तुमि त’ चैतन्यदास, हरिभक्ति तव आश,
आश्रमेर लिंगे किबा फल? प्रतिष्ठा करह दूर,
वास तव शान्तिपुर साधु-कृपा तोमार सम्बल ॥
वैष्णवेर परिचय, आवश्यक नाहि हय,
आडम्बरे कभु नाहि जाओ।
विनोदेर निवेदन, राधाकृष्ण-गुणगान,
फुकारी’ फुकारी’ सदा गाओ ॥
आप श्री चैतन्य महाप्रभु के दास हो, अतएव आपको भगवद्भक्ति की अभिलाषा रखनी चाहिए। व्यक्ति के निजी आश्रम के बाह्य चिन्हों का क्या लाभ? कृपया भौतिक मान-सम्मान को त्यागकर शांतिपुर में वास करो। क्योंकि, भक्तों की कृपा ही आपकी एकमात्र पूँजी है। स्वयं को वैष्णव दिखाने के भव्य प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है। मात्र भौतिक समृद्धि एकत्रित करने हेतु कठिन परिश्रम न करें। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर निवेदन करते हैं कि आप सदा श्रीश्री राधा-कृष्ण के दिव्य गुणों तथा लीलाओं का उच्चस्वर में गान करो।
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अशितिम् चुतरश्चैव लक्षांस्तन जीव जातिषु भ्रमद्भिः पुरूषैः प्राप्यं मानुष्यं जन्म पर्ययात् ।
तदप्य अभलतां जातः तेषाम् आत्माभिमानिनाम् वराकाणाम् अनाश्रित्य गोविन्द चरण द्वयम् ।।
जीव को 84 लाख योनीयों से यथाक्रम उत्क्रांती करने के बाद मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। लेकिन जो श्री गोविन्द के चरणकमलों का आश्रय नही स्विकारता ऐसे दुराभिमानी, मुर्ख के लिये ऐसा महत्त्वपूर्ण मनुष्य जीवन निष्फल होता है।
ब्रह्म वैवर्त पुराण
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बाहरी रूप से लौकिक कार्यों के प्रति उदासीनता प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं करके साधक को आतंरिक रूप से वैराग्य का अभ्यास व निष्कपट मति से श्रीकृष्ण-भजन करना है। श्रीकृष्ण अविलंब ही उन्हें सांसारिक संताप से मुक्त कर देंगे।
श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज
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