पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी भक्ति बान्धव जनार्दन महाराज जी ने कहा
आज बहुत आनन्द का दिन है, आज भगवान राम चन्द्र जी का आविर्भाव दिन भी है और हमारे आचार्य देव जी का भी हमारे गुरु महाराज जी का आविर्भाव दिन है। उत्थान एकादशी, ये वह शुभ दिन है जिस दिन भगवान चार महीने की शयन लीला के बाद जागते हैं। इन आविर्भाव दिवसों से भी मालूम पड़ता है कि हमारे गुरुजी व हमारे आचार्य देव जी साधारण मनुष्य नहीं है। ये निश्चित है कि आचार्य देव पूज्यपाद तीर्थ महाराज जी साधारण मनुष्य नहीं हैं। गुरुजी के विशेष कृपा पात्र हैं महाराज जी । गुरुजी ने अपनी सारी शक्ति का संचार किया इन महाराज जी में गुरु महाराज जी जिस प्रकार अपने आराम विश्राम की ओर ज्यादा ध्यान न देकर सारा साल श्रीचैतन्य महाप्रभु की शुद्ध भक्ति वाणी के प्रचार में व्यस्त रहते थे उसी प्रकार ये महाराज जी भी अपने शरीर की ‘सुध बुध भूल कर पूरे वर्ष अपने गुरुजी के पदचिन्हों पर चलकर प्रचार कार्य में लगे रहते हैं। अभी महाराज जी की श्री कृष्ण चैतन्य सन्देश उम्र हो गयी है 73 वर्ष इतनी उम्र में महाराज का शुद्ध भक्ति प्रचार के लिये अनथक परिश्रम तथा नृत्यकीर्तन कोई देख ले तो वह स्वयं ही कहेगा कि महाराज जी कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। हमारा अहोभाग्य है कि गुरुजी के जाने के बाद ऐसा गुरु कृपा संचारित महापुरुष हमें मिला।
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वे मुझ पर ऐसी कृपा करें जैसे मेरा कभी भी महाराज जी के चरणों में अपराध न हो तथा हमेशा उनकी मुझ पर कृपा बनी रहे । कई बार तो मुझे लगता है कि भगवान ही हमारे आचार्य के रूप में आये हैं। श्रीमद् भागवत में भी भगवान श्रीकृष्ण उद्धव जी को कहते हैं कि मैं ही आचार्य हूँ। ऐसा भी शास्त्र कहते हैं कि गुरु के हृदय में सभी देवी-देवता निवास करते हैं। गुरु दुनियाँ का आदमी नहीं होता। भगवान ही के रूप में जीवों पर कृपा करने के लिये आते हैं। गुरु महाराज जी जब कीर्तन करते हैं तो स्पष्ट मालूम पड़ता है कि महाराज जी भगवान के निजजन हैं, हमारे गुरुजी पतितपावन थे, वे करुणामय थे, मुझे पूरा विश्वास है कि उनसे अभिन्न आचार्य देव जी भी पतितपावन, परम करुणामय हैं। आज उनकी शुभ- आविर्भाव तिथि में मुझे कुछ बोलने के लिये कहा।
महाराज जी की प्रसन्नता के लिये मैंने थोड़ा कुछ अपनी योग्यता के अनुसार निवेदन किया। इतने से ही महाराज जी प्रसन्न हो जायें। अन्त में मैं उनके चरणों में दण्डवत् प्रणाम करता हुआ उनकी अहेतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ। वे मुझे अयोग्य पर कृपा करें जैसे में गुरु वैष्णव व भगवान की सेवा में अपने को पूरी तरह से नियोजित कर स्कूँ ।