श्रीकृष्ण लीला में हम देखते हैं कि एक दिन नन्दभवन में कोई सेवक नहीं था। अतएव यशोदा मैया ने स्वयं ही से दूध मक्खन निकालना शुरू किया। जब वह दूध से मक्खन बना रही थीं तो बालगोपाल श्रीकृष्ण उनके पास आये। श्रीकृष्ण ने अभी चलना सीखा ही था तथा भूख लगने की लीला कर रहे थे। उन्होंने कहा, “मैया, मक्खन रिडकना बंद करो, मुझे भूख लगी है। मुझे दूध दो!” इस पर यशोदा मैया ने उत्तर दिया, “आज यहाँ कोई सेवक नहीं है और मैं व्यस्त हूँ, मुझे तंग मत कर।”
यह सुनने के पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने सुकोमल हस्तकमल से मक्खन बनाने वाली मधानी पकड़ ली। यशोदा यह देखकर मुग्ध हो गई तथा बालक को अपनी गोद में लेकर स्तनपान कराने लगी। किन्तु उसी क्षण अंगीठी पर रखा दूध उबल कर बाहर निकलने लगा। इसलिए यशोदा ने गोपाल से कहा, “उतर जा, दूध उबल रहा है।” किन्तु श्रीकृष्ण की भूख शांत नहीं हुई थी इसलिए वे उतरना नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा, “मुझे और दूध चाहिए।” यशोदा ने श्रीकृष्ण को जबरदस्ती नीचे उतारा और अंगीठी की ओर दौड़ पड़ीं। इससे श्रीकृष्ण बहुत क्रोधित हो गये और दही की हांडी को तोड़ने को उद्यत हुए। यद्यपि वे अपनी मैया से अभी भी भयभीत थे, उन्होंने एक छोटे पत्थर से उस बर्तन पर धीरे से प्रहार करना शुरू किया जब तक कि वह टूट नहीं गया तथा इसके फलस्वरूप पूरी दही ज़मीन पर बिखर गई। तब उन्होंने भीतरी छत पर झूल रही अन्य हाण्डियों तक पहुँचकर उन सब को भी तोड़ दिया।
कभी-कभी दूसरी गोपियाँ यशोदा मैया और नन्द महाराज से शिकायत करती कि श्रीकृष्ण बड़े नटखट हैं तथा रात्रि में उनके घरों में आते हैं। उन्होंने कहा, “चोरों को दूर रखने के लिए हम रोशनी करके रखते हैं पर आपका पुत्र उन्हें बुझा देता है। तब वह हमारा मक्खन चुरा लेता है।” नन्द महाराज श्रीकृष्ण से पूछते, “कन्हैया, क्या तुमने ऐसा किया?” “नहीं, पिताजी, मैंने ऐसा नहीं किया। ये झूठ बोल रही हैं।” श्रीकृष्ण ने साधु के समान भोलेपन से ऐसा कहा जब उनके माता-पिता ने उनका यह निर्दोष भाव देखा तो सोचा कि वो ऐसा काम कर ही नहीं सकता। गोपियों के आरोपों के उत्तर में नन्द महाराज कहते, “मेरे पास हज़ारों गइया हैं। में ब्रज का राजा हूँ। मेरा पुत्र मक्खन चुराने के लिए दूसरे के घर में क्यों जायगा ?” कारण यह था कि कभी-कभी श्रीकृष्ण दूसरों के घरों में जाया करते थे ताकि वे भी उनकी (श्रीकृष्ण की) सेवा करने का सुयोग प्राप्त कर सकें। सामान्यतः उनके माता-पिता उन्हें और कहीं जाकर खाने की अनुमति नहीं देते थे। वे स्वयं ही श्रीकृष्ण को बहुत प्रेम करते हैं। यही कारण है कि वे कभी-कभी चोरों जैसी लीला करते हैं ताकि उनके सभी भक्त उनकी सेवा करने का सुयोग पा सकें और इस प्रकार अपनी इच्छा पूरी कर सकें। अतः बाहरी तौर