पृथ्वी के बुद्धिमान व्यक्ति अपना घमण्ड प्रकट करते हुये कह सकते हैं कि जब वे जगत की सभी बातें जानने में समर्थ हैं तो वे भगवान् को भी जान लेंगे। मनुष्य की ससीम बुद्धि की महिमा हम कितनी ही क्यों न कहें परन्तु उसकी दौड़ कहाँ तक हो सकती है? अन्त में बुद्धि अपने ही जाल में उलझ जाती है। प्रकृति के अतीत तत्त्व के विषय में बुद्धि का प्रवेश असम्भव है।

श्री श्रीमद् भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी

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