महेशपण्डितः श्रीमान्महाबाहुर्ब्रजे सखा
(गौ. ग. दी. 129)
ये द्वादश गोपालों में से एक ‘महाबाहुसखा’ नाम के सखा हैं। पहले इनका श्रीपाट जीराट के पूर्व की ओर मसिपुर में था। मसिपुर के गंगा में चले जाने से इनका श्रीपाट वहाँ से सुख-सागर के निकट बेलेडाङ्गा में स्थानान्तरित हुआ। गंगा के टूट जाने से, बेलडांगा का श्रीपाट भी गंगा में निमज्जित जो जाने से वह 1334 बंगाब्द में पालपाड़ा में अवस्थित हुआ। पालपाड़ा पांचनगर ज़िला के अन्तर्गत है। अंत में श्रीपाट चाकदह के निकट काठालपुलि में स्थानान्तरित हुआ।
(श्रील प्रभुपाद का अनुभाष्य चै. च. आदि 11/321)
ये चैतन्य शाखा और नित्यानन्द शाखा दोनों में ही गिने जाते हैं। किसी-किसी के मतानुसार श्रीमहेश पण्डित यशड़ा के श्रीजगदीश पण्डित के छोटे भाई हैं। ये जगदीश, हिरण्य और महेश नाम के तीन भाई थे।
श्रीमहेश पण्डित ने श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के साथ पाणिहाटि महोत्सव में योगदान किया था एवं उत्सव के बाद श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु के साथ सप्तग्राम भी गए थे। श्रील नरोत्तम ठाकुर जिस समय खड़दह में आये थे, उस समय महेश पण्डित भी वहाँ उपस्थित थे—
महेश पण्डित आसि अतिशय स्नेहे।
नरोत्तमे विदाय करिया स्थिर नहे॥
(भक्ति रत्नाकर 8/220)
अर्थात महेश पण्डित ने आकर अतिशय स्नेह के साथ श्रीनरोत्तम को विदा तो कर दिया परन्तु उसके बाद वे उनके विरह में रोते ही रहे, स्थिर नहीं हो पाये।
श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु जिस प्रकार से पतितपावन और उदार हैं, उनके पार्षद श्रीमहेश पण्डित ने भी उसी प्रकार अत्यन्त उदार एवं पतितपावन होकर जीवोद्धार का कार्य किया। वे कृष्णप्रेम में उन्मत्त होकर नृत्य करते थे।
महेश पण्डित-ब्रजेर उदार गोपाल।
ढक्कावाद्ये नृत्य करे प्रेमे मातोयाल॥
(चै.च.आ. 11/32)
अर्थात महेश पण्डित व्रज के एक उदार प्रकृति के ग्वाले हैं, जो ढ़ोलादि वाद्य को सुनकर प्रेम में उन्मत्त हो नृत्य करने लगते थे।
श्रीचैतन्य भागवत में भी श्रीमहेश पण्डित की कथा वर्णित है।
महेश पण्डित अति परम महन्त।
(चै.भा.अ. षष्ट अध्याय)
इनके श्रीपाट का मन्दिर साधारण गृह के आकार में अभी भी है। जीर्ण-शीर्ण मन्दिर में श्रीगौर-नित्यानन्द मूर्ति है। श्रीगोपीनाथ, श्रीमदनमोहन, श्रीराधागोविन्द और श्रीशालग्राम भी विराजित हैं। मन्दिर के सामने महेश पण्डित की फूलों की समाज बेदी है।
पौषी कृष्णा-त्रयोदशी तिथि में श्रीमहेश पण्डित ने तिरोधान लीला की।
स्रोत: श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज द्वारा रचित ग्रन्थ “गौर-पार्षद” में से