जीवेर स्वरूप हय कृष्णेर नित्यदास

अर्थात् जीव स्वरूपतः कृष्ण का नित्यदास है । प्रत्येक अणु – परमाणु में श्रीहरि अवस्थित हैं । वे मूर्ख से उसकी मूर्खता और पण्डित से उसका पाण्डित्य छुड़वाकर सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं । जिसकी भोग की वासना, बड़ा बनने की आशा और साधु के रूप में प्रशंसा पाने की अभिलाषा नहीं हैं, वे ही उनकी कथाओं को सुनेंगे । किन्तु जो इन सब तुच्छ वस्तुओं को चाहते हैं, उनके कानों में प्रभु की आवाज नहीं पहुँचेगी । लेकिन उन्हें यह जानना चाहिए कि मृत्यु अवश्यम्भावी है । ‘अद्य वाब्दशतान्ते वा मृत्युर्वै प्राणिनां ध्रुवः’ अर्थात् आज या सौ वर्षो के बाद प्राणियों की मृत्यु निश्चित है।

हम चैतन्य वस्तु हैं । किन्तु चेतन होकर भी जब हम लोग भगवान के भक्तों के निकट न जाएँ, उनकी कथाओं को न सुनें, तो हमारा सर्वनाश अनिवार्य है।

श्रीलप्रभुपाद
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श्रीकृष्ण-विमुखता के द्वारा व्यक्तिगत अथवा सामूहिक किसी प्रकार की भी शान्ति नहीं मिल सकती

जिस प्रकार जगत में पड़ने वाली सूर्य की किरणों को यह जगत न तो बढ़ा सकता है और न ही खिला सकता है, केवल मात्र सूर्य ही उन किरणों को समृद्धि प्रदान कर सकता है, ठीक इसी प्रकार भगवान् से निकले जीवों को भी यह जगत् सुख अथवा शान्ति नहीं दे सकता। इन जीवों को यदि कोई सुख-शान्ति दे सकते हैं तो वे हैं- एक मात्र भगवान् । भगवान् को छोड़कर कोई भी इन जीवों को सुख-शान्ति नहीं दे सकता। एक अन्य पहलु से देखा जाए तो शान्ति के अभाव में शान्ति नहीं मिलती। हमारी सभी प्रकार की इच्छाएँ भगवान् के सर्वोत्तम स्वरूप- अखिल रसामृत मूर्ति नन्दनन्दन श्रीकृष्ण ही पूर्ण कर सकते हैं। इसलिए नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की अनुरागमयी भक्ति ही जीवन में परम शान्ति प्रदान कर सकती है।

श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज
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