एक बार बाबाजी महाराज नवद्वीप में अपनी भजन-स्थली पर बैठकर उच्चःस्वर से हरिनाम कीर्तन कर रहे थे, साथ-साथ अन्यान्य लोग भी बाबाजी महाराज के पीछे पीछे श्रीहरिनाम – संकीर्तन कर रहे थे। उस समय, एक व्यक्ति वहाँ आकर नाना प्रकार के अश्रु – पुलकादि विकार दिखाने लगा। अन्यान्य भक्तों ने सोचा कि श्रीहरिनाम – संकीर्तन में इनका खूब भाव उत्पन्न हो गया है, इन्होंने सिद्ध दशा लाभ कर ली है। बाबाजी महाराज ने इस प्रकार भाव प्रदर्शनकारी व्यक्ति को एक क्षण की देरी किये बिना वहाँ से जाने का आदेश दे दिया, बाध्य होकर वह व्यक्ति उस स्थान से चला गया। उस व्यक्ति के जाने के बाद बाबाजी महाराज ने कहा, “जिनका वास्तव में प्रेम होता है, वे किसी के भी सामने उसे प्रकाश नहीं करते। वे उसे खूब छिपाकर रखते हैं। सती-स्त्रियाँ जिस प्रकार किसी को भी अचानक अपना अंग दिखाने में अत्यन्त लज्जित होती हैं एवं बाहर से हर क्षण अपने शरीर को छिपाने के भाव से ढककर रखती हैं, वास्तविक प्रेमिक भक्त भी उसी प्रकार भक्ति के लक्षणों को दूसरों के सामने प्रकाशित करने में लज्जित महसूस करते हैं एवं विशेष रूप से छिपाकर उसका संरक्षण करते हैं।