साक्षाद्धरित्वेन समस्त शास्त्रैः
उक्तस्तथा भावयत एव सद्भिः।
किन्तु प्रभोर्यः प्रिय एव तस्य
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥
वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः॥
संकर्षणः कारणतोयशायी
गर्भोदशायी च पयोऽब्धिशायी।
शेषश्च यस्यांशकला:
स नित्यानंदाख्यरामः शरणं ममास्तु॥
नमस्ते तु हलग्राम! नमस्ते मुषलायुध!।
नमस्ते रेवतीकान्त! नमस्ते भक्तवत्सल!।।
नमस्ते बलिनां श्रेष्ठ! नमस्ते धरणीधर!।
प्रलम्बारे! नमस्ते तु त्राहि मां कृष्ण-पूर्वज!।।
नमो महा-वदान्याय, कृष्णप्रेमप्रदाय ते।
कृष्णाय कृष्ण चैतन्य, नाम्ने गोर-त्विषे नमः॥
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं
कटितटे दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥
तप्त-काञ्चन गौरांगी! राधे! वृंदावनेश्वरी!।
वृषभानुसुते! देवी! प्रणमामि हरिप्रिये!॥
हे कृष्ण! करुणासिन्धो! दीनबन्धो! जगत्पते!
गोपेश! गोपिकाकान्त! राधाकान्त! नमोस्तु ते॥
वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णश:।
यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम्॥
भक्त्या विहीना अपराधलक्षैः क्षिप्ताश्च कामादि तरंगमध्ये।
कृपामयि! त्वां शरणं प्रपन्ना, वृन्दे! नमस्ते चरणारविन्दम्।।
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्त वृन्द
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
सबसे पहले मैं पतितपावन
परम आराध्यतम
श्रीभगवान के अभिन्न प्रकाश विग्रह
श्रीभगवत् ज्ञान प्रदाता
श्रीभगवान की सेवा में अधिकार प्रदानकारी
परम करुणामय श्रील गुरुदेव के श्रीपादपद्म में
अनंत कोटि साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हुए
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ
पूजनीय वैष्णववृन्द के श्रीचरण में प्रणत होकर
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ
भगवत् कथा श्रवण पिपासु दामोदर व्रत पालनकारी भक्त वृन्दों को मैं यथा-योग्य अभिवादन करता हूँ
सब की प्रसन्नता प्रार्थना करता हूँ
गजेन्द्र मोक्ष प्रसंग श्रवण कार्तिक महिने में विशेष महात्म्य है
गजेन्द्र ने स्तव किया
उतावला होकर, दिल से कर रहा है
जब यह स्तव दिल से होगा
तब उस प्रकार फल देखा जाएगा
फलेन फल कारण अनुमीयते
फल द्वारा फल के कारण को अनुमान किया जा सकता है
हमारे भक्ति विनोद ठाकुर.. एक बात याद आ रही है
वे राधा-कृष्ण के पाद-पद्मों में प्रार्थना करते हैं..
सिद्ध देह दिया वृन्दावन माझे सेवामृत कर दान
पियाइया प्रेम मत्त करी मोरे शुन निज गुण गान
क्या प्रार्थना कर रहे हैं? जो यह प्रार्थिव शरीर है इससे प्रार्थना होती नहीं
भगवान जो भूमिका में है वो भूमिका में जाना पड़ेगा
अप्राकृत भूमिका
transcendental realm वहाँ जाना पड़ेगा
सिद्ध देह दिया वृन्दावन माझे
सिद्ध देह
a realized state
realized form, please give me
in Vrindavan Dham
how can I speak about the glories of Sri Krishna?
who is in the highest transcendental realm realm
that cannot be comprehended by us
how to speak, it will be self-revelation
it will be revealed in the heart.. through revolution
सिद्ध देह दिया वृन्दावन माझे
kindly please give me a realized transcendental form in Vrindavan Dham
and kindly please give me sevamrita the ambrosia of service
that is transcendental ambrosia…not this ambrosia
which comes, emerges from the milk ocean
सेवामृत कर दान
पियाइया प्रेम मत्त करी मोरे शुन निज गुण गान
and you have to give prem to me प्रेम मुझे देना
प्रेम रूप जो है
आनंद रस है वो मुझे पिलाना और स्वयं ही कीर्तन करना
स्वयं ही बोलना, हमारे मुख से… मैं नहीं बोल सकता
शुन निज गुण गान – आपका गुण आप खुद ही सुनिए
You hear Your own glories
You speak and You hear Your own glories through my mouth
it is very difficult..
