“कृपया सदैव पूर्ण आस्था के साथ हरिनाम का जप करें”
श्री श्री कृष्ण चैतन्य चन्द्र की जय हो!
श्री भागवत प्रेस,
पीओ कृष्णानगर, नादिया,
9 भाद्र 1323,
25 अगस्त 1916
प्रिय,
मुझे आपके दो पत्र प्राप्त हुए हैं, दिनांक 7 आषाढ़ और 28 आषाढ़ । विभिन्न सेवाओं में व्यस्त होने के कारण मैं समय पर उत्तर नहीं दे सका। मैं आषाढ़ महीने की शुरुआत से ही कृष्णनगर में रह रहा हूँ। कल श्रीमान *** यहाँ पहुँचे और आज कोलकाता लौटेंगे। उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।
केवल श्री हरि – परम भगवान, श्री गुरु – आध्यात्मिक गुरु और वैष्णव – शुद्ध भक्तों की सेवा करके ही जीव अपने भौतिक अस्तित्व से छुटकारा पा सकता है, अन्यथा, वह भौतिक भोगों की वस्तुओं में ही उलझा रहेगा। कृपया हमेशा अत्यंत श्रद्धा के साथ हरिनाम का जप करें। कृपया नियमित रूप से ‘ उपदेशामृत’ और ‘ श्री चैतन्य चरितामृत’ जैसे ग्रंथों को पढ़ें और सार को समझने का प्रयास करें। कृपया यह समझें कि भगवान परम दयालु हैं। वे एक दिन आप पर अवश्य कृपा करेंगे।
आपका सदैव शुभचिंतक,
श्री सिद्धान्त सरस्वती