मेरे दो शब्द
श्री गुरु पूजा विशेषांक के बारे में लिखने बैठा तो न जाने कितनी गुरु तत्त्व की व गुरुपूजा की शास्त्रीय बातें दिमाग में घूम गयी । सबसे पहले तो मुझे याद आया कि श्रीहरि भक्ति विलास नामक ग्रन्थ में लिखा है कि शिष्य के लिये गुरु इतने महत्त्वपूर्ण होते हैं कि उसे चाहिए कि वह भगवान् की पूजा से भी पहले अपने गुरु की पूजा करें अन्यथा उसके सारे अनुष्ठान असफल हो जायेंगे* उद्धव जी को तो भगवान् श्री हरि अपने मुखारविन्द से कहते हैं कि हे उद्धव ! श्री गुरुदेव सर्वदेवमय होते हैं** भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के पार्षद एवं श्रीचैतन्य चरितामृत जैसे अद्वितीय ग्रन्थ के रचनाकार श्रील कृष्ण दास कविराज गोस्वामी जी गुरु तत्त्व के बारे में कहते हैं कि तमाम शास्त्रों के प्रमाणों का अवलोकन करने से मालूम पड़ता है कि गुरुदेव साक्षात् श्रीकृष्ण के ही रूप होते हैं। अपने शरणागतों पर कृपा करने के लिये श्रीकृष्ण गुरु रूप में इस संसार में आते हैं। *** गौड़ीय वैष्णवाचार्य भास्कर श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी अपने ‘श्रीगुरुदेवाष्टक’ के सातवें श्लोक में कहते हैं कि सभी शास्त्रों में गुरुदेव जी को साक्षात् श्रीहरि ही कहा गया है तथा सज्जनों का अनुभव भी यही है कि गुरुदेव साक्षात् श्रीहरि ही हैं किन्तु स्वरूपतः गुरुदेव की भगवान श्री हरि से अभिन्नता उनके अत्यन्त प्रियतम् होने के कारण है।
श्री कृष्ण चैतन्य सन्देश शास्त्रों के तात्पर्य को समझने के लिये गुरु कृपा का होना अत्यन्त आवश्यक है श्वेताश्वतर उपनिषद में कहते हैं कि जिसकी जैसी अनन्य भक्ति भगवान में है, जैसा सम्मान भगवान के प्रति है वैसी ही भक्ति, वैसा ही सम्मान गुरु के प्रति भी है, तो उसके हृदय में ही शास्त्रों के गूढ़ रहस्य प्रकाशित होते हैं।
आज गुरु पूजा विशेषांक के सम्बन्ध में दो शब्द लिखने में मुझे कितना आनन्द आ रहा है, में वर्णन नहीं कर सकता मुझे श्रीराम नवमी का वह पावन दिवस याद आ रहा है जब बड़ी चहल-पहल व हर्षोल्लास के साथ गुरु पूजा का चण्डीगढ़ स्थित श्री चैतन्य गौड़ीय मठ में विराट आयोजन किया जा रहा था। मुझे अभी तक याद है कि प्रातः काल जब मेरी नींद खुली तो उसके काफी देर बाद श्रीपाद नित्यानन्द प्रभुजी ने आरती की घण्टी बजायी । मैं नहा-धोकर तिलक व संध्या-वन्दना कर के आरती में पहुंचा । वैष्णव लोग बड़े आनन्द के साथ आरती गा रहे थे। श्रील गुरुमहाराज जी अन्य दिनों की अपेक्षा आज कुछ जल्दी ही आरती में आकर सभी को दर्शन दे कर कृतार्थ कर रहे थे। वे भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु व श्री श्रीराधा- – माधव जी की आरती के माधुर्य का आस्वादन कर रहे थे। धीरे-धीरे भक्तों की संख्या बढ़ती गयी। आरती के बाद एक बड़ी संख्या