श्रीमद्भगवतं
४-१२-३६
(मैत्रेय मुनी ने विदुर से कहा)
यद् भ्राजमानं स्वरुचैव सर्वतो लोकास्त्रयो ह्यनु विश्वाजन्त एते ।
यन्नाव्रजञ्जन्तुषु येऽननुग्रहा व्रजन्ति भद्राणि चरन्ति येऽनिशम् ।
जो लोग दूसरों पर दयालु नहीं होते, वे स्वतेजोमय इस वैकुण्ठलोक में नहीं पहुँच पाते, जिसके प्रकाश से इस विश्व के सभी लोक प्रकाशित हैं। केवल वे ही पुरुष, जो निरन्तर अन्य प्राणियों के कल्याणकारी कार्यों में लगे रहते हैं, वैकुण्ठलोक पहुँच पाते हैं।