यहाँ जीव का अर्थ है, पशु-पक्षी आदि सभी प्राणी। 84 लाख प्रकार के प्राणी समुदाय हैं। विष्णुपुराण में वर्णित है- जलजा नवलक्षाणि …..
9 लाख प्रकार के जलचर प्राणी हैं, 20 लाख प्रकार के पेड़-पोधै, 11 लाख प्रकार के जीव-जंतु, 10 लाख प्रकार के पक्षी, 30 लाख प्रकार के चार पैरों वाले पशु और 4 लाख प्रकार की मनुष्य योनियाँ हैं।
मनुष्य जन्म बहुत दुर्लभ है और हमें इस बहुमूल्य अवसर को गंवाना नहीं चाहिए। केवल मनुष्यों के पास ही भगवान् का भजन करने की क्षमता होती है, अन्य प्राणियों के पास ऐसा सामर्थ्य नहीं होता। इसलिए संसार के तुच्छ भोगों में इस बहुमूल्य मनुष्य जन्म को व्यर्थ करना बुद्धिमानी नहीं है।