‘परमाराध्य श्रील गुरु महाराज जी द्वारा अद्भुत चमत्कार'”

दिनांक 23 मार्च, 2009, को में अपने घर में बैठा हुआ अपनी बीवी व बच्चों से बातें कर रहा था कि अचानक रात को करीब 8 या 9 बजे में बेहोश हो गया। मेरी हालत को देखकर सब घबरा गए और मेरे लड़के पप्पन ने अपने चाचा को आवाज़ दी। इतनी देर में मेरे भाई और मेरे बच्चों ने मुझे उठाया और गाड़ी में डालकर मुझे गंगाराम हस्पताल ले गए। मुझे होश नहीं था। वहाँ डाक्टर ने मुझे देख कर एक दम 1.C.U. में Admit कर लिया और मेरा इलाज शुरु कर दिया। हर प्रकार की testing के बाद डाक्टर को कोई भी बीमारी पता नहीं लगी। आखिर में उन्होंने मेरे लड़के को कहा कि उन्हें Brain T.B. लगती है, वे मेरा M.R.I. करेंगे। बच्चे बहुत घबराए हुए थे। उन्होंने कहा कि जो करना है, वे (डॉक्टर) करें। उन्होंने मेरा M.R.I. किया और रीढ़ की हड्डी से पानी निकाला। में बेहोश था। मुझे कुछ भी मालूम नहीं। इस प्रकार तीन दिन तक मेरी testing चलती रही पर डाक्टर नहीं समझ पाए, मुझे क्या हुआ था। मेरे परिवार वाले सारे सोचने लगे कि क्या करें? डाक्टर लोग अपना इलाज लगातार कर रहे थे।

चौथे दिन शाम को मुझे ऐसा लगने लगा कि चार आदमी मुझे स्ट्रेचर पर ले जा रहे हैं। मैं घबराया हुआ था। मैं कह रहा था कि “आप लोग मुझे कहाँ ले जा रहे हैं?” वे कहने लगे कि मुझे फाँसी लगेगी। मैंने पूछा कि “मेरा कसूर क्या है?” वे कहने लगे कि उन्हें नहीं मालूम। फिर जब मैंने उनसे कहा कि, “ठीक है, आप मुझे फाँसी दीजिए” तो वे कहने लगे अभी मेरा नम्बर नहीं आया, जब आएगा तब वे फाँसी लगाएँगे। मुझे होश नहीं था और में घबरा रहा था, तभी मैने अपने मन में अपने गुरुजी को याद किया। इतनी देर में गुरुजी ने मेरे पास अपने शिष्य, पूज्यपाद श्रीमद् भक्ति विचार विष्णु महाराज जी को भेज दिया। वे मेरे पास आकर बैठ गए।

वे मुझसे कहने लगे कि “बालकिशन जी! क्या बात है?”

मैंने उनसे कहा कि महाराज! ये लोग मुझे फाँसी लगा रहे हैं।

उन्होंने मुझे कहा आपको कोई फाँसी नहीं लगेगी।

मैंने महाराज जी को कहा “आप मेरे गुरुजी को बुलाइये, में उनके चरणों में मरना चाहता हूँ, तब विष्णु महाराज जी बोले कि श्रील गुरु महाराज जी आ रहे हैं, वे कलकत्ता से चल पड़े हैं और कुछ ही देर में आपके पास आ जाएँगे। मुझे ऐसा लगा कि जैसे डूबने वाले को तिनके का सहारा मिल गया हो। इतनी देर में मेरे पास श्रील गुरुदेव तथा श्रीभक्त्ति जीवन यति महाराज जी दोनों आ गए। उनको देखकर में खूब रोने लगा तो श्रील गुरु महाराज जी ने कहा “रो मत, आपको कुछ नहीं होगा, आप भगवान का भजन करो।”

मैंने उनसे कहा “महाराज जी! में मरने से नहीं डर रहा हूँ, मैं तो आपके चरणों में मरना चाहता हूँ, कृपा करके मुझे अपने चरणों में स्थान दीजिए।”

श्रील गुरु जी ने कहा ” ऐसा नहीं बोलते, वैष्णव व् भगवान सब जानते हैं।” मेरे को तसल्ली हो और में चुप हो गया। चौथे दिन मेरी आँख खुली और मुझे होश आया। उस मय मेरे पास तीन-चार डाक्टर खड़े थे और कहने लगे “क्या हाल है?” मैंने जवाब दिया कि “में बिल्कुल ठीक हूँ।”

डाक्टर ने कहा “हाथ मिलाओ”। मैंने डाक्टर का हाथ पकड़ा, फिर एक डाक्टर ने मेरा पैर पकड़ा और उठाया जिससे मेरे पैर में दर्द हुआ क्योंकि मेरे पैर पर चोट लगी थी। डाक्टर साहब कहने लगे कि मैं ठीक हूँ और मुझे कमरे में shift कर देंगे। में कहने लगा को बुलाओ।” उन्होंने मेरे बड़े लड़के पप्पन को बुलाया और मैंने पप्पन से कहा ” पहले मेरे लड़के “मुझे घर ले चलो, में बिल्कुल ठीक हूँ।” उसने कहा कि पहले कमरे में ले चलते हैं फिर मुझे घर ले जाएँगे। इस प्रकार मुझे कमरे में shift कर दिया गया। मैंने पप्पन से पूछा कि मुझे क्या हुआ था? तब उसने बताया कि में बोलते-बोलते बेहोश हो गया था और बोला कि में अब ठीक हूँ। मेरे बेटे ने मुझे बताया कि 3 दिन से मैं बेहोश था। फिर अपनी सारी घटना जो मेरे साथ घटित हुई, मैंने बताई। मेरे लड़के ने कहा कि डाक्टर कह रहे थे कि उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था व उन्होंने आपकी उम्मीद छोड़ दी थी और कह दिया था कि वे जहाँ ले जाना चाहें इन्हें ले जा सकते हैं। हम सब परिवार के लोग मिलकर सोच रहे थे कि क्या करना चाहिए, कहाँ ले जाना चाहिए कि तभी एक डा. साहब आए और कहने लगे कि आपके पिताजी को होश आ गया है, अब आप जाकर मिल सकते हैं। तब मैंने अपने बच्चों से कहा कि मेरे पास श्रील गुरु महाराज जी, विष्णु महाराज जी एवं यति महाराज जी आए थे। उन्होंने मुझ से कहा था कि मुझे कुछ नहीं होगा और इस प्रकार कह कर तीनों गेरे पास से चले गए ऐसे होते हैं गुरु, वैष्णव और भगवान।

यह में कोई कहानी नहीं लिख रहा हूँ। जो घटना मेरे साथ घटी, सिर्फ वही लिख रहा हूँ। इन्हीं बातों से मैं गुरु-वैष्णव भगवान के श्रीचरणों में कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि जन्म-जन्म मुझे यही गुरु मिलें व में इनका दास बनूँ।

तिथिः 28 मार्च, 2010
आपके दासों का दास,
बालकिशन दास।
पहाड़ गंज, नई दिल्ली।