Harikatha

श्री वीरचन्द्र प्रभु की महिमा

श्रील गुरुदेव ने हरिकथा के प्रारंभिक भाग में विरचंद्र प्रभु की महिमा का वर्णन किया। बाद में, उन्होंने भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा लिखे गए भजन ‘भवार्णवे पड़े मोर आकुल पराण’ के गूढ़ अर्थ को समझाते हुए, विराचंद्र प्रभु के गुरु जान्ह्वा देवी की महिमा का गान किया।

आज विशेष तिथि है। नित्यानंद प्रभु और वसुधा देवी को अवलंबन करके वीरचंद्र प्रभु इस तिथि पर प्रकट हुए। विष्णु-तत्त्व की आविर्भाव तिथि पर उपवास रखना चाहिए, ‘उपवास’। उपवास का अर्थ केवल भोजन नहीं ग्रहण करके रहना नहीं है बल्कि ‘उपवास’ का वास्तविक अर्थ सर्वक्षण अपने आराध्य देव, भगवान् के निकट रहना और उनकी कृपा-प्रार्थना करना है।

क्षीरोदकशायी महाविष्णुनित्यानंद प्रभु जो स्वयं बलराम है को अवलंबन करके वीरचंद्र प्रभु रूप में प्रकट हुए। बलराम की दो शक्तियाँ हैं, रेवती और वारुणी। उसी प्रकार नित्यानंद प्रभु की भी दो शक्तियां है वसुधा और जाह्नवा। नित्यानंद प्रभु की पतित जीवों पर असीम कृपा है। बद्ध जीवों के उद्धार के लिए वे कुछ भी करने के लिए तैयार है। वीरचंद्र प्रभु कोलकाता के पास खरदह में रहते थे। जाह्नव देवी ने वीरभद्र प्रभु को चतुर्भुज रूप में दर्शन देकर उन पर कृपा की। वीरभद्र प्रभु ने उनसे दीक्षा-मंत्र प्राप्त किया। गुरु से दीक्षा ग्रहण कर शिष्य होना आवश्यक है।

वे जह्नावा देवी की अनुमति लेकर, व्रज-धाम में आए। वहाँ लोकनाथ गोस्वामी और भुगर्भ गोस्वामी का आशीर्वाद लेकर उन्होंने व्रज-मंडल परिक्रमा की। वे वहाँ से एक पत्थर का टुकड़ा लाए जिससे श्यामसुंदर, राधावल्लभ और नंददुलाल, तीन विग्रह प्रकट हुए। नित्यानंद प्रभु की तिथि में वहाँ पर महोत्सव होता है।

मैं सौधपुर, पानीहाटी गया हूँ लेकिन खरदह जाने का अवसर नहीं मिला। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ने लिखा है कि नित्यानंद प्रभु कितने दयालु हैं। उन्होंने बद्ध जीवों के उद्धार के लिए जाह्नवा देवी के रूप में अपनी शक्ति को साक्षात् कृपा मय रूप में प्रकट किया। जाह्नावा देवी ने डकैतों और पाषंडीयों का भी उद्धार किया। अपने एक भजन में, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर लिखते हैं,

भवार्णवे पड़े मोर आकुल पराण।
किसे कूल पा’व, ता’र ना पाई सन्धान॥

मैं इस भवसमुद्र में गिर गया हूँ और यह भी नहीं जानता कि इससे (कुल) पार कैसे होऊंगा।”

ना आछे करम-बल, नाहि ज्ञान-बल।
याग-योग तपोधर्म-ना आछे सम्बल॥

मैंने ऐसा कोई वेद विहित कर्म भी नहीं किया, ऐसा कोई गुण नहीं है जिसे देखकर आप मेरा उद्धार करें। कोई यज्ञ भी नहीं किया, योग भी नहीं किया, तपस्या भी नहीं की।

इस संसार के बद्ध जीवों में किसी प्रकार का कोई संबल नहीं है। वे वेदों में बताए गए कर्मों का भी पालन नहीं करते हैं। कलियुग के ब्राह्मण वेदों के विधान भी नहीं जानते। उनके पास ज्ञान का ताकत नहीं है, पूर्ण रूप से माया द्वारा ग्रसित है। उनके पास योग या तप का बल भी नहीं है। कैसे उद्धार होगा? मेरे जैसे बद्ध जीव का उद्धार कैसे हो सकता है?”

नितान्त दुर्बल आमि, ना जानि साँतार।
ए विपदे के आमारे करिबे उद्धार??

मैं तो बहुत दुर्बल हूँ तथा तैरना भी नहीं जानता। यह भवसमुद्र रूपी विपदा से मेरा कौन उद्धार करेगा? हमारा उद्धार करने आ भी जायेंगे तो भी हम उन्हें पहचान नहीं पायंगे। नित्यानंद प्रभु-महाप्रभु स्वयं आ गए। गुरुदेव हमारे स्थान पर ही आ गए तब भी हम उन्हें समझ ही नहीं पाते। गुरूजी मुझे उद्धार करके ले आयें अन्यथा में तो कहाँ फंसा हुआ था।

विषय-कुम्भीर ताहे भीषण-दर्शन।
कामेर तरङ्ग सदा करे उत्तेजन॥

मेरे सामने विषयभोग रूपी ग्राह है जो मुझे निगलने के लिए तैयार है—ऐसा भीषण दर्शन है। इतने प्रकार की कामवासना की तरंगें मुझे सर्वदा उत्तेजित कर रही हैं।

हमारे पूर्व में किए हुए कर्मों है इसलिए भक्ति विनोद ठाकुर लिखा है

प्राक्तन वायुर वेग सहिते ना पारि।
कान्दिया अस्थिर मन, ना देखि काण्डारी॥

पूर्व जन्मों में किए हुए बुरे कर्म तेज़ वायु के समान हैं, जिसका वेग सहन करना अत्यधिक कठिन है। इसलिए यह मुझे सता रहे हैं।ऐसी स्थिति में कौन मेरा उद्धार करेगा? मुझे पार करानेवाले नाविक कहाँ है?