with mundane vanity, you cannot do this
दुनियादारी के अभिमान से यह कभी होगा नहीं
जब तक अभिमान रहेगा तब तक वो शब्द आएगा नहीं
मैं मेरी अपनी जो दुरावस्था है वो कहता हूँ
पाठ करने से क्या होगा फायदा कुछ नहीं
वास्तव फायदा नहीं होता है
श्रीगजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद् विभातं क्व च तत् तिरोहितम्।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर:॥
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशु
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।
तमस्तदासीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभु:॥
न यस्य देवा ऋषय: पदं विदु-
र्जन्तु: पुन: कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमण: स मावतु॥
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं
विमुक्तसङ्गा मुनय: सुसाधव:।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूता: सुहृद: स मे गति:॥
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा
न नामरूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय य:
स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति॥
तस्मै नम: परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे॥
नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि॥
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता।
नम: कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे॥
नम: शान्ताय घोराय गूढ़ाय गुणधर्मिणे।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च॥
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे।
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नम:॥
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नम:॥
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय
निष्कारणायाद्भुतकारणाय।
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय
नमोऽपवर्गाय परायणाय॥
गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि॥
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते॥
गजेन्द्र ने लड़ाई की हजारों साल तक
अभी मृत्यु सामने हैं और उस वक्त जो भाव होगा
मेरे माफिक आदमी को वो भाव नहीं हो सकता है
लेकिन जो कोई मुहूर्त में मेरी आयु खत्म हो सकती है
जो कोई मुहूर्त में
खत्म होने से क्या होगा
तब भी हम लोग भोग में ही रहते हैं
मैं कहता हूँ अपनी जो
एक घटना मैं कूचबिहार में था
कूचबिहार विक्टोरिया कॉलेज हॉस्टल
अभी भी मुझे याद है
एक ज्योतिषी ने चेतावनी दी
उन्होंने ऐसी भविष्य वाणी की
फलाना तारीख में फलाना समय में शाम को प्रलय हो जाएगा
पृथ्वी का सर्वनाश हो जाएगा
हम लोग वहाँ पर थे, हॉस्टल में दो मंजिल पर
first year, third year
नीचे रहते हैं second year, forth year
वो हॉस्टल के सब inmates इकठ्ठा हुए
क्या किया जाय?
यह जो चेतावनी जो बोला
जरुर सच होगी शाम को हम लोग रहेंगे नहीं
क्या करना चाहिए?
अभी सब इकठ्ठे होकर कहते हैं
हमारी हॉस्टल के अंदर restaurant है
हर किस्म की खाने की चीजें हैं
मरने से पहले जितना कुछ है खा लो
कोई भगवद् भजन करने के बारे में बोला नहीं
मैं भी वहाँ पर था
उन लोगों का वोट सबसे ज्यादा मैं एकेला क्या करूँगा? जो बोलते हैं ठीक है
सब वो restaurant में गए
समोसा ले आओ.. रसगुल्ला ले आओ… ये ले आओ… वो ले आओ
अभी वो जो है restaurant का मालिक समझा
चेतावनी ने बहुत अच्छा किया हमारा business बहुत अच्छा कर दिया
-प्रलय हो या न हो… -हम लोग तो बहुत बुद्धिमान हैं
पिताजी के पैसे हैं, भाई साहब के पैसे हैं
वो नष्ट किसलिए होंगे? सब खा डालो
मर जाने से सब गया
पिताजी बोलेंगे ठीक किया बुद्धि का काम किया
वहाँ जाकर order देते हैं ऐसे
खाते-खाते इतना तक खा लिया
और उसके बाद अब खा नहीं सकते हैं
फिर दो मंजिल पर आएं
आकर देखा शाम हो गई time चला गया प्रलय हुआ नहीं
धत… हम लोगों को धोका दिया अभी हम लोग क्या बोलेंगे
पिताजी को, guardian को क्या बोलेंगे?
कि ऐसे सारा पैसा खत्म कर दिया
वो बात करते-करते एक दोस्त चौकी पर सो गया
सोके अचानक वो स्वप्न देखा
प्रलय प्रलय चिल्लाके दौड़ाने लगा
प्रलय कहाँ है? अरे पकड पकड पकड वो गिर जाएगा
फिर दौड़ के जाकर उनको पकड़ा, अभी भी मुझे याद है
-प्रलय प्रलय -कहाँ प्रलय?
कुछ प्रलय नहीं हुआ
एक आदमी भी बोला नहीं अभी प्रलय होगा
तब तो भगवान का भजन करना चाहिए
वो सब बोले restaurant में जाकर खाना चाहिए
इसलिए भजन करने की इच्छा जो है
यह ऐसे उनकी परीक्षित महाराज को हुई
और ऐसा भजन किया
जो हम लोग कल्पना नहीं कर सकते हैं
खाया उन्होंने भी खाया
क्या खाया? आत्मा का खाना
कृष्ण का महात्म्य श्रवण कीर्तन वो खाया
सात दिन-रात कुछ नहीं खाया
ऐसी तो शक्ति हम लोगों की नहीं है
सात दिन बाद हमारी मृत्यु हो जाएगी उसके बाद हम नहीं रहेंगे
शुकदेव गोस्वामी
कहते हैं, महाराज आप थोडा सा विश्राम कीजिए
कुछ खाना खा लीजिए, कुछ पानी पी लीजिए
आप दुबले हो जाएँगे
आप जो हरिकथामृतम् परिवेषण कर रहे हैं
वो बंध मत कीजिए
सात दिन बाद मैं नहीं रहूँगा
मुझे कुछ दुःख नहीं हो रहा है
प्यास के मारे से एक मुनि का अपमान किया जिससे उनको
अभिशाप हुआ। अभी प्यास कहाँ गई?
बोले आपका जो हरिकथामृतम् सुन रहा हूँ
मुझे प्यास भी नहीं है, खाने की इच्छा भी नहीं है
सोने की इच्छा नहीं है
सारे सात दिन ही
सिर्फ हरि को हृदय में ग्रहण किया
उनका महात्म्य, उनके आत्मा का खाना ही दिया
आत्मा का खाना क्या है?
