Harikatha

भगवान श्रीहरि की महिमा ही सबका मूल है

“कृपया श्री हरिनाम की सेवा बड़ी श्रद्धा से करें”

श्री श्री कृष्ण चैतन्य चन्द्र की जय हो!

 

श्री धाम मायापुर,
13 चैत्र, 1324,
6 अप्रैल, 1918

प्रिय ***,

मुझे आपका लम्बा पत्र मिला है। मैं उत्सव के समय सेवाकार्य में बहुत व्यस्त था। मैं हमेशा हरिकथा सुनने और श्रीहरि के विषयों पर चर्चा करने में लगा रहता था। आप भी उन्हें सुन पाते थे। यदि आपको कुछ पूछना था, तो आप कम भीड़ होने पर पूछ सकते थे। मैं कभी किसी से चिढ़ता या नाराज नहीं होता; इसलिए मुझे आपसे नाराज होने का कोई कारण नहीं है। आप जल्दी-जल्दी कोलकाता चले गए। मैंने आपको रोका या मना नहीं किया, क्योंकि मुझे लगा कि आपको कोई जल्दी होगी। आप बहुत खर्च करके यहाँ रह रहे थे और बहुत सी परेशानियाँ झेल रहे थे। इसलिए मुझे इस बारे में कोई आपत्ति नहीं थी। कृपया श्रीहरिनाम की सेवा पूरी श्रद्धा के साथ करें, तो सब कुछ पूरा और सफल होगा।

कृपया हमें आशीर्वाद दें ताकि हम बिना किसी अपराध के पवित्र नाम का जप कर सकें।

आपका सदैव शुभचिंतक,

अकिंचन (जिसके पास कोई भौतिक संपत्ति न हो),

श्री सिद्धान्त सरस्वती