गुरुमहाराज, श्रील भक्ति सर्वस्व गिरि महाराज को स्मरण करते है, जिन्होंने परम गुरुदेव को कालियादह मठ समर्पित किया था। गुरुदेव एक प्रसंग भी सुनाते हैं, जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत रूप से श्रीमहाराज को आलू सब्जी और पूड़ी खिलाई थी!
त्यलिला-प्रविष्ट परम पूज्यपद श्रील भक्ति सर्वस्व गिरि महाराज हमारे गुरु महाराज, श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज के बड़े गुरुभाई हैं। उन्होंने हमारे गुरुमहाराज को कालियादह मठ (विनोदवाणी मठ, वृंदावन) दिया है। श्रील गुरुदेव ने उनसे कहा, “वृंदावन में हमारे पास पहले से ही एक मठ है, आप यह मठ हमें देंगे तो उसकी देखभाल करने के लिए मुझे सेवकों की व्यवस्था करनी होगी, यदि आप मठ हमारे किसी और गुरुभाई को देंगे तो अच्छा होगा।” उन्होंने कुछ नाम भी सुझाए लेकिन श्रील गिरि महाराज अपना मठ गुरुदेव को ही देने के लिए दृढ़ थे। वे हमारे गुरुमहाराज से अनुरोध करते हुए रो रहे थे, और कहने लगे कि यदि आप यह मठ अपने पास रख लेते है तो में निश्चिंत होकर अपना शरीर छोड़ सकता हूँ। इसलिए अंततः गुरुमहाराज ने मठ स्वीकार कर लिया।
उनको मेरे प्रति स्नेह था। मैं ट्रेन में उनके साथ कोलकता से उड़ीसा के उदाला मठ में जाता था। वर्तमान में सागर महाराज उदाला मठ के आचार्य हैं। पूज्यपाद गिरी महाराज को आलू से बने व्यंजन बहुत पसंद थे। एक बार मैंने उनके लिए पूरी और आलू का व्यंजन बनाया। उन्होंने उसे खा लिया। मैंने उनसे पूछा कि यह कैसा बना है? उन्होंने उत्तर दिया, “first class (एकदम बढ़िया)”। बाद में, मैंने उसमें से थोडा कुछ खाकर देखा तो और पाया कि करी में नमक ही नहीं था। लेकिन उन्होंने कहा, “सब कुछ एकदम बढ़िया है।” वे ऐसे थे।
वे spirited person (तेजियान व्यक्ति) थे। वैसे तो वे एक साधारण संन्यासी की तरह रहते थे किन्तु जब वे हरिकथा बोलते थे, तो उन्हें माइक का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती थी। प्रभुपाद के समय में वे कई बड़ी हस्तियों जैसे कुलपति और अन्य लोगों से मिलते थे। उनको अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था। आज उनकी तिरोभाव तिथी है।