सेवा करने की भावना का फल

“वैष्णवों की निष्कपट सेवा के माध्यम से सब सम्भवपर है।” एक बार श्रीमद्भक्तिरक्षक श्रीधर गोस्वामी महाराज ने मुझे उपदेश देते हुए कहा, “कभी भी कीर्तन के सुर, ताल, मान, लय इत्यादि की ओर अधिक ध्यान नहीं देकर सदैव कीर्तन के गूढ़ अर्थ तथा कीर्त्तन की रचना करने वाले भक्त के हृद्गत विचारों का अनुसरण करने का प्रयास करना। उग्रश्रवा बनना अर्थात् सदैव श्रेष्ठ वैष्णवों के मुख से ही भगवान् की वीर्यवती कथा का श्रवण करना।” मैंने साथ-ही-साथ प्रश्न किया, “महाराज सब समय श्रेष्ठ वैष्णवों के मुख से ही श्रवण करना कैसे सम्भव होगा?” श्रील महाराज ने उत्तर दिया, “सेवा के माध्यम से सब सम्भवपर है। जब-जब अवसर प्राप्त हो, श्रेष्ठ वैष्णवों की सेवा करना।”

श्रीमद्भक्तिरक्षक श्रीधर गोस्वामी महाराज जी
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