पर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मानो श्रीकृष्ण सब कुछ नष्ट कर रहे हैं तथा दही को खाकर व बंदरों को खिलाकर उसे बर्बाद कर रहे हैं। वास्तव में दही उन गायों के दूध से तैयार हुआ था जिनकी यह इच्छा थी कि वह श्रीकृष्ण की सेवा में लगे । इसलिए वास्तव में श्रीकृष्ण प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रकार उनकी सेवा करने का अवसर प्रदान कर रहे थे।
जब यशोदा मैया रसोई से वापस लौटी तो उन्होंने श्रीकृष्ण की शरारत देखी। उन्होंने सारे बर्तन तोड़ दिये थे और बन्दरों को खिला रहे थे। फलस्वरूप मैया उन्हें दण्डित करना चाहती थीं। मैया ने सोचा, “अगर मैं इसे सबक नहीं सिखाउंगी तो इसकी आदत और खराब हो जायेगी।” इसलिए भगवान् को सुधारने के लिए यशोदा मैया ने उन्हें बेंत से पीटने का निर्णय किया। वे उन्हें अचानक पकड़ने के लिए चुपके से श्रीकृष्ण के पीछे पहुँच गई। पर जैसे ही वे उन्हें पकड़ने लगीं, श्रीकृष्ण उछल पड़े और भाग निकले। शीघ्र ही यशोदा मैया श्रीकृष्ण का पीछा पूरे आँगन में करने लगी पर जल्द ही वे थक गई और उनकी गति धीरे-धीरे कम होने लगी। यद्यपि कोई भी श्रीकृष्ण को पकड़ने में सक्षम नहीं है, फिर भी उन्होंने स्वयं ही अपनी गति धीमी कर ली तथा मैया के शुद्ध प्रेम के कारण उन्हें पकड़ने का अवसर प्रदान किया।
यशोदा मैया ने कहा, “ये तूने क्या किया? आज मैं तेरी बेंत से पिटाई करुँगी।” श्रीकृष्ण अपनी मैया के हाथों में छड़ी देखकर भयभीत हो रहे थे और क्रन्दन करने लगे। यमराज भी जिनसे भयभीत रहते हैं, आज वे सर्वेश्वरेश्वर श्रीकृष्ण अपनी मैया के हाथों में छड़ी देखकर डर रहे हैं। यह कैसे संभव है? यह व्रज-प्रेम है। व्रजवासी श्रीकृष्ण को भगवान् के रूप में नहीं देखते। वे केवल उन्हें तह दिल से प्रेम करते हैं।
तब यशोदा मैया को श्रीकृष्ण पर दया आ गई और इसके बदले उन्हें रस्सी से बाँध दिया ताकि वे और कोई शरारत न कर सकें। उन्होंने श्रीकृष्ण को उदर (पेट) के चारों ओर बांधने का प्रयास किया पर हर बार वह रस्सी दो पग छोटी रह जाती। बार-बार वे और रस्सियाँ लेकर आती पर हर बार वह छोटी रह जाती। इसलिए एक ओर तो हम देखते हैं कि श्रीकृष्ण एक छोटे बालक की भाँति सीमित स्थिति में हैं पर वास्तव में वे अपनी ससीम प्रतीति में भी असीम रहते हैं।
रस्सी हर बार दो पग ही छोटी क्यों रहती थी? इसका क्या महत्व है? एक पग श्रीकृष्ण की कृपालुता को दर्शाता है और दूसरा उनकी निष्कपट सेवा, जिसके द्वारा हम उनकी को आकर्षित कर सकते हैं। यशोदा मैया कभी भी अनुकम्पा श्रीकृष्ण की सेवा बन्द नहीं करती थी, यही कारण है कि अंत में श्रीकृष्ण ने उन्हें स्वयं को प्रेम-रज्जू से बाँधने का अवसर प्रदान किया। हमें भी गुरु-वैष्णवों की सेवा के लिए ऐसी ही निष्कपट चेष्टा करनी चाहिए तभी हम उनकी कृपा को आकर्षित कर पायेंगे।