गुरु महाराज (श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज) कुछ दिनों के लिए कृष्णनगर मठ में आए हुए थे। मैं भी उनके साथ वहाँ पर था। एक दिन गुरु महाराज पहली मंज़िल पर बैठे हुए थे व मुझसे कुछ लिखवा रहे थे। उसी समय एक युवक वहाँ आया और सीढ़ी पर खड़े-खड़े ही गुरुजी से कहने लगा, “स्वामी जी, क्या ईश्वर का अस्तित्व है? क्या किसी ने ईश्वर को देखा है? मैंने तो कभी नहीं देखा। आप लोग साधु वेश धारण करके लोगों के साथ छल-कपट करते हैं। ईश्वर के नाम पर पेट-पूजा करते हैं। एक सज्जन व्यक्ति को इस प्रकार नहीं करना चाहिए।”

उस लड़के की ऐसी बात सुनकर मुझे अच्छा नहीं लगा। किन्तु गुरु महाराज शांत और धीर-स्थिर थे। उन्होंने उस लड़के से प्रीति-पूर्वक कहा, “तुम वहाँ खड़े होकर क्यों बात कर रहे हो? यहाँ मेरे पास आकर बैठो, हम बैठकर बात कर सकते हैं।”

वह बैठकर बात करने के लिए तैयार नहीं हुआ और वहीं से बोलने लगा, “आप लोग सबको अफ़ीम पिलाकर उनसे अपना काम करवा लेते हो। क्या एक सज्जन व्यक्ति का इस प्रकार के कार्य करना उचित है?”

सीढ़ी पर खड़े रहकर कुछ समय तक वह इस प्रकार बोलता रहा। गुरुजी ने उसकी बातों को सुनने के बाद उससे पूछा, “तुम्हें देखने से लगता है कि तुम किसी कॉलेज के विद्यार्थी हो।”

उसने उत्तर दिया, “हाँ, मैं कॉलेज का विद्यार्थी हूँ।”

गुरु महाराजः “किस कॉलेज में पढ़ाई करते हो?”

लड़का: “कृष्णनगर कॉलेज।”

गुरु महाराजः “कृष्णनगर कॉलेज में ही क्यों?”

लड़का: “क्योंकि कृष्णनगर कॉलेज के प्रोफेसर विद्वान हैं, पिताजी ने मेरा प्रवेश (admission) उसी कॉलेज में करवाया है। ”

गुरु महाराजः “क्या अपने घर पर रहकर पढ़ाई नहीं कर सकते? पढ़ाई के लिए कॉलेज जाने की क्या आवश्यकता है?”

लड़का: “किसी के पास यदि विद्या है तो क्या हम उसका लाभ नहीं लेंगे?”

गुरु महाराजः “तुम स्वयं एक शिक्षित व्यक्ति होते हुए भी विद्या प्राप्त करने के लिए किसी श्रेष्ठ व्यक्ति के पास जाते हो। Dictionary में ‘ईश्वर’ शब्द का अर्थ है ‘श्रेष्ठ’ या ‘समर्थ’। कृष्णनगर कॉलेज के प्रोफेसर तुम्हें विद्या देने में समर्थ हैं इसलिए तुमने उनकी शरण ग्रहण की। इसका अर्थ यह है कि तुम यह मानते हो कि कोई व्यक्ति तुमसे श्रेष्ठ है। जिनके पास कोई विशेष योग्यता (ईशिता) है वह ईश्वर है। क्या तुमने ईश्वर को नहीं माना? धन प्राप्ति की इच्छा रखनेवाला व्यक्ति किसी धनी व्यक्ति की शरण ग्रहण करता है। कोई समस्या होने पर व्यक्ति किसी प्रभावशाली व्यक्ति के पास जाकर उससे अपनी समस्या के समाधान के लिए प्रार्थना करता है। कौन ईश्वर को नहीं मानता ? यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी ईश्वर को मानते हैं। यदि किसी कुत्ते के पास उससे बलवान कुत्ता आ जाए तो वह उस बलवान कुत्ते के शरणागत हो जाता है। बड़ी चींटी के आने पर छोटी चींटी उसे रास्ता दे देती है। प्रत्येक जीव का स्वयं से श्रेष्ठ एवं योग्य व्यक्ति के प्रति स्वाभाविक विश्वास है। प्रत्येक क्षेत्र में कोई न कोई ईश्वर है। विभिन्न क्षेत्रों में क्या लोग स्वयं से श्रेष्ठ एवं योग्य व्यक्ति की बात नहीं मानते? जैन धर्म और बौद्ध धर्म के लोग कहते हैं, ‘हम ईश्वर को नहीं मानते’, किन्तु जैन धर्म के लोग महावीर की शिक्षा और बौद्ध धर्म के लोग बुद्धदेव की शिक्षा को मानते हैं। क्या उन्होंने ‘महावीर’ और ‘बुद्धदेव’ को ईश्वर नहीं माना ? ईश्वर को कौन नहीं मानता?”