के साथ भक्तों ने “जय राधे जय कृष्ण जय वृन्दावन’ कीर्तन गाते हुए व नृत्य करते हुए श्रीमन्दिर परिक्रमा की परिक्रमा में आगे-आगे थे परम पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति शरण त्रिविक्रम महाराज, उनके कुछ पीछे अपार करुणा के सागर शिष्य वात्सल्य के विग्रह श्रील गुरु महाराज जी तथा उनके पीछे हर्षोल्लास में नृत्यकीर्तन करता हुआ वैष्णव समाज।
मंगल आरती व श्रीमन्दिर परिक्रमा के बाद सभी महात्मा अपने-अपने कमरों में चले गये । परन्तु भटिण्डा, जालन्धर तथा मानसा के भक्तों ने श्रीमन्दिर परिक्रमा के तुरन्त बाद ही सत्संग भवन में जहां गुरु पूजा का अतिशुभ अनुष्ठान होना था, को पुष्प मालाओं से सजाना प्रारम्भ कर दिया। कुछ भक्त श्रील गुरुमहाराज जी की प्रसन्नता के लिये परम गुरुजी के कमरे को व उनके समाधी मन्दिर को सजाने में जुट गये । चण्डीगढ़ के भक्त लोग बड़े भाव के साथ सत्संग भवन, श्रीमन्दिर व साधुनिवास की सफाई में जुट गये जबकि जम्मू, लुधियाना व होशियारपुर की भक्ताओं ने गुरुजी के कमरे से लेकर गुरु पूजा के स्थान तक के रास्ते को फूलों से तथा रंगोली से सजाया । लगभग साढ़े आठ बजे श्रील गुरु महाराज जी को पवित्र शंख ध्वनि व संकीर्तन के साथ ससम्मान सत्संग भवन तक लाया गया। मुस्कराते हुए श्रील गुरु महाराज जी ने सत्संग भवन की सजावट को व वहां पर पहले से ही उपस्थित भक्तों को कृपादृष्टि से निहारा तथा पुजारी श्रीपाद नित्यानन्द प्रभु को कुछ निर्देश दिया और स्वयं परम गुरुजी की शास्त्रीय विधानानुसार पूजा करने लगे। सभी भक्त बड़ी उत्सुकता के साथ श्रील गुरु महाराज जी को गुरु पूजा करते हुए देख रहे थे। कोई कोई भक्त उनकी इन दिव्य क्रिया मुद्राओं को अपने कैमरे में संरक्षित करते जा रहे थे।
गुरु महाराज जी द्वारा परम गुरुजी की पूजा पूरी हो जाने के बाद गुरु महाराज जी ने वैष्णव- आचार, अर्थात् वैष्णवों को मर्यादा प्रदान व वैष्णव सम्मान का आदर्श प्रस्तुत करते हुए सर्वप्रथम अपने गुरुवर्ग परम पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति शरण त्रिविक्रम महाराज जी को ससम्मान चन्दन माला व वस्त्रादि देकर उन्हें दण्डवत् प्रणाम किया। तत्पश्चात् श्रील गुरु महाराज जी ने अपने सभी सन्यासी व ब्रह्मचारी गुरु भाइयों को चन्दन – माला व वस्त्रादि देकर सम्मान किया। बड़ा ही अद्भुत, हृदय को प्रफुल्लित करने वाला दृश्य था वह। दीनता व वैष्णव मर्यादा की मूर्तिस्वरूप स्वयं गुरु महाराज जी एक-एक वैष्णव को अपने श्रीहस्तों से चन्दन लगाते, उन्हें माला पहनाते तथा प्रणामी व वस्त्र देकर उन्हें दण्डवत् प्रणाम करते हुए उनका सम्मान करते। लगभग दस बजे तक यह कार्यक्रम चला। इसके बाद दिल्ली के श्रीपाद योगेश जी व हैदराबाद के श्रीपाद कृष्ण शरण प्रभु ने तीव्रता से स्टेज को