वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णश:।
यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम्॥
भक्त्या विहीना अपराधलक्षैः
क्षिप्ताश्च कामादि तरंगमध्ये।
कृपामयि त्वां शरणं प्रपन्ना,
वृन्दे! नमस्ते चरणारविन्दम्।।
श्रीकृष्ण चेतन्य प्रभु नित्यानंद
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्त वृन्द
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
सबसे पहले मैं पतित पावन
परम आराध्यतम् श्रीभगवान के अभिन्न प्रकाश-विग्रह
श्रीभगवत् ज्ञान प्रदाता श्रीभगवान की सेवा में
अधिकार प्रदान करने वाले परम करुणामय
श्रीगुरुदेव के पादपद्म में
अनंत कोटि साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हुए;
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ।
पूजनीय वैष्णववृन्द के श्रीचरण में प्रणत होकर
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ।
भगवत् कथा श्रवण पिपायु दामोदर व्रत पालनकारी
भक्तवृन्दों को मैं यथा-योग्य अभिवादन करता हूँ।
सब की प्रसन्नता प्रार्थना करता हूँ।
श्रीगजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद् विभातं क्व च तत् तिरोहितम्।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर:॥
गजेन्द्र स्वतः सिद्ध
पिछले जन्म में भक्त थे, भगवान की उपासना करते थे;
वो भक्ति कभी नाश नहीं होती है।
कोई कारण से आवृत होने से भी जब प्रकाश हो जाएगी;
तो फिर
उनकी जो अवस्था में पहले थे, भक्ति की
वहाँ से शुरू होगा।
सारा याद हो गया उनको;
शरीर है; गजेन्द्र शरीर
भीतर में निर्गुण आत्मा का स्वरुप प्रकशित हो गया;
और स्वतः सिद्ध स्तव किया।
मैं, परमेश्वर भगवान वासुदेव हैं
उनको प्रणाम करता हूँ, उनके पास शरणागत होता हूँ।
जिनसे तमाम जगत चेतनवत् हो गया।
यह शरीर, सूक्ष्म शरीर चेतनवत् हो गया।
वही आत्मा है, उनसे ही…
और सबके कारण हैं, भगवान हैं।
भगवान के साथ connection नहीं रहने से फिर चेतन नहीं रहेगा।
सूर्य के साथ connection रहे, सूर्य की रोशनी के परमाणु की भी रोशनी रहती है।
connection छोड़ देगा तो रोशनी नहीं रहेगी।
इसलिए आत्मा भी नित्य है, अणु
भगवान विभु हैं;
वही भगवान से तमाम चेतनवत् हो गया।
पुरुष हैं, आदि बीज हैं;
तीन पुरुषावतार
वही भोक्ता, कर्ता मालिक हैं।
जब यह अनुभव होगा, वही एक मात्र मालिक हैं।
हम लोग मालिक नहीं हैं।
जब मालिक हो जाते हैं, when we think we are the master and enjoyer
then immediately we are enveloped.
by the illusory energy and hurled down in this prison house
of the world we think ourselves
we are enjoyer, we are the masters of the world, we want to enjoy;
and punished, severely punished
by getting birth, death, threefold afflictions
for this sort of evil desire to enjoy this world
you are not ‘puruṣ’
you are to be enjoyed
want to pose yourself that you are enjoyer
you should be punished
this world is the prison house for those culprits
you will be punished here
‘ādi-bija bhagavān’ ‘puruṣ’
He is the only… ahaṁ hi sarva-yajñānāṁ bhoktā ca prabhur eva ca (Bg. 9.24)
ahaṁ hi—I am certainly only enjoyer and master
I am Lord of all Lords
यहाँ पर गजेन्द्र ध्यान कर रहा है।
प्रणाम किया; भगवान के चरणों में सहारा लिया।
और भगवान का जो स्वरुप है, उसके बारे में ध्यान भी किया।
‘धीमहि’ होता है, बहुवचन
वो तो एकेला है
एकेला होने पर भी बहुवचन ‘धीमहि’ क्यों लगाया?
यह होता है, विधान
मैं ध्यान नहीं कर सकता हूँ।
मेरी योग्यता नहीं है;
लेकिन ध्यान करनेवाले जितने हैं, अनंत शुद्ध-भक्त हैं;
उनका अनुगत्य कर रहा हूँ, मैं।
उनकी कृपा प्रार्थना करते हुए, ध्यान कर रहा हूँ।
धीमहि अंतरार्थ यह है।
realized soul are infinite, realized souls of different degrees.
