जो सब समय अखण्ड वस्तु भगवान् की सेवा करते हैं, उनके अनुगत्य के द्वारा ही जीव का मंगल होता है। वैष्णवगुरु की सेवा के द्वारा ही विष्णुसेवा प्राप्त होती है। श्रीगुरुदेव की सम्पति—साक्षात् कृष्ण है। यदि कृष्ण स्वयं अपनेको ही प्रदान करें, तो भी उनका कुछ देना बाकी रह जाता है। किन्तु भगवान् के भक्त सम्पूर्ण रूप से भगवान् को दे सकते हैं। उसमें भगवान् की कुछ भी क्षति नहीं होती है।