचार्य श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी की आविर्भाव तिथि भी है। श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान कहते हैं कि “जन्म कर्म च मे दिव्यम्” अर्थात् मेरा और मेरे भक्तों के जन्म व कर्म सभी दिव्य होते हैं। हम साधारण लोगों का कर्मवश जैसे जन्म होता है, ऐसे भगवान का व भक्तों का नहीं होता। आज जिन आचार्यपाद जी की आविर्भाव तिथि है, वे पूज्यपाद तीर्थ महाराज जी श्रील गुरुमहाराज जी के परम प्रिय व विशेष स्नेही शिष्य हैं। इनका पहले का नाम श्रीकृष्ण बल्लभ ब्रह्मचारी था। मैंने अपने लम्बे मठवासी जीवन काल में देखा कि जितने भी महत्त्वपूर्ण कार्य होते थे वे सारे कार्य श्रील गुरु महाराज जी श्रीकृष्णबल्लभ बह्मचारी को सौंपते थे। श्रील जगन्नाथ पुरी में श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के जन्म स्थान के उद्धार के लिये श्रील गुरु महाराज जी ने जो कार्य उन्हें सोंपा था और जिस सूझ बूझ, परिश्रम व निष्ठा से उन्होंने किया उससे श्रील गुरु महाराज जी बहुत प्रसन्न थे, इसके श्री कृष्ण चैतन्य सन्देश इलावा कितने बड़े-बड़े कठिन व जिम्मेदारी के कार्य उन्होंने किये, उन सभी का वर्णन करना बड़ा मुश्किल है।

महाराज जी के जीवन की विशेषता यह है कि महाराज जी जो भी शिक्षा देते हैं उसे स्वयं आचरण करके देते हैं। महाराज जी स्वयं अपने जीवन में शरणागत होकर गुरु सेवा व भगवान की सेवा करते हैं और इसी आचरण की शिक्षा देते हैं। में तो देखता हूं कि महाराज जी कायमन व वाक्य से 24 घण्टे में से 24 घण्टे ही गुरु- वैष्णव व भगवान की सेवा करते हैं। चण्डीगढ़, देहरादून, दिल्ली, हैदराबाद व आसाम आदि में जो कार्य गुरुजी अधूरा छोड़ गये थे महाराज जी ने बड़े खूबसूरत तरीके से व परम उद्यम के साथ तथा गुरु सेवा समझकर उन सब कार्यों को पूरा किया व कर रहे हैं। शास्त्रों में गुरु के दो मुख्य लक्षण लिखे हैं कि सद्गुरु जो होंगे वे श्रोत्रीय व ब्रह्मनिष्ठ होंगे। मैं देखता हूं कि पूज्यपाद महाराज जी में दोनों लक्षण पूरे पूरे घटते हैं। आज अपनी आखों से आपने देखा कि किस प्रकार अपनी आविर्भाव तिथि में उन्होंने गुरुपूजा की एवं गुरुजी के सम्बन्ध से गुरु भाइयों का सम्मान किया तथा हम लोगों ने जब गुरुजी की प्रसादी माला उन्हें दी तो उन्होंने गुरु कृपा प्रसाद समझकर सहर्ष उसे ग्रहण किया ये अद्वितीय गुरु निष्ठा नहीं तो और क्या है ?

हमारे भक्ति राज्य के महाजन लोग तो यहां तक कहते हैं कि इस प्रकार वैष्णव सारे ब्रह्माण्ड को उद्धार कर सकते हैं “ब्रह्माण्ड तारिते शक्ति धरे जने जने ।” मैं देखता हूं कि लगभग प्रतिदिन महाराज जी रात एक डेढ़ बजे तक ग्रन्थ लिखते रहते हैं व लोगों के पत्रों के जवाब देते हैं फिर प्रातः मंगल आरती आकर प्रातः काल की मंगल बेला में सभी भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके इलावा इतनी उम्र में विशाल विशाल नगर संकीर्तनों में कितना नृत्य कीर्तन करते हैं जिन्होंने उनका संग किया है वे भलीभाँति इससे परिचित हैं। ऐसे वैष्णवों के लिये ही कहा गया कि “कृष्ण कृपा की आनन्दमूर्ति दीनन करूणानिधान ।”

गुरुजी जिन पर अपनी पूरी शक्ति का संचार कर गये, जिन पर अपना पूरा स्नेह प्रदान कर गये ऐसे आचार्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी के आनुगत्य में रहकर यदि हम हरिभजन कर पायें तो निश्चित रूप से हमारा कल्याण हो सकता है।