नामाभास का फल

नामाभास – दशातेओ अनेक मङ्गल।
जीवेर अवश्य हय सुकृति प्रबल ।।

नामाभासे नष्ट हय आछे पाप यत।
नामभासे मुक्ति हय कलि हय हत ।।

नामाभासे नर हय सुपंक्ति – पावन ।
नामाभासे सर्वरोग हय निवारण ।

सकल आशङ्का नामाभासे दूर हय।
नामाभासी सर्वरिष्ट हैते शान्ति पाय ।।

नामाभास की स्थिति में भी बहुत मंगल होता है। एक तो जीव की सुकृति प्रबल होती चली जाती है। दूसरा नामाभास से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा साथ ही मनुष्य के अन्दर भरी हुई भोगों की वासनाएँ हर तरह का छल-कपट व झगड़े की भावनाएँ भी समाप्त हो जाती हैं। नामाभास के प्रभाव से पतित से पतित जीव भी अपने कुल के साथ पवित्र हो जाता है। नामाभास से जीव आसानी से मुक्ति को प्राप्त कर लेता है और साथ ही उसके सभी रोगों का निवारण हो जाता है। नामाभास से जीव के अन्दर भरे हुए सभी प्रकार के सदेह समाप्त हो जाते हैं। नामाभासी व्यक्ति सभी प्रकार के काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि शत्रुओं से मुक्त होकर पूर्ण शान्ति को प्राप्त कर लेता है।

यक्ष, रक्ष, भूत, प्रेत, ग्रहसमुदय।
नामाभासे सकल अनर्थ दूरे याय ।।

नरके पतित लोक सुखे मुक्ति पाय।
समस्त प्रारब्ध कर्म नामाभासे याय ।।

सर्ववेदाधिक सर्व तीर्थ हइते बड़।
नामाभास – सर्वशुभकर्म – श्रेष्ठतर ।।

नामाभास के प्रभाव से यक्ष, रक्ष, भूत, प्रेत, ग्रह और अनर्थ सब दूर हो जाते हैं। नामाभास के प्रभाव से सभी प्रकार के प्रारब्ध कर्म समाप्त हो जाते हैं और नामाभास के द्वारा नरकगामी व्यक्ति को भी मुक्ति की प्राप्ति होती है। सभी वेदों को पढ़ने, सभी तीर्थों की यात्रा करने तथा अनेक प्रकार के शुभ कर्मों को करने से भी अधिक है- नामाभास की महिमा अर्थात् इन सभी से नामाभास श्रेष्ठ है।

नामाभास से वैकुण्ठादि की प्राप्ति

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चतुर्वर्गदाता।
सर्वशक्ति धरे नामाभास जीवत्राता ।।

जगत् – आनन्दकर – श्रेष्ठपदप्रद ।
अगतिर एक गति सर्वश्रेष्ठ पद ।।

वैकुण्ठादि – लोकप्राप्ति नामाभासे हय।
विशेषतः कलियुगे सर्वशास्त्र कय ।।

नामाभास धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष, इन चारों को देने वाला है। इसके अतिरिक्त नामाभास जीव को उद्धार करने की पूर्ण शक्ति रखता है। ये दुनियाँ के तमाम सुखों को देने वाला तथा श्रेष्ठ पद प्रदान कराने वाला है। जिसका किसी तरह से कल्याण नहीं हो सकता, उसका भी नामाभास से कल्याण संभव है। नामाभास की स्थिति को प्राप्त करना अपने आप में ही सर्वश्रेष्ठ पद है। तमाम शास्त्र कहते हैं कि विशेषतः इस कलियुग में तो नामाभास से ही वैकुण्ठादि की प्राप्ति होती है।

श्रीहरिनाम चिन्तामणि
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अनर्थयुक्त अवस्था में श्रीराधाजी का दासी होने का सौभाग्यलाभकभी नहीं होगा । जो लोग अनर्थयुक्त अनाधिकारी अवस्था में परमश्रेष्ठ सेविका श्रीराधारानी की अप्राकृत लीलाओं की आलोचना करते हैं, वे लोग इन्द्रियारामी, प्रछन्नभोगी और प्राकृत सहजिया हैं।

श्रीलप्रभुपाद
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गुण और संख्या कभी भी एक साथ नहीं मिलते। गुणों की अधिकता में संख्या एवं संख्या के अधिक होने पर गुणों का कम होना अवश्यम्भावी है। सर्वोत्तम आध्यात्मिक उन्नति के शिखर पर पहुँचे व्यक्ति संख्या में कम भी हों तो भी उन्हीं के द्वारा जगत् के लोगों का कल्याण होता है किन्तु गुणहीन, चरित्रहीन व्यक्ति संख्या में अधिक होने पर भी उनसे किसी का कल्याण नहीं होता।

श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज
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नित्यसिद्ध ब्रजवासियों की कृपा से ही ब्रजदर्शन सम्भव

महाजनगण कहते हैं, “अप्राकृत कभु नहे प्राकृत-गोचर”। अतः जड़ नेत्रों से हम उस चिन्मय वस्तु को कैसे पहचान सकते हैं? इसीलिए ब्रजवासियों की कृपा प्रार्थना करनी होगी। उनकी कृपा से मायाजाल दूर होने पर हम श्रीधाम का स्वरूप अनुभव कर सकेंगे। हमारे गुरुवर्ग ने बताया है-श्रीरूपमंजरी और श्रीरतिमंजरी को छोड़कर ब्रज और ब्रजराज-नन्दन के दर्शन या सेवा लाभ असंभव है। इसीलिए श्रीनयनमणि-मंजरी और श्रीकमल-मंजरी की अनुकंपा से हम उनकी कृपा प्रार्थना कर रहे हैं।

श्रील भक्ति प्रज्ञान केशव गोस्वामी महाराज
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पाप का श्रेष्ठ प्रायश्चित्त- श्रीनाम-संकीर्तन है। किन्तु अपराध का प्रायश्चित्त है—अनुताप (पश्चाताप) सहित क्षमा-प्रार्थना।

श्रील भक्ति वेदान्त वामन गोस्वामी महाराज
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सत् चरित्र सद्भक्ति रूप दीपाग्नि के द्वारा जिसका दुर्जाति रूप कल्मष जल गया है। वैसा व्यक्ति चाण्डाल होते हुए भी पण्डितों के द्वारा सम्मानित है। परन्तु नास्तिक व्यक्ति वेदज्ञ होने पर भी सम्मान करने योग्य नहीं है। भगवद् भक्ति हीन व्यक्ति के सभी गुण शरीर के अलंकार की भाँति केवल रंजन मात्र हैं।

श्रील भक्ति प्रमोद पूरी गोस्वामी महाराज
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आपका वास्तविक मित्र वह है, जो आपको आध्यात्मिक पथ से फिसल कर गिरने से रोकत है।

श्रील गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज
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