ओगो श्रीजाह्नवा देवी! ए दासे करुणा।
कर आजि निजगुणे, घुचाओ यन्त्रणा॥

श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ने लिखा है कि ऐसी स्थिति में बचाने वाला कौन है? मुझमें कोई गुण नहीं है, गुण देखकर ही आप कृपा करेंगे तो मेरा उद्धार होना कठिन है। आप अपने ही दया गुण से मेरा उद्धार कीजिए।आपने पहले ही अपने ही गुण से कई दुष्टों और डकैतों का उद्धार किया है। जाह्नवा नित्यानंद प्रभु से भिन्न नहीं है, जिन्होंने उन पर हमला करने वाले जगई-मधाई को कृष्ण-प्रेम देकर उद्धार किया। जाह्नवा देवी उन्हीं नित्यानंद प्रभु की कृपा शक्ति है।कर

आजि निजगुणे, घुचाओ यन्त्रणा॥

यन्त्रणा – इस भौतिक संसार के त्रिताप। भगवान की भक्ति से ही इन त्रिताप से मुक्ति हो सकती है। जब किसी को कृष्ण के प्रति प्रेम होगा, तो उसके सभी कष्ट अपने आप दूर हो जाएंगे। जाह्नवा देवी वह कृष्ण-प्रेम प्रदान कर सकती है। हम कृष्ण को भूल गए हैं और इस भौतिक संसार में भोग करने आए हैं, इसलिए हम दुखों से पीड़ित हैं। यदि हम अपनी इन्द्रियों को वश में करने का प्रयास करें और उन्हें अपने विषयों से बलपूर्वक अलग का प्रयास करें, तो संभावना है कि हमारा पतन हो सकता है। जब तक हम श्रीकृष्ण की मधुरता का आस्वादन नहीं करेंगे, हमारे पतन की संभावना बनी रहती है।

तोमार चरण-तरी करिया आश्रय।
भवार्णव पा’र हब क’रेछि निश्चय॥

आपके चरण कमलों की नाव की शरण लेने से इस भव-समुद्र से पार हो जायेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।” हम जानते हैं कि नित्यानंद प्रभु ने महा-महा पापीष्ट व्यक्तियों का भी उद्धार किया। उन्होंने महाप्रभु से जगाई-मधाई को भी क्षमा करने के लिए प्रार्थना की। किन्तु केवल इतने से ही वे संतुष्ट नहीं हुए। बद्ध जीवों के प्रति असीम करुणा से, उन्होंने अपना सबसे कृपालु रूप जाह्नवा देवी को प्रकट किया। किन्तु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमें उनकी करुणा का अनुभव नहीं है। जाह्नवा देवी परम कृपालु है, वे नित्यानंद प्रभु की कृपा मूर्ति है।

तुमि नित्यानंद-शक्ति, कृष्ण-भक्ति-गुरु।
ए दासे करह दान पद-कल्पतरु।।

“जाह्नवा देवी कौन है? भगवान नित्यानंद की शक्ति एवं कृष्ण-भक्ति की गुरु हैं। हे जाह्नवा देवी!, कृपया इस सेवक को अपने चरण कमल रूपी कल्पतरु प्रदान कीजिए। उनके चरण कमल वांछा-कल्पतरु अर्थात् कामना पूर्ण करने वाले वृक्ष के समान है, आप चरम लक्ष्य प्राप्ति के लिए जो भी इच्छा करेंगे, उनके चरणों का आश्रय लेने से वह पूरी होगी।”

कत कत पामरेरे करेछो उद्धार।
तोमर चरणे आज ए कंगला छार।।

“आपने बहुत से पापियों और अपराधियों का उद्धार किया है। मैं, नगण्य व्यक्ति, तुच्छ प्राणी आपके चरण कमलों की शरण लेता हूँ।”

इस प्रकार श्रील भक्तिविनोद ठाकुर ने उनकी महिमा का वर्णन किया है। वीरचंद्र प्रभु ने उनसे दीक्षा ली थी। वे अपनी कृपा से हजारों-लाखों पापियों का उद्धार कर सकते हैं।

आज वीरचंद्र प्रभु का आविर्भाव दिवस है। वे नित्यानंद प्रभु के अभिन्न स्वरूप हैं। मैं उनके पाद-पद्मों में अनंत कोटि दंडवत प्रणाम करते हुए उनकी कृपा-प्रार्थना करता हूँ। हम उनसे प्रार्थना करते हैं कि हमें उनके पाद-पद्मों एवं उनके आराध्य भगवान की सेवा प्रदान करें।