ओर दूसरी चीज नहीं है
फिर हम लोग घडी देखते हैं
यह घड़ी के अंदर में समाप्त होना चाहिए
एक दिन जब दिन-रात नहीं सोएँगे
तब एकदम हॉस्पिटल में जाना पड़ेगा
ऐसा है
नहीं कर सकते हैं
उनकी नकल करने से तो नहीं होगा
इसलिए हम लोगों को सहज पन्था बतला दिया
सोते रहो, जैसे भी रहो भगवान का नाम लेना, ऐसा है
यहाँ पर भी
जो स्तव कर रहा है
स्तव भीतर से आ रहा है
भीतर से उनके आत्मा की नित्य वृत्ति, अहैतुकी भक्ति प्रकाशित हो गई
जब प्रकाशित हुई
और उससे वह बोल रहा है
जो शब्द भगवान के कान तक पहुंचा
तब तो भगवान आए
अशरणागत का कोई शब्द भगवान के कान तक पहुंचता नहीं
शरणागति बैगर कोई भजन नहीं होता है, भगवान की प्राप्ति नहीं होति है
यह गजेन्द्र मोक्ष प्रसंग में यही शिक्षा है
भागवत धर्म जो है
पहले तो शरणागत होना होगा
पूरा तरफ से परमेश्वर चाहिए और कोई नहीं
एकदम निर्देश कर दिया
महात्म्य कीर्तन किया
वो महात्म्य को विश्लेषण करने से
परमेश्वर कृष्ण को उद्देश्य करते हुए
भगवान का कोई नाम नहीं लिया
लेकिन जो महात्म्य बोला
उससे उद्देश्य करते हैं कृष्ण राम आदि
उद्देश्य किया इसलिए वो वहाँ विष्णु भगवान स्वयं ही आ गए
और देवता लोग नहीं उनको तुच्छ कर दिया, बाद में आप लोग सुनेंगे
किसी ओर के पास मैं शरणागत नहीं हो रहा हूँ
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय – सब कारणों के कारण हैं
कौन है? परमेश्वर हैं
कहाँ मिलेंगे? ब्रह्म संहिता
ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्द विग्रहः।
अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वकारणकारणम्।।
मिल जाता हैं ना
अखिलकारणाय निष्कारणाय उनका कोई कारण नहीं हैं
सब के आदि हैं वो स्वयंभू
उनका कोई कारण नहीं हैं
और कैसे कारण हैं?
वो सारा जो कुछ
जीव सृष्टि किया
ब्रह्माण्ड आदि किया और कितने प्राणी किया
और प्रलय भी करते हैं सब कुछ करते हैं
सब कुछ किया
लेकिन उनके साथ कोई स्पर्श नहीं है
अद्भुतकारणाय, कोई विकार नहीं है
वो शक्ति को विभिन्न रूप से परिणत करते हुए भी
उसके कारण हैं
जो कुछ हो रहा है, दुनिया में उसके भी कारण हैं
लेकिन उनके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है
अद्भुतकारणाय
जितने आगम पंचरात्र और जितने
वेद आदि हैं आगम
आम्नाय गुरु परम्परा में जो ज्ञान आता है
वो सब के महार्णव हैं
जैसे गौरांग महाप्रभु महार्णव
प्रेम समुद्र के महार्णव
वही समुद्र से बादल होकर
वो राय रामानंद हुए
राय रामानंद महाप्रभु की शक्ति से ही
राय रामानंद बोले
और वही समुद्र में जाकर, महाप्रभु में जाकर,
समाप्त हुआ,
भगवान में समाप्त हुआ सब
भगवान से ही वेद आदि शास्त्र सब तमाम हैं
भगवान में ही, आखिर में वहाँ ही जाएँगे
जैसे बादल होकर, बारिश होकर
नदी होकर फिर वही सागर में ही जाती है
और जो मुख्य
भगवान की माया से ही मोहित होकर
जीव बद्ध हो गए
भगवान के विमुख हैं उनको मोहन करने के लिए महामाया है
वो [जीव] जब उनके चरण में सहारा लेंगे
[भगवान] माया को उठा लेंगे
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।। (गीता 7.14)
इसलिए माया से उद्धार करनेवाला कौन है?
अपवर्गाय, भगवान
परायणाय
सब के आश्रय हैं
और जो श्रेष्ठ देवता हैं
ब्रह्मा रूद्र आदि देवता, जितने देवता हैं, उनके
आश्रय हैं.. सब के आश्रय हैं
मैं सब के आश्रय जो परमेश्वर हैं
उनके चरणों में सहारा ले रहा हूँ
तो इस में साफ़ा (साफ़-साफ़) बलताते हैं
साफ़ा करके बलताते हैं किसके पास सहारा ले रहे हैं
उसके बाद
यह जो है
गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय..
