मायावादी नामाभास के द्वारा मुक्ति का आभास रूपी सायुज्य मुक्ति की प्राप्ति

नामाभास कल्पतरू मायावादिजने।
अभीष्ट अर्पण करे सायुज्य – निर्वाणे ।।

सर्वशक्ति नामे आछे ताइ नामाभास।
प्रतिबिम्ब हइलेओ देन मुक्त्याभास ।।

पन्चविध मुक्ति – मध्ये ‘सायुज्य’ – आभास ।
भव – क्लेश नाशे, मात्र, फले सर्वनाश ।।

नामाभास कल्पतरु के समान है, इसलिए मायावादी को भी उसका अभीष्ट – सायुज्य मुक्ति प्रदान करता है। हरिनाम सर्वशक्तिमान है, इसलिए प्रतिबिम्ब नामाभास होने पर भी यह हरिनाम मायावादी को मुक्ति का आभास प्रदान करता है। पाँच प्रकार की मुक्तियों में सायुज्य तो मुक्ति का आभास मात्र है, जिससे केवल संसारी चक्र समाप्त होता है परन्तु भक्त की दृष्टि में उसका यह फल सर्वनाश के समान है क्योंकि सायुज्य मुक्ति को प्राप्त हुआ जीव कभी भी श्रीकृष्ण-प्रेम को प्राप्त नहीं कर सकता।

मायावादी कभी भी नित्य सुख को प्राप्त नहीं कर पाता

मायाय मोहित जन ताहे सुख माने।
सुखाभास मात्र पाय सायुज्य – निर्वाणे ।।

सच्चित् – आनन्द – सेवा परम – निवृति ।
सायुज्ये ना पाय कभु हतकृष्णस्मृति ।।

याँहा नाहि भक्ति, प्रेम, नित्यता विश्वास।
नित्यसुख कैछे ताहे हइबे प्रकाश ।।

माया से मोहित व्यक्ति उसी को ही अर्थात् सायुज्य – मुक्ति को ही सुख समझता है क्योंकि सायुज्य मुक्ति में उसे सुख का आभास होता है। वास्तविक मुक्तावस्था तो सच्चिदानन्द भगवान की सेवा की प्राप्ति में है। श्रीकृष्ण – स्मृति के अभाव में सायुज्य – मुक्ति को प्राप्त होने वाला जीव कभी भी श्रीकृष्ण – सेवा प्राप्त नहीं कर सकता। जहाँ पर भक्ति की नित्यता अथवा कृष्ण – प्रेम की नित्यता में विश्वास नहीं है, वहाँ पर नित्यसुख की प्राप्ति कैसे संभव है।

श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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