जो कि पुष्पों से भर गयी थी, को साफ किया एवं यथास्थान श्रील गुरु महाराज जी का व अन्यान्य वैष्णवों के बैठने के लिये आसन लगाया। कृपा करके श्रील गुरु महाराज जी आसन पर विराजमान हुए। हमारे गुरु भाईवर्ग में से श्रीपाद नित्यानन्द प्रभु जी ने गुरुमहाराज जी की उनके इस आविर्भाव दिवस पर पूजा अर्चना करने के पश्चात उनकी श्रद्धा के साथ आरती की व सभी भक्तों ने खड़े होकर श्रील गुरु महाराज जी के सम्मान में आरती गायी । भटिण्डा के पूज्यपाद भूत भावन प्रभु (श्रीभूपेन्द्र जी), श्री राम प्रभु जी, श्रीमती कान्ता रानी तथा दिल्ली की श्रीमति विष्णुप्रिया अग्रवाल ने सामुहिक रूप से गुरुजी की महिमा कीर्तन करते हुए “हे मेरे गुरुदेव करूणा सिन्धु करुणा कीजिए” एवं “तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बन्धु सखा तुम्हीं हो”-दो भजन गाये । इन भजनों के गाने से सत्संग भवन में जो उल्लासितमय वातावरण बना, उससे उत्साहित होकर जम्मू की श्रीमति गंगा देवी मिश्रा जी ने ‘आज तो बधाई बाजे नन्दभवन में’ गाकर सभी भक्तों के मन को अपनी ओर बरबस आकर्षित कर लिया।
इसके बाद कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ श्रील गुरुमहाराज जी को पुष्पान्जली अर्पित करने का । इस कार्यक्रम में सत्संग भवन में श्रील गुरु महाराज व अन्याय सन्यासी वर्ग मंच पर विराजमान थे। सारा ब्रह्मचारी वर्ग स्टेज के पास ही कालीन के ऊपर बिछी श्वेत वर्ण की चादर के ऊपर बैठा संकीर्तन कर रहा था। इनके पीछे बैठा था भक्तों का पुरुष समाज तथा एक ओर बैठा था स्त्री समाज । सभी के मध्य दो पक्तियां बनी थी जिसमें एक पक्ति से पुरुष वर्ग गुरुजी को माला पहना रहा था और दूसरी पंक्ति में महिला वर्ग गुरुजी के चरणों में माला व पुष्पादि चढ़ा रहा था । कोई-कोई महिला गुरुजी को माला पहनाने की भावना से श्रद्धा सेलाई पुष्पों की माला श्रीपाद योगेशजी के हाथ में दे देती तो वह उसे गुरु महाराज जी को पहना देते । अहेतुकी कृपामय श्रीलगुरुदेव अपने आविर्भाव दिवस पर प्रसन्न होकर सभी की सेवा ग्रहण कर रहे थे। इस कार्यक्रम के बाद हर वर्ष की तरह श्रीपाद चिद्घनानन्द दास ब्रह्मचारी तथा डा. अरुण मित्तल ने गुरुजी की वाणी के संग्रह की अंग्रेजी पुस्तिका “Golden Sayings” व भक्ति विनोद ठाकुर जी द्वारा रचित ” शरणागति’ का अंग्रेजी संस्करण के लघु ग्रन्थ को श्रील गुरु महाराज जी के कर कमलों में देकर विमोचन करवाया । तत्पश्चात श्रील गुरु महाराज जी ने अपने मुखारविन्द से भक्तों पर कृपा करने के लिए श्री राम नवमी के पावन अवसर के उपलक्ष में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का तत्त्व व उनकी महिमा का बरवान किया। सभा के अन्त श्रील गुरुदेव जी ने श्रीपाद योगेश जी को श्री राम जी का भजन करने को कहा। श्रील गुरु महाराज जी की आज्ञा पालन करने के लिये योगेश जी ने रामचरित मानस की चौपाइयों का उच्चारण करते हुए राम नाम संकीर्तन किया।