अरणी है, एक किस्म की लकड़ी है
जिससे घिसने से आग (उत्पन्न) होती है
ऐसे दियाशलाई (माचिस) से हम लोग यज्ञ करते हैं
लेकिन यह नियम नहीं है
दियाशलाई तो बारूद है ना
वो प्रवित्र नहीं है
अभी यह युग में हवन करना मुश्किल है
अभी अरणी जहाँ तहाँ मिलती नहीं है
अरणी को घिसने से आग जलती है
उसके भीतर में आग है
बाहर में दिखलाई नहीं पड़ती है
हम लोग ऐसा देखते हैं स्थूल रूप से है
लेकिन भीतर में
वो जो हैं वैज्ञानिक लोग कहते हैं
यह सुक्ष्म का कारण है
जितने सूक्ष्म हैं
अणु परमाणु से हैं, परमाणु से भी सूक्ष्म
इलेक्ट्रोन-प्रोटोन, उसके बाद ओर कुछ नहीं बोल सके
इसलिए
उसके बाद जो है वो चेतन है
चेतन जगत है, सर्वव्यापक
वो हम लोग अपनी बुद्धि से, दिमाग से उसका निर्णय नहीं कर सकते हैं
इसलिए वो पारमार्थिक जगत की बात है, वो हम लोग नहीं जानते हैं
इसलिए वहाँ पर जो
यह ब्रह्माण्ड जैसा घुमाता है ना, ग्रह उपग्रह
वैसे इलेक्ट्रोन-प्रोटोन आदि ऐसे घूमते हैं, कभी ऐसा, कभी वैसा, कभी ऐसा
किसलिए घूम रहे हैं? वो लोगों (वैज्ञानिकों) को मालुम नहीं है
वो लोग निर्णय नहीं कर पा रहे हैं
और निर्णय नहीं करने से विज्ञान नहीं होता है
और ऐसे भी
दुनिका जो philosopher, western philosopher, Watson
उन्होंने क्या किया
जो Darwin; anti-Darwin
evolution theory का,
वो… accidentally, mechanically ऐसा हो रहा है
growth development
वो material elements
का संयोग हुआ,
environmental and materials
वो कहते हैं
यह नहीं हो सकता
development of living; a living being cannot be explained
cannot be explained mechanically
by Darwinians and anti-Darwinians by evolution theory, no
it has got at the back some purpose
development हुआ
यह तो भीतर में चेतन शक्ति है
जिस लिए growth होगा
growth में प्रकाशित होगा
एक गाय हुई, गाय का सिंग आ गया
वो ऐसे ही नहीं आया
एक बीज से हो गया ना?
यह अलग-अलग, there is one force behind, spiritual force
life-impetus, Elan Vital
cannot be accidental or mechanical
ऐसा बोलते हैं
कि यहाँ पर
सर्वव्यापक वो भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं
तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय।
और सत्त्व, रजो, तमो गुण हैं
यह गुण से
वो उसमें क्या होता है
यह गुण में जो शक्ति देते हैं, सः इक्षत् एकोअहम् बहुस्यामि
तब उसमें सृष्टि होती है
वो जब सृष्टि जब होती है
उसमें भगवान कारण हैं
कारण होते हुए भी बहिर्मनस्क हैं, पहले भी बोला ये बात
जब ब्रह्मा के दिन में सृष्टि होती है रात में नाश होता है ना
सारे प्राणी का, खंड-प्रलय
उस वक्त भी बोला
जो भगवान निर्लिप्त रूप से देखते हैं, बहिर्मनस्क
यह आत्मा जो है चेतन
शक्ति और चेतन वस्तु, यह होती हैं असल, वास्तव
और जड़ पदार्थ का, there is no actual existence of this material
matter does not come to say that I am matter
it is consciousness which imparts matter into matter
if there is no consciousness, no reality can exist
matter does not come to say I am matter
बोल सकती नहीं
एक चेतन ही matter को matter कहेगा
इसलिए वो चेतन, अणु चेतन विभु चेतन
यह होते हैं वास्तव
इसलिए कहते हैं वो
अणु चेतन होते हुए
अणु आत्मा होते हुए, न हन्यते हन्यमाने शरीरे..
यह कहा गया है गीता में
गीता में, किताब में ही है
वो हमको विश्वास नहीं है
अनुभव में नहीं है मुख में बोलते हैं
आत्मा का जन्म भी नहीं है मृत्यु भी नहीं है
लेकिन हम लोगों के इतने जन्म हैं,
जन्म मृत्यु होता हैं
यह मायिक जो त्रिगुणात्मिक शक्ति है उसमें
अणु चेतन
बहिरंगा शक्ति द्वारा आवृत होने योग्य है
भगवान और अणु चेतन में पार्थक्य, फरक यही है
भगवान सब शक्ति के मालिक हैं
भगवान के ऊपर माया विस्तार नहीं कर सकती है
माया विस्तार करती है अणु चेतन के ऊपर
जीव है अणु चेतन
जब वो माया से अभिभूत हो जाता है
फिर वो बहिर्मनस्क होकर काम करता है
असल में कोई मरता नहीं
कोई जन्म लेता नहीं
कोई त्रिताप भी नहीं है
अभी हम लोग सब देख रहे हैं
तब कहते हैं तब मैं क्या करूँ?
मुझ में अशरणागत हो गया इसलिए ऐसी बुद्धि हो रही है
झूठ देख रहा है
तस्मादिदं जगदशेषमसत्स्वरूपं स्वप्नाभमस्तधिषणं पुरुदु:खदु:खम्।
त्वय्येव नित्यसुखबोधतनावनन्ते मायात उद्यदपि यत् सदिवावभाति॥ (भा. 10.14.22)
सिर्फ यह विश्व नहीं, अनंत ब्रह्माण्ड
नाशवान हैं, इनकी कोई कीमत नहीं है
असत् स्वरूपं
स्वप्नाभम.. स्वप्न में जो देखते हैं
जब देखता है, मालुम होता है वास्तव
देहरादून का है
देहरादून का देवप्रसाद प्रभु थे
वो देहरादून मठ के in-charge
तो देहरादून मठ में एक व्यक्ति यहाँ बंगाल मुल्क से आया
पुरुष है
वो तो ठीक है, महिला हो तो दुसरे भक्त के घर में ठहराना पड़ता
हमारे बिच में एक कमरा है वो कमरे में उनको रखा
अब रात बारा बजे एक बजे
कौन चिल्लाता है? उठ गया
मैं डूब गया, मैं डूब गया, मुझे उद्धार करो, मैं डूब गया, मैं डूब गया, उद्धार करो…
मैं मर गया, मर गया
कौन डूब गया? कहाँ डूब गया?
