पिछले किये पापों को याद करके जो श्रीकृष्ण के शरणागत साधु की निन्दा करता है, वह नामापराधी है

कृष्णनामे रुचि यबे हइबे उदय ।
एकनामे पूर्वपाप हइवेक क्षय ।।

पूर्वपाप गन्ध तबु थाके किछुदिन।
नामेर प्रभावे क्रमे हया पड़े क्षीण ।।

शीघ्र सेइ पापगन्ध विदूरित हय।
परम धर्मात्मा बलि’ हय परिचय ।।

श्रीकृष्णनाम में जब रुचि उदय होती है तब एक हरिनाम से ही पिछले सब किये पाप खत्म हो जाते हैं। हाँ, किसी-किसी के जीवन में देखा जाता है कि उसमें पिछले किये पापों की कुछ गन्ध है अर्थात् अभी गन्दे पापमय थोड़े संस्कार बाकी हैं, परन्तु इसमें घबराने की कोई बात नहीं, श्रीहरिनाम के प्रभाव से पाप की वह गन्ध भी धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। तब परम धर्मात्मा रूप से उसका परिचय निखर कर सामने आता है।

ये कयेक दिन सेइ गन्ध नाहि याय।
साधारण – जन चक्षे पाप बलि’ भाय ।।

से पाप देखिया येइ साधुनिन्दा करे।
पूर्वपाप लक्षि’ पुनः अवज्ञा आचरे ।।

सेइ त’ पाषण्डी वैष्णवेर निन्दा – दोषे।
नाम – अपराधे मजि’ पड़े कृष्णरोषे ।।

परन्तु जिन दिनों में वह पाप-गन्ध खत्म हो रही होती है तो साधारण लोगों की नज़रों में वह पाप सा ही लगता है, ऐसे में अथवा शरणागति ग्रहण करने से पहले किये हुये पापों को लक्ष्य करके जो वैष्णव अवज्ञा करते हैं या वैष्णवों का निरादार करते हैं, वे पाखण्डी हैं। वैष्णवों की निन्दा रूपी दोष के कारण वे नाम – अपराधी बन पड़ते हैं। श्रीकृष्ण भी उनसे असन्तुष्ट हो जाते हैं।

श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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अनन्त जीवन वेदान्त पढ़ने से मुक्ति नहीं होगी । अनन्त काल नाक दबाकर जमीन से दस बीस हाथ ऊपर उठने पर भी मंगल नहीं होगा, परन्तु स्वयं भागवत स्वरूप भक्तों के मुख से श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने से संसार के सभी जीवों का मंगल निश्चित रूप से होगा।

श्रीलप्रभुपाद
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गुरु जी की सेवा साक्षात् भगवान् की सेवा है। कारण, अपने गुरुदेव जी में भगवान् के प्रति प्रीति को छोड़कर और कुछ भी मैंने नहीं देखा। वे ये जानते ही नहीं कि श्रीकृष्ण की सेवा को छोड़कर और भी कोई स्वार्थ होता है।

श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज
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गरुड पुराण

किटपक्षिमृगाणां च हरौ संन्यस्तचेतसाम् ।
ऊर्ध्वामेव गतिं मन्ये किं पुनर्जानिनां नृणाम् ।।

जहाँ कीटकों, पक्षियों तथा पशुओं तक को भगवान् की दिव्य भक्ति के प्रति पूर्णतया समर्पित होने पर उच्चतम सिद्धि-पद तक ऊपर उठने का आश्वासन प्राप्त हो, वहाँ मनुष्यों में ज्ञानियों के विषय में क्या कहा जाय ?
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