इस जगत् में जब हम छोटे-छोटे ईश्वरों को मानते हैं तो उन परमेश्वर को मानने में क्या आपत्ति है? छोटे-छोटे ईश्वरों को हम देख सकते हैं इसलिए मानते हैं; परमेश्वर को देखा नहीं जाता, अतएव हम नहीं मानते -यदि इस प्रकार तर्क हो तो उसका उत्तर यह है कि अपनी सीमित सामर्थ्यंवाली नाशवान इन्द्रियों (आँख, कान, नाक आदि) के द्वारा हम कितना अनुभव कर सकते हैं? जो वस्तुएँ हमारी आँखों के द्वारा देखी नहीं जा सकती, क्या उनका अस्तित्त्व नहीं है?

अलग-अलग विषय को समझने के लिए अलग-अलग प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है। जब तक वह योग्यता प्राप्त न हो, तब तक हम उस विषय को समझ नहीं सकते। उदाहरण के लिए, कई भाषाओं का ज्ञान होने पर भी यदि हम उर्दू भाषा नहीं जानते, तो उन अन्य भाषाओं के ज्ञान के द्वारा हम उर्दू भाषा में लिखित शब्द को नहीं समझ सकते। जैसे उर्दू भाषा के शब्द को समझने के लिए उर्दू भाषा के ज्ञान की आवश्यकता है, उसी प्रकार परमेश्वर की उपलब्धि के लिए जो अधिकार या योग्यता चाहिए, जब तक वह अर्जित न हो तब तक कितनी भी जागतिक योग्यता या ज्ञान क्यों न हो, हम परमेश्वर के सम्बन्ध में कुछ समझने या अनुभव करने में समर्थ नहीं हो सकते।

परमेश्वर स्वतः सिद्ध वस्तु हैं, इसलिए उनके शरणागत हुए बिना, उनकी कृपा के बिना कोई भी उन्हें जानने या अनुभव करने में समर्थ नहीं हो सकता।

यदि हम परमेश्वर को न मानें तो क्या परमेश्वर का कोई नुकसान होगा?

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
(ईशोपनिषद्)

पूर्ण से पूर्ण निकालने पर भी पूर्ण ही रह जाता है, शून्य नहीं होता। गणित शास्त्र के अनुसार infinite से infinite निकालने पर infinite ही रहता है। भगवान् पूर्ण वस्तु हैं और वे ही पूर्ण वस्तु दे सकते हैं। इसलिए हम यदि भगवान् को नहीं मानें तो ‘ भगवान् कोई हानि नहीं है। इससे विपरीत हम ही भगवान् की कृपा से और उनसे होनेवाले लाभ से वंचित रह जाएँगे। यदि हम यह कहकर कि, ‘मैं आग के अस्तित्व को नहीं मानता’, अपने हाथ से आग को थप्पड़ मारें तो क्या आग का कोई नुकसान होगा? उल्टा हमारा हाथ ही जलेगा। आग को न मानने से आग से होनेवाले लाभ से हम वंचित रह जाएँगे; प्रकाश नहीं मिलेगा, रसोई नहीं होगी, industries नहीं चलेंगीं। नुकसान किसका है? भगवान् सर्व-शक्तिमान और सभी का रक्षण एवं पालन करनेवाले हैं। यदि हम उन्हें मानेंगे तो हमारा ही लाभ होगा और यदि नहीं मानेंगे तो उन्हें कोई हानि नहीं होगी।