सितम्बर 1959 में केवलाद्वैतवाद मायावाद के दुर्ग स्वरूप हैदराबाद में श्रील गुरुमहाराज जी के पदार्पण से एवं उनके श्रीमुख से शुद्धि-भक्ति सिद्धान्त वाणी श्रवण करने से स्थानीय विशिष्ट नागरिकों में विपुल उत्साह एवं नई उमंग की सृष्टि हुई। वे श्रील गुरु महाराज जी के महापुरुषोचित्त दीर्घ, सुडौल व तेजोमय गौरकान्तियुक्त रूप के दर्शन करने मात्र से ही उनकी ओर आकृष्ट हो गये। इसके अतिरिक्त जब उन्होंने श्रील गुरु महाराज जी से वीर्यवती हरिकथा श्रवण की तो वे दुगुने भाव से श्रील गुरु महाराज में श्रद्धायुक्त हो गये। वहाँ के नर- नारियों की श्रद्धा व साधु-सेवा की प्रवृत्ति देखकर व उन लोगों द्वारा आग्रह करने पर ही श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की प्रेमभक्ति वाणी के प्रचार के लिए वहाँ पर श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ की एक शाखा की संस्थापना करनी निश्चित हुई। उसी के अनुसार हैदराबाद के पत्थर घाटी वाले इलाके में एक किराये के मकान पर मठ स्थापन हो चुका है ऐसी श्रील गुरु महाराज जी ने घोषणा की।
पहले बड़े रास्ते की पिछली तरफ के किराये के मकान में मठ का कार्य प्रारम्भ हुआ परन्तु वहाँ पर मठ के प्रचार के उपयुक्त स्थान के न होने के कारण उसी इलाके में ही अर्थात् उर्दू गली में लाला फकीरचन्द अग्रवाल महोदय जी के आँगन, बरामदा व चार कमरे से युक्त घर में मठ को स्थानांतरित किया गया। मठ में नियमित भाव से श्रीगिरिधारी एवं नारायण शालिग्राम की पूजा होने लगी। साथ ही साथ प्रातः व रात्रि में पाठ-कीर्तन तथा श्रीजन्माष्टमी, श्रीअन्नकूट व श्रीगौराविर्भाव आदि विशेष- विशेष अनुष्ठान भी धूमधाम से मनाये जाने लगे। जुलाई सन् 1961 में श्रीमठ के सह-सम्पादक श्रीमंगलनिलय ब्रह्मचारी की व्यवस्था में जो धर्म सभा हुई उसमें हैदराबाद कार्पोरेशन के मेयर श्रीडुसाज़, श्रीमध्वाचार्य सम्प्रदाय के आचार्य, उडूपी पेजावर मठ के मठाधीश श्रीमद्विश्वतीर्थ श्रीपादाङ्गलावारु एवं आन्ध्र प्रदेश के अकाउन्टेन्ट-जनरल श्री आर० एन० चटर्जी; संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के पर्यटनकारी जिनमें, शिक्षाविभाग के प्रोफेसर मि० मेल्लविन् लेविसन्, धर्म विभाग के प्रोफेसर मि० राबर्ट मेकल्सन, विल्सन कालेज के प्रोफेसर मिo हेविय एम् वाक्, पोमोना कालेज के प्रोफेसर मि० चार्ल्स एस० लेस्लि, भारमोन्ट विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मि० अल्जन्ट एल० सेड्लार, कोलगेट विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मि० हान्रिन्टन टैरेल, इन्टर- अमेरिकन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मि० लोरियान् केसि एवं उनके साथ हैदराबाद उस्मानिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा० पी० श्रीनिवासाचारी, एम.ए., पीएचडी, भी मठ के दर्शनों के लिए आये थे ।1 अगस्त 1961 को जब श्रील गुरुदेव जी ने कलकत्ता से हैदराबाद में शुभ- पदार्पण किया तो वहाँ के विशिष्ट व्यक्ति बहुत आनन्दित व उत्साहित हुए। उन्होंने हिमायत नगर स्थित प्रसिद्ध बाला जी भवन में शनिवार, 5 अगस्त से सोमवार, 7 अगस्त तक विशेष धर्म-सभा अधिवेशन में भाषण दिए। हैदराबाद निज़ाम के भूतपूर्व कानून मन्त्री राजा बहादुर श्री आरावामुदा आइङ्गर, हैदराबाद कार्पोरेशन के मेयर श्री वेदप्रकाश डुसाज एवं आन्ध्र प्रदेश हाईकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश माननीय श्री पी० चन्द्र रेड्डी जी ने क्रमानुसार सभापति के आसन ग्रहण किए। अकाउन्टेन्ट-जनरल श्री आर० एन० चटर्जी एवं मठ के सम्पादक श्रीकृष्ण बल्लभ ब्रह्मचारी जी ने अंग्रेजी में तथा तेलगुदेशीय श्रील गुरु महाराज जी के गुरु भाई श्री उयाइ जगन्नाथम् पाण्तलु गारू जी ने तेलगु भाषा में भाषण दिया। श्रील गुरुदेव जी ने “श्रीगीता की शिक्षा”, “श्रीनाम-महिमा” तथा “विश्व शान्ति समाधान में श्रीचैतन्यदेव” इत्यादि विभिन्न वक्तव्य विषयों पर जो सारगर्भित अभिभाषण प्रदान किये थे, उनका सारांश इस प्रकार है।