यहाँ पर डूब गया? क्या होता है?
यह तो गौड़ीय मठ है देखा वो जो सोया…
वो चिल्ला रहा है, -क्या हुआ? क्या हुआ?
– डूब गया -कहाँ!! कहाँ डूब गया
ओ.. झूठ है
मैंने स्वप्न देखा था
किस्ती पर जा रहे थे
मुझे तो तैरना नहीं आता ना, किस्ती उलट गई
मैं पानी में गिर गया
इसलिए मैं चिल्लाने लगा मुझे उद्धार करो, मुझे उद्धर करो
तो यहाँ पर पानी कहाँ है? किस्ती कहाँ पर है?
इस प्रकार है, स्वप्न देख रहा है, हम लोग यहाँ पर
जो कुछ हँसी करने का, हसने और रोने का theater हो रहा है
असल में कुछ भी नहीं है
स्वप्नाभमस्तधिषणं
और यह जो झूठ वस्तु है, अनित्य नाशवान वस्तु है जिसका कोइ मूल्य नहीं है
इसमें जो बुद्धि देते हैं
वो सोचते हैं मैं बहुत दिमागदार हूँ
उसकी बुद्धि एकदम खत्म ही हो गई
जितने विषय बढ़ाएँगे, जितना रूपया इक्कठा करेंगे उतना अच्छा है
ओर ब्रह्मा जी कहते हैं उसकी बुद्धि खत्म हो गई है
थोड़ा तो सुख होता है
जबर दुःख होता है, अरे बाप रे
जबर दुःख होता है
दुःख के लिए कोई चेष्टा करता है?
सब तो सुख ही चाहता है
यह तो जबर दुःख है
तब भगवान के पास आते हैं
भगवान! हे कृष्ण! आप माया के कारण हैं
इसलिए माया आपके माफिक दिखने में है
आप जैसे पूर्ण सत् पूर्ण चित् पूर्ण आनंद हैं
माया भी मालुम पड़ती है, यह दुनिया
नित्य है, ज्ञानमय है, आनंदमय है
तब मालुम होता है, जब आपके विमुख होता है तब
माया को देखकर, माया को जड़ माया है ना
माया को देखकर और चित् शक्ति का वही
तटस्थ शक्ति से चेतन सत्ता
वो in reality superior to external…
external जो potency है, उनकी energy है
बहिरंगा शक्ति से [जीव] श्रेष्ठ है
उसको दबा सकता है
भोग कर सकता है, उनको देखकर उनको भोग प्रवृत्ति आ गई
पुत्र को देखने से मालुम क्या हो रहा है, मैं पिता हूँ
पिता को देखने से मैं पुत्र हूँ
स्त्री को देखने से मैं पति हूँ
स्त्री पति को देखने से मैं स्त्री हूँ
माया को देखने से, मैं कौन हूँ? मैं भोक्ता हूँ
भगवान को देखने से, मैं उनका दास हूँ
इस किस्म का होता है ना
किसलिए भोक्ता होकर वो समझता है झलझल करता है, हा.. हा..
बहुत आनन्द है.. धाप करके छलांग मारा और…
जबर दुःख मिल रहा है
उसको पकड़ लिया आ जा तुझको मैं पकड़ के ये कर रहा हूँ
इसलिए कहते हैं यह
वही बहिर्मनस्क होकर…
आपकी शरण लेने से ही इससे उद्धार हो सकता है
back to home back to Godhead
right about turn towards Krishna, worship Krishna
you are seeing just devoid of existence, devoid of knowledge, devoid of bliss… as averse to Sri Krishna
that is called Maya, it seems that this world is existing
it is not
nothing here that eternally exist
everything is non-eternal
devoid of knowledge, devoid of bliss, devoid of everything
but it seems because it is a shadow of Krishna
स्वयंप्रकाशाय
भगवान स्वयं अपने आप को प्रकाश करते हैं
पहले भी बोला self-effulgent
भगवान का ज्ञान जब भीतर में आएगा
तब और ज्ञान अपने आप हो जाएगा
यह भी बात हमने पहले आलोचना की थी
हमारे स्वामी महाराज
इंग्लिश में कोई-कोई बात बहुत अच्छी बोलते हैं
ऐसी बात बोलते हैं ना
कोई उनके पास आने से
वो उसको जवाब मिल जाता है
कोई-कोई व्यक्ति है ना बहुत तर्क करनेवाला
कोई आया उनके पास
you are preaching all these things about God
but I don’t believe in God. There is no God
who has given you the power to say I don’t believe in God?
if the power is taken away, can you say I don’t believe in God?
how long this vanity will be there?
ऐसा है, उसी प्रकार उन्होंने कहा
when one is enlightened with the knowledge by which ignorance is destroyed
that self-effulgent knowledge, not intellectual
when one is enlightened with the knowledge by which his ignorance is destroyed
then his knowledge lights up everything as the sun lights up everything at day time.