श्रीराम नवमी का व्रत होने की वजह से दोपहर में भोग आरती के बाद स्थानीय व बाहर से आये भक्तों को फलाहार द्वारा अनुकल्प करवाया गया । सायंकालीन आरती के बाद चण्डीगढ़ मठ के सत्संग भवन में एक विशेष सभा का आयोजन किया गया। जिसमें श्रीमठ के सन्यासी वर्ग ने श्रील गुरुमहाराज जी की महिमा गायी तथा अन्त में श्रील गुरु महाराज जी ने भी अहैतुकी कृपा करके दीनता के साथ अपने मुखारविन्द से हमें अमृतमय उपदेश प्रदान किये। जिनका इसी पत्रिका के पृष्ठ 6 से लेकर 16 तक वर्णन किया । अगले दिन अर्थात 17 अप्रैल वीरवार को प्रातः काल विभिन्न प्रकार के व्यन्जनों का श्री श्रीगुरु गौरांग श्री श्रीराधा माधव जी को भोग लगाया गया और उससे बने महाप्रसाद के द्वारा सभी भक्तों को परितृप्त करवाया गया।
अतः 15 अप्रैल मंगलवार का पहला दिन गुरु पूजा की तैयारी में, दूसरा दिन अर्थात् 16 अप्रैल बुद्धवार का दिन गुरुपूजा उत्सव में तथा 17 अप्रैल वीरवार का तीसरा दिन गुरु पूजा के उपलक्ष में हुए भण्डारे – महोत्सव के रूप में मनाया गया। इस प्रकार तीन दिवसीय श्रील गुरुमहाराज जी का 73वां अविर्भाव महोत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया। जिसकी महकी महकी सुगन्ध इतने महीने के बाद भी वातावरण में फैली हुई है तथा उसी पावन स्थल से जहां ये गुरु पूजा महोत्सव मनाया गया, आज ये सुगन्ध इस गुरु पूजा विशेषांक के रूप में आपके पास आ रही है। प्रस्तुत गुरुपूजा विशेषांक का सारा श्रेय मेरे शिक्षागुरु पूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्री श्रीमद् भक्ति सर्वस्व निष्किंचन महाराज जी को जाता है, जिनकी प्रेरणा उत्साह व निर्देशन में इतना महत् कार्य सम्पन्न हुआ।
प्रस्तुत विशेषांक मुख्यतः तीन भागों में है- पहला भाग तो इसमें है कि गुरु पूजा के शुभावसर पर आयोजित रात्रीकालीन सभा में किस वैष्णव ने श्रील गुरु महाराज जी के सम्बन्ध में क्या कहा व स्वयं गुरुजी ने क्या कहा। दूसरा भाग है कि इसी अतिशुभ दिवस में श्रील गुरु महाराज जी के कर कमलों में पूज्यपाद निष्किंचन महाराज जी द्वारा जो पुष्पान्जली पुस्तिका भेंट की गयी थी, उसके लेख । इसके इलावा हमारे गुरु भाई श्रीपाद चिद्घनान्द दास बह्मचारी जी ने श्रीमठ के कुछ शिष्य / शिष्याओं को गुरुजी की महिमा लिखने के लिए एक पत्र भेजा था विशेषांक के तीसरे भाग में वह पत्र तथा विशेषांक छपने तक जो जो जबाव हमारे पत्रिका के कार्यालय में पहुंचे, वे प्रकाशित किये गये हैं।
अन्त में मैं उन सभी वैष्णवों का हार्दिक धन्यवाद करता हूं। जिन्होंने इस विशेषांक को छपवाने में व आप तक भिजवाने में हमारी सहायता की ।
वैष्णवदासानुदा
अभय चरण दास