“गुरु-वैष्णवों की कृपादृष्टि, साधक-साधिकाओं के प्रति सब समय ही रहती है। उनके आशीर्वाद से हर प्रकार का असंभव भी संभव हो जाता है, पंगु (लंगड़ा) भी पर्वत लाँघने में समर्थ हो जाता है, गूंगा भी वाचाल (बोलने में निपुण) हो जाता है। सरलतापूर्वक गुरु-वैष्णवों की सेवा में तत्पर होने से तथा सब समय श्रीनाम-भजन करने से समस्त अनर्थ दूर हो जाते हैं। प्रतिदिन आदर-यत्नपूर्वक श्रीनाम ग्रहण, नियमित रूप से भक्ति-शास्त्रों की चर्चा तथा हरिकथा श्रवण का सुयोग ग्रहण करने से ही भक्ति पथ में अग्रसर हुआ जा सकता है। श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चन आदि करने पर चित्त शुद्ध होता है तथा चंचल मन स्थिर हो जाता है। केवल अपनी चेष्टा के द्वारा अहंकार में फूल जाने पर तत्व-वस्तु (भगवान) का सान्निध्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अतः अपनी चेष्टा के साथ-साथ गुरु-वैष्णवों की कृपा की भी आवश्यकता है। साधन एवं कृपा का योग होने पर ही सिद्धि प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण की दाम बंधन लीला में यही प्रमाणित हुआ है।”
श्रीश्रीमद् भक्ति वेदान्त वामन गोस्वामी महाराज जी