Harikatha

साधुओं की संगति में पवित्र नाम का जप करना

 

“कृपया अपने मन में बुरी संगति से बचें और बिना किसी अपराध के हरिनाम का जप करें”

श्री श्री कृष्ण चैतन्य चन्द्र की जय हो!

 

श्री भागवत प्रेस, कृष्णानगर,
2 जनवरी, 1918,
18 पौष, 1324

 प्रिय,

               मुझे पहले भी आपके 2-3 पत्र प्राप्त हो चुके हैं। लेकिन पत्र लिखने के लिए भक्तों के भौतिक रूप से उपलब्ध न होने तथा स्वयं विभिन्न सेवाओं में व्यस्त होने के कारण समय पर उत्तर देना संभव नहीं हो पाया।

‘ श्रीकृष्ण चैतन्य सहस्रनाम’ पहले नहीं भेजा था, इसलिए अब भेज रहा हूँ। श्री सज्जन तोशनी का 5वाँ संस्करण अभी प्रकाशित नहीं हुआ है।

मैंने सुना है कि *** कोलकाता आ गया है। जल्दी ही *** अपने घर वापस लौट जाएगा। *** की दयनीय स्थिति उसके पिछले पाप कर्मों का परिणाम है। हमें इस बात का दुख है। “स्व-कर्म-फल-भुक् पुमान” (हर कोई अपने कर्मों का फल भोगने या भुगतने के लिए बाध्य है), इसलिए उसके अगले जन्मों में उसे लाभ होगा।

कृपया अपने मन में बुरी संगति से बचें और बिना किसी अपराध के हरिनाम का जप करें। कृपया नियमित रूप से ‘श्री चैतन्य चरितामृत’ ग्रंथ का अध्ययन करें ।

यहाँ सब ठीक है। यह तय हो गया है कि, जल्द ही, व्रजपट्टण (मायापुर) में भी देवी-पूजा शुरू की जाएगी।

आपका सदैव शुभचिंतक,

श्री सिद्धान्त सरस्वती.