चारों वर्णों की जीवनयात्रा की विधि
जगते मानवगण वर्णधर्माचरि’।
करिवेक देहयात्रा धर्मपथ धरि’ ।।
मनुष्य को चाहिए कि इस संसार में वह अपने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र आदि वर्णों, तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ एवं वानप्रस्थादि आश्रमों के नियमों के अनुसार आचरण करे। अपने अपने वर्ण तथा आश्रम के नियमों को पालन करते हुए अपनी देहयात्रा को चलाना भी सनातन धर्म ही कहलाता है क्योंकि ये क्रियाएँ साधक को सनातन धर्म अर्थात् आत्म-धर्म की ओर ले जाती हैं।
अन्त्यज लोगों की जीवन-यात्रा विधि
संकर अन्त्यज सबे त्यजि’ नीचधर्म
शूद्राचारे करे सदा संसारेर कर्म ।।
संकर अन्त्यज थाकिवेक शूद्राचारे।
चातुर्वर्ण बिना धर्म नाहिक संसारे ।।
ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि चारों वर्णों से अलग वर्णसंकर (जहाँ पर स्त्री उच्चवर्ण की व पुरुष निम्न वर्ण का हो, ऐसे विवाह को प्रतिलोम विवाह कहते हैं तूथा इस प्रकार के वैवाहिक जीवन से उत्पन्न सन्तान को वर्णसंकर कहते हैं) तथा अन्त्यज जाति के लोग अपनी जीवन यात्रा को चलाने के लिए अपने नीच कार्यों को छोड़कर शूद्र के नियमों का पालन करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि इस संसार में चार वर्णों को छोड़कर अन्य और कोई भी वर्ण नहीं है जिसका कि वे वह पालन कर सकें।
श्रीहरिनाम चिन्तामणि
_ _ _ _ _ _ _ _ _ _