अपराध से मुक्त होने का उपाय
प्रमादे यद्यपि हय अन्ये विष्णु – ज्ञान।
तबे अनुतापे करि विष्णुतत्त्वध्यान ।।
श्रीविष्णु स्मरिया करि अपराध क्षय।
यत्ने देखि, आर ना से अपराध हय ।।
पूर्व – दोष – क्षमाशील भक्तेर बान्धव ।
दयार सागर कृष्ण क्षमार अर्णव ।।
बहुदेवसेविसंग करिव वर्जन।
एकेश्वर वैष्णवेर करिव पूजन ।।
हरिदासपदे भक्तिविनोद ये जन।
हरिनाम – चिन्तामणि ताहार जीवन ।।
प्रमाद से यदि किसी और में विष्णु ज्ञान हो जाये, तब अनुताप करके, विष्णुतत्त्व का स्मरण करके, फिर से अपराध न हो जाये, इसके लिए सावधान रहना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण भक्तों के बान्धव हैं, दया के सागर हैं। भगवान श्रीकृष्ण क्षमा के समुद्र हैं इसलिए वे अपने भक्तों के पिछले किये दोषों को क्षमा कर देते हैं। बहुत से देवी-देवताओं की सेवा करने वाले का संग त्याग करना चाहिए तथा अनन्य भाव से एकमात्र भगवान की सेवा करने वाले वैण्श्व की सेवा-पूजा करनी चाहिए। श्रीभक्तिविनोद ठाकुर जी कहते हैं कि जो लोग नामाचार्य श्रीहरिदास ठाकुर जी के चरणों में शरणागत होंगे, ये हरिनाम चिन्तामणि उनका जीवन स्वरूप होगा।
इति श्रीहरिनाम – चिन्तामणौ देवान्तरे स्वातन्त्र्यज्ञानापराध -विचारोनाम पन्चमः परिच्छेदः।
श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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श्रीमद्भागवतम
१-८-४३
श्रीकृष्ण कृष्णसख वृष्ण्यृषभाननिष्ठग् राजन्यवंशदहनानपवर्गवीर्य ।
गोविन्द गोद्विजसुरार्तिहरावतार योगेश्वराखिलगुरो भगवन्नमस्ते ।।
हे श्रीकृष्ण, हे अर्जुन-मित्र, हे वृष्णिकुल के प्रमुख ! आप उन समस्त राजनीतिक दलों के ध्वसक हैं, जो इस धरा पर उपद्रव फैलानेवाले हैं। आपका शौर्य कभी घटता नही। आप परम धाम के स्वामी हैं और गायों, ब्राह्मणों तथा भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए अवतार लेते हैं। आपमें सारी योग शक्तियाँ हैं और आप समस्त विश्व के उपदेशक (गुरु) हैं। आप सर्वशक्तिमान ईश्वर हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करती हूँ।
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