सूरज उदित होने से रौशनी से सूरज को देखा जाता है
और अपने को, सारी दुनिया को
चिड़िया है, जानवर है, आदमी है, सब
अँधेरे में देखा नहीं जाएगा, सूरज उदित होने से
अपने को देखा जाता है, सब देखा जाता है, in proper perspectives, an illustration
भगवान जब हृदय में उदित होंगे
मैं कौन हूँ, जगत का स्वरुप क्या है
सब वास्तव में प्रकाशित हो जाएगा
उनको प्रणाम, स्वयंप्रकाश, उनको प्रणाम करता हूँ
उसके बाद ही
यहाँ पर जो बात कही
यह अभी
अपने बारे में बोली है
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते॥
मादृक् प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
(मादृक् मद्विधः चासौ प्रपन्न: पशुश्च तस्य पाशः
अविद्या तस्य विशेषेण मोक्षणं येन तस्मै)
मुक्ताय (स्वयं प्रकृतिपारवश्यरहिताय)
भूरिकरुणाय (भुरिः करुणा यस्य तस्मै)
अलयाय (अनलसाय)
सर्वतनुभृन्मनसि (सार्वेषां तनुभृतां मनसि)
स्वांशेन (अन्तर्यामिरूपेण)
प्रतीत-प्रत्यग्दृशे
(प्रतिता प्रख्याता या प्रत्यक् दृक् ज्ञान तस्मै)
बृहते (अपरिच्छिन्नाय)
भगवते ते (तुभ्यं) नमः॥
महात्म्य कीर्तन करते हैं आखरी में प्रणाम करते हैं
यहाँ पर कहते हैं
मेरे माफिक शरणागत एक पशु है
पशु के पाश मोचक
ग्राह आक्रमण किया ना
वो ग्राह से उद्धार कर सकते है
भगवान कौन हैं?
माया से उद्धार करनेवाले
और मुक्त हैं, भगवान स्वयं मुक्त हैं
अशेष करुणा के आकर हैं
और सुस्ती नहीं है, आलस नहीं है
हरेक देहि के अंदर में अन्तर्यामी रूप से प्रख्यात हैं
ज्ञान स्वरुप हैं, अपरिच्छिन्न हैं
unlimited, infinite
आपको मैं प्रणाम करता हूँ
उसमें अभी देखिए, मैं एक एक अर्थ पढ़ता हूँ
मेरे माफिक जो शरणागत,
जब शरणागत हो सके भगवान के चरणों में,
षड़ंग शरणागति हईया छे जाँहार
वो शरणागति भी
कोई शरणागत भक्त के सानिध्य के बैगेर नहीं होती है
सिर्फ याद करने नहीं होता है
डॉक्टर जो दिया prescription
अे! तुम जाओ, मरीज को दे दिया
इसको याद करके चलो
वो लेकर आया
क्या disease dysentry
और उसका औषध, दवाई सब लिखा हुआ है
डॉक्टर का ठिकाना, पत्ता लिखा हुआ है
उसके नीचे उनकी सही है
सब याद कर लिया
बार-बार बोल रहा है, उसका उच्चारण करके, सब याद कर लिया
कोई दवाई खाई नहीं, prescription याद कर लिया
तो बोला मेरी तो कोई बिमारी गई नहीं
जो आपको….
-आप याद किया -हाँ याद किया, घरररर…..
बोल रहा है सब, नहीं देखकर, उसको याद हो गया
“खाया नहीं?” “नहीं” “याद करने से क्या होगा? खानी पड़ेगी दवाई”
दवाई खानी पड़ेगी, परहेज़ लेना पड़ेगा, सिर्फ याद कर लिया
तब हम लोग जब याद करेंगे
और असल में जब इसको साधन नहीं करेंगे
तो दवाई दी जो
साधु वैष्णव सद्गुरु ने दवाई दी उसको ग्रहण करो
सिर्फ इसको याद करने से नहीं होगा
बोल दिया गुरूजी ने ऐसा है… शरणागत होना, शरणागत होना
ऐसे शरणागति के छः लक्षण हैं
अच्छा ठीक है, सब याद कर लिया
घररररर…. बाद में कुछ हुआ ही नहीं
ऐसा नहीं इसको ऐसा
रूप-सनातन-पदे दन्ते तृण करी’ भक्तिविनोद पड़े दुहूँ पद धरी’
काँदिया काँदिया बले आमी त’ अधम सिखाये शरणागति कर हे उत्तम
शरणागत भक्त के पास जाना पड़ेगा
मादृक्प्रपन्न हम लोगों पर भी गजेन्द्र की कृपा हो तब शरणागति आएगी
गजेन्द्र की कृपा प्रार्थना करना
प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मेरे माफिक शरणागत की रक्षा करनेवाले हैं
जो शरणागत होता है उनको ही भगवान रक्षा करते हैं
कोई विचार नहीं करते हैं
यहाँ पर नहीं कहा
कि मनुष्य को उद्धार करेंगे
जानवर को उद्धार नहीं करेंगे
ब्राह्मण को करेंगे, क्षुद्र को नहीं करेंगे
क्षुद्र को नहीं करेंगे एसी बात नहीं है
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥ (गीता 7.14)
ये प्रपद्यन्ते ते तरन्ति
इसमें कोई आदमी के बारे में, जानवर के बारे में कुछ नहीं, जो शरणागत होगा
भगवान के पास सब समान हैं
इसलिए
मोक्षणं येन तस्मै अविद्या
यह अविद्या से मुक्ति
भगवान ही कर सकते हैं, भगवान की माया से तो हम मुग्ध हए
भगवान उसको उठा सकते हैं, दूसरा कोई उपाय नहीं है
अपनी चेष्टा से भी दूसरा दुनिया का कोई व्यक्ति नहीं कर सकता है
और भगवान, मुक्ताय
भगवान के अंदर में
स्वयं प्रकृतिपारवश्यरहिताय
प्रकृति के परवश नहीं हैं ऐसा यहाँ पर
विश्वनाथ चक्रवर्ती ने टिका में लिखा
भक्तवेद्य-भगवत्स्वरुपमाह
भक्त जैसे भगवान का अनुभव करते हैं वैसा स्वरुप यहाँ पर प्रकाशित करते हैं
मादृगिति यावत् स्तुति
पाशो ग्राहरूपः संसारस्वरुपश्च
ग्राह, यहाँ पर है एक ग्राह
crocodile, यह अमेरिका में alligator
alligator कहते हैं उनको, crocodile
actually, crocodile is this
worldly entanglement, we are been fastened in
the worldly entanglement
for that reason
how we will be rescued from these entanglements?
