संसारी व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा में अपने-अपने वर्ण के धर्मों का पालन करें

चातुर्वर्ण वर्णधर्म करिबे संसार।
शुद्ध कृष्णभक्ति -बले हबे सदाचार ।।

चातुर्वर्ण यद्यपि श्रीकृष्ण नाहि भजे।
वर्णधर्माचारे थाकि’ रौरवेते मजे ।।

वर्ण बिना गृहस्थेर नाहि आर धर्म।
वर्णधर्माचारे गृहस्थेर सब कर्म ।।

वर्णधर्म ए संसार निर्वाह करिबे ।
यावदर्थ – परिग्रहे श्रीकृष्ण भजिबे ।।

निसर्गतः विधिवाक्य ये पर्यन्त नर।
वर्णधर्म स्वनिर्वाहे करिबे आदर ।।

भक्तियोग – नामे एइ तत्त्वनिरूपण।
भक्तियोगे भावोदय सिद्धान्तवचन ।।

भावोदये विधिर प्रवृत्ति नाहि रय।
भावोदित कार्य देहयात्रा सिद्ध हय ।।

गृहिवैष्णवेर एइ अद्वयसाधन ।
श्रीविष्णु अद्वयतत्त्वे द्वैतनिवर्त्तन ।।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र अपने वर्ण-धर्म का पालन करते हुये शुद्ध श्रीकृष्ण – भक्ति का आचरण करेंगे। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र एवं ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी- ये चारों वर्णाश्रमी अपने. आश्रम और वर्ण का पालन करते हुए भी यदि श्रीकृष्ण का भजन नहीं करते हैं, तब उन्हें रौरव नरक में जाना पड़ेगा। गृहस्थ अपने वर्ण-धर्म का आचरण करते हुए. जिससे जीवन-यात्रा का निर्वाह हो सके, उतना कमाते हुए श्रीकृष्ण का भजन करेंगे। संसार के विषयों से जब तक किसी का स्वाभाविक वैराग्य न हो जाये तब तक उसे अपने वर्ण व आश्रम के नियमों का आदर तथा पालन करना चाहिए। भक्ति योग में इसी तत्त्व को समझाया गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि भक्तियोग ही हमारे हृदय में भगव‌द्भावों को उदय करवायेगा जिसके द्वारा सांसरिक नियमों के प्रति हमारी प्रवृति स्वाभाविक ही खत्म हो जायेगी अर्थात् हरिभजन करते – करते जब जीव के हृदय में भगवद् – भाव उत्पन्न होने लगते हैं तो उसमें सारी भोग प्रवृतियाँ खत्म हो जाती हैं और उसकी देह-यात्रा तो स्वाभाविक रूप से ही चलने लगती है। अपने घर में, स्त्री में व अपने शरीर सम्बन्धी व्यक्तियों में आसक्त वैष्णवों को भक्ति योग रूपी अद्धितीय साधना को करना चाहिए। इस प्रकार की विष्णु भक्ति के द्वारा ही जीव का संसार के प्रति ‘मैं और मेरा’ का झूठा भाव समाप्त हो जाता है।

श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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श्रीमद्भागवतम
१-९-२३

(भीष्मदेव ने युधिष्ठीर से कहा)

भक्त्यावेश्य मनो यस्मिन् वाचा यन्नाम कीर्तयन् ।
त्यजन् कलेवरं योगी मुच्यते कामकर्मभिः ।।

जो भगवान् भक्ति तथा चिन्तन से एवं पवित्र नाम के कीर्तन से, भक्तों के मन में प्रकट होते हैं, वे उन्हे उनके द्वारा भौतिक शरीर को छोडते समय सकाम कर्मों के बन्धन से मुक्त कर देते हैं।
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