श्रीगौड़ीय मठ वाले ही देवी-देवताओं का यथार्थ सम्मान करते हैं। जो लोग देवी-देवताओं को अपने किसी स्वार्थ अथवा धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की कामना को पूरा कराने में सहायक अर्थात् देवी-देवताओं को अपना सेवक बना लेना चाहते हैं-गौड़ीय मठ उनके कार्यों में बाधा देता है। श्रीगौड़ीय मठ ने मुझे शिक्षा दी है कि देवी-देवताओं से अपने लौकिक अपस्वार्थों की पूर्ति कराने की सेवा मत करवाना। उन्हें अपना सेवक, अपने बगीचे का माली या अपनी प्रजा मत बनाना। उनके पास से अपस्वार्थों का अर्थात् दुनियाँ की नाशवान् वस्तुओं का दोहन करने मत जाना। कहने का मतलब कि उनसे दुनियावी वस्तुएँ मत माँगना, उनसे बनियागीरी मत करना। उनसे अपनी आत्मवृति के विकास के लिए प्रार्थना करना, क्योंकि आत्मवृति के विकास से ही अधोक्षज (इन्द्रिय ज्ञान से परे) भगवान् प्रसन्न होते हैं।