only Supreme Lord can rescue us
when we become averse
then illusory energy, external potency has enveloped us
and we have got the misconception of self
and we think this world is very beautiful
and jump into it to enjoy this
and to get all sorts of suffering
this is called worldly suffering
we have to take shelter of the Supreme Lord
Supreme Lord
मुक्ताय अर्थात् मादृक् जीव
एतावत् कालं परित्यक्ताय
असेवितायेत्यर्थः।
हम लोग जगत के आदमी हैं ना
जगत के आदमी में ऐसी धारणा होती है
जो कोई व्यक्ति को आपने सहायता की,
कोई व्यक्ति की सेवा की
सेवा करने के बाद छोड़ के चले गए
-वो निषेद किया -नहीं
बाद में जब मुसीबत हुई तब आया
हट इसको अब मैं नहीं लूँगा जा
मैं तुमको कितना समझाया
तूने मेरी सेवा छोड़ दी, तू मर जा
भगवान ऐसे नहीं हैं
भगवान ऐसा नहीं बोलते हैं, हम लोग बोलते हैं
जो आते हैं ना…
फिर छोड़के चला जाता है और आता है
-आप मुझे रक्षा कीजिए -नहीं
तू मेरी आज्ञा को खिलाफ करके चला गया, सेवा नहीं की
भगवान.. भगवान की शक्ति का अंश जीव है
भगवान की सेवा करनी चाहिए
सेवा इतने दिन तक नहीं की
अभी मुसीबत में गिर गया, ग्राह ने पकड़ लिया
संसार ने पकड़ लिया, जो कुछ हैं
अभी तुम आया, रक्षा करो, रक्षा करो -नहीं नहीं नहीं, ऐसा भगवान नहीं बोलते
भगवान नहीं बोलते, कोई चिंता नहीं है
जगत के आदमी बोलते हैं
परित्यक्ताय असेवितायेत्यर्थः।
तदपि मादृग्भ्यो न क्रुध्यते
इतने दिन सेवा नहीं की, भगवान को क्रोध हो गया
आ.. यहाँ पर फिर आया मेरे पास, जा.. जा.. मर
ऐसा हम लोगों का, आदमी का होता है
उनका, भगवान को क्रोध नहीं होता है
प्रत्युत भूरिकरुणाय
भगवान होते हैं, करुणा के सागर हैं
भगवान का सहारा लेने से…
उनके नामभास में ही मुक्ति हो जाती है
शुद्ध नाम जब उदित हो जाय
कोई जब पुकारे दिल से तभी भगवान उसको उद्धार कर देते हैं
इतने करुणामय हैं, बहुत.. कितने पाप किए
इतने पाप किए, तुमको उद्धार नहीं करेंगे ऐसा नहीं बोलते हैं
यतोहमलाय प्राकृतानामिव इर्षामालिन्याभावादिति भावः
ये प्राकृतिक जगत में इर्षा है, द्वेष है
और दूसरे किस्म का भाव है
भगवान में ऐसा नहीं है
उसको मैं कितना फायदा किया, उसको कितनी सुविधा दी
और अभी वो मेरे साथ treachery किया
विश्वासघातकता किया ओर फिर आया
यह इसको हम दया नहीं करेंगे
प्राकृत जगत का यह सब जो भाव हैं
यह सब मालिन्य हैं, भगवान में नहीं हैं
अलयायेति पाठे तत्र
करुणायां न विद्यते लयः
करुणा का कोई लय नहीं है
करुणा के सागर हैं
और आलस्यं यस्य तस्मै
भगवान की सुस्ती नहीं है
भगवान अभी जब यहाँ पर इस जगत में देखेंगे
जो रक्षा करता है वो रक्षा करता ही भोक्ता है
वही मारता है, जगत में जो है ना government है, सरकार है, वो ऐसी है
अभी कोई डकेत आ गया आपके घर में
डकेत आ गया, घेराव कर लिया
और दरवाजा
तोड़के भीतर में घुस रहा है
फ़ोन कर रहे हैं पुलिस को
कि हम लोगों का ऐसा है आप लोग आईये यहाँ पर
वो पुलिस लोग
जब वहाँ जाने से देखेगा की अपना कोई
फायदा नहीं है ओर उल्टा
हम खुद ही मर जाएँगे
कहते हैं, देखेंगे… देखेंगे…
ठीक है, हम जा रहा हैं, जा रहा हैं
वो जाएगा नहीं, सुस्ती है
जब आधे घंटे, एक घंटे के बाद सब खत्म हो जाएगा
तब क्या क्या क्या?
सब ख़त्म हो गया अभी
इसी प्रकार ग्राह उनको खत्म कर देगा
तब भगवान, आ.. क्या क्या क्या? भगवान ऐसा नहीं करते
समझा कि नहीं
कोई भय नहीं है, इस प्रकार सुस्ती नहीं हैं भगवान
न च त्वयि दुःखज्ञापनापेक्षेत्याह स्वांशेनेति
भगवान को दुःख ज्ञापन की भी,
इसकी भी अपेक्षा नहीं है
किसलिए? विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्॥ (गीता 10.42)
गीता जी में लिखा
भगवान एक अंश में यह जगत को धारण करते हैं
हरेक के ऊपर भगवान की निगाह है
इसलिए किसी प्रकार नहीं है
उनका आश्रय लेने से
वो सुस्ती होकर रहेंगे, वो आएँगे नहीं
ऐसा नहीं हैं
वो आकर उद्धार करेंगे
दुःख ज्ञापन अपेक्षा आदि नहीं है
य स्वांश अपनी
शक्ति का अंश है, स्वांश का मतलब शक्ति
शक्ति का अंश जीव है
इसलिए वो जीव के साथ उनका सम्बन्ध है
प्रतितो यः प्रत्यग्दृग अन्तर्यामी तस्मे
अन्तर्यामी रूप से भीतर में हैं
कौन क्या करता है सब जानते हैं?
ग्राह क्या कर रहा है
ग्राह के भीतर में सब
जो कुछ भाव है और वो गजेन्द्र का जो है
और जीतने प्राणी हैं, जितने प्राणी दुनिया में हैं, अनंत प्राणी हैं
सबके भीतर में भगवान हैं, सब कुछ जानते हैं
नहीं जानते यह बात नहीं
भगवान की इच्छा बैगर कोई काम नहीं हो सकता है
उसे हम लोग देखते नहीं हैं, हमारे गुरु महाराज जी ने एक उदाहरण दिया
यह होता है
वही कोवुर के पास राजमंड्री है
राजमंड्री का एक उदहारण दिया
एक school के headmaster बहुत अच्छे हैं
बहुत नामी headmaster हैं, उनकी स्त्री है, पुत्र है
वो headmaster, उनका नाम, शिक्षा विभाग में उनका नाम है
वो बहुत school में
यथा समय में जाते हैं, पढ़ाते हैं, सब कुछ करते हैं
क्या हुआ वो जब घर में नहीं रहते
उनकी पत्नी के साथ कोई और एक पुरुष का
अवैध सम्बन्ध हुआ
उनकी बात उनको मालुम हो गई
जब मैं यहाँ नहीं रहता हूँ तब ऐसा करती है
उसके लिए उनको दुःख हुआ
लेकिन तब भी कुछ बोले नहीं
वो अपना काम छोड़े नहीं
लेकिन वो लोगों का इतना हो गया
आखरी में देखा
वो तो जाते हैं वहाँ काम करने के लिए
लेकिन उनका पुत्र
आने से उन लोगों को वो सब असत् कार्य करने के लिए बाधा होती है
तो इसलिए वो लोगों ने पुत्र को जहर पिला के मार दिया
तब उनको बहुत दुःख हुआ
जब रास्ते में वही जो मार दिया ना
वो लड़का जो ये काम किया
पैर का जूता लेकर उनको मारा
तो जितने
शहर के आदमी हैं, आप इतने विद्वान होते हुए,
इतने नामी व्यक्ति हैं
आप ऐसे एक लड़के को जूता मार रहे हैं?
वो कुछ उत्तर नहीं दे रहे हैं, मार रहे हैं
कुछ बोल नहीं रहे हैं
वो लोगों ने उल्टा उनको गाली दिया
गाली देकर फिर वो (लड़का) तो भाग गया
वह तब ऐसा करके बैठ गए
तब दो-चार आदमी जो रह गए थे वे सोचे शायद कुछ न कुछ बात है
वो लोग सब चले गए तब कहा
वो बहुत कहने से बोल दिया ऐसा ऐसा है
तो अभी उसको देखते हैं, कहाँ है? कहाँ है? कहाँ है?
इतना बदमास है, कहाँ है? पकड़ो पकड़ो
लेकिन उस वक्त नहीं समझा
हम लोग क्या वो
वो पिछले जन्म में क्या किया
वो हम नहीं जानते हैं, अभी जो देखते हैं देखकर वो ठीक नहीं हुआ ठीक नहीं हुआ
लेकिन भगवान जानते हैं सब
कौन क्या किया है, उसका फल मिलता है ना
फल तो भगवान देनेवाले हैं
इसी प्रकार
अन्तर्यामी रूप से प्रख्यात, ज्ञान स्वरुप
अपरिच्छिन्न
आपको मैं प्रणाम करता हूँ
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै-
र्दुष्प्रापणाय गुणसङ्गविवर्जिताय।
मुक्तात्मभि: स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय॥
(भा. 8.3.18)