actually they are meditating
by mediation nobody can finish
the realization of Supreme Lord
nobody can finish it will add infinitum
but we have to think of them, who has got that sort of knowledge
हम लोग ध्यान करने के वक्त भी घमंड है;
यह भजन का तरिका नहीं है।
हमारा.. हम भजन नहीं कर सकते हैं, ध्यान नहीं कर सकते हैं।
जो ध्यान कर रहे हैं, वो लोग भी अपने को समझते हैं, मैं असमर्थ हूँ।
मैं अभी भी अनुभव नहीं कर पाया;
उनके अनुगत्य में ध्यान
वही परमेश्वर को ध्यान कर रहा हूँ।
ध्यान कर रहा हूँ; मैं नहीं हम लोग
सब, धीमहि बहुवचन
फिर कहते हैं,
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥
एक-एक बार स्तव करते हैं
आखरी में शरणागत होते हैं,
भगवान के चरणों में शरणागत होते हैं।
अथवा उनकी कृपा प्रार्थना करते हैं।
उनका महात्म्य ध्यान करते हैं।
जिनमे यह विश्व है,
जिन से यह विश्व है,
जिन के द्वारा यह विश्व है,
जो स्वयं विश्व हैं;
कल तो हम लोग ने आलोचना की थी
जब भी भगवान की बहिरंगा शक्ति का प्रकाश है, जड़ विश्व
all these material planets
ब्रह्माण्ड जितने हैं;
यह सब जड़ हैं, जड़ हैं।
लेकिन तब भी भगवान की शक्ति के प्रकाश हैं
मैं तो राम का रूप हूँ, सजदा करूँ किसका?
राम का
मैं वही राम हूँ, ऐसा नहीं; शक्तिमान तत्त्व नहीं हूँ।
यह बात नहीं है, मैं राम की शक्ति का अंश हूँ।
मेरा धर्म क्या है? उनकी सेवा करना; मैं वही भगवान ऐसा नहीं।
मैं तो शक्ति का परमाणु हूँ;
मैं मेरी शक्ति का मालिक हो गया
एकदम तत्त्व विरुद्ध हो जाएगा, सारा ही नष्ट हो जाएगा।
अभी, जो कार्य-कारण,
सब का, दुनिया में जो हम लोग देखते हैं।
सभी भगवान हैं, फिर कहते हैं भगवान
यह कार्य-कारण को छोड़ के अलग भी हैं।
भगवान यह कार्य भी नहीं हैं, कारण भी नहीं हैं।
वो स्वतः सिद्ध हैं।
जो स्वतः सिद्ध हैं self-effulgent
उनका कोई कारण नहीं है।
कारण रहे, तब भगवान की भगवत्ता..
भगवत्ता नहीं रहेगी
इसलिए स्वयं अपने को प्रकाश करते हैं।
स्वतः सिद्ध हैं self-effulgent
तो इसलिए हम लोग के भारत वर्ष में
सब शब्द व्यवहार करते हैं, बहुत चिंता करके
और जगह में भगवान के बारे में अक्कल कम है, इसलिए दूसरा शब्द व्यवहार करते हैं।
philosophy
use of argument and reasoning to know the reality.
हम लोगों के जो ऋषि लोग कहते हैं; भूल है, गलत बात है।
मनुष्य finite being, his intellect is finite.
भगवान की जो जड़ा प्रकृति से
जड़ा शक्ति से, अपरा प्रकृति से मन, बुद्धि निकले;
वही जड़ बुद्धि, मन के कारखाने में भगवान तैयार होंगे?
इतना घमंड करने की क्या जरुरत है?
जिसको मनुष्य तैयार करते हैं, being finite being
anything manufactured in finite factory
by mental capacity is also finite
he is not Supreme Lord
वो Supreme Lord हो ही नहीं सकते हैं।
If Supreme Lord is there He is always existing.
you are not to determine the Ultimate Reality
who are you to determine ultimate reality?
He is there, you have to find out the way how to see?
दर्शन शास्त्र
दर्शन शास्त्र
उसका synonym philosophy नहीं है।
dictionary देखिये use of argument and reasoning
to know the reality
और हमारे यहाँ बोलते हैं,
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्॥
भाषण से नहीं मिलेगा
बहुत बड़ा intellectual giant है, जज, बेरिस्टर के सिर को घुमा सकता है
सारे तमाम शास्त्र याद कर लिए,
जो उनका चरण में शरणागत होगा;
उनकी कृपा से वो जान सकता है।
वो जानना भी शेष नहीं है।
हम जान लिए; हम ने तो जान लिया completely
तो हमारा
जानन्त एव जानन्तु किं बहूक्त्या न मे प्रभो।
मनसो वपुषो वाचो वैभवं तव गोचर:॥
(भा. 10.14.38)
ब्रह्मा कहते हैं, जो कोई कहते हैं, आपको जानते हैं। जानने दो
मैं तो आपको जान नहीं सका, आपके वैभव को भी जान नहीं सका।
आपके जो पार्षद हैं, उनको भी पहचान नहीं सका; उनको चोरी करके ले गया।
किसलिए? वो असीम हैं
उनको जान कर समाप्त कर दिया, उनके असीमत्त्व की हानि होती है।
वो हर वक्त ही incomplete ही रहेगा;
it will remain add infinitum
नित्य नूतन रूप से आस्वादन होगा।
इसलिए कहते हैं;
स्वतः सिद्ध जो भगवान हैं,
सब के कारण
स्वयं अपने को प्रकाश करते हैं though revelation
when we shall submit to Him then He will appear
as per degree of my submission
I can have realization of there soon.
but that is not the ultimate
हम लोग कहते हैं, हम सब समझ लिए; ऐसा नहीं
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद् विभातं क्व च तत् तिरोहितम्।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर:॥
यः (यदृच्छया) स्वात्मनि (स्वस्मिन्नेव)
निजमायया अर्पितम् इदम् (जगत्)
क्वचित् (कदाचित कल्पादौ) विभातं
(देवमनुष्यादीनामरूपेण अभिव्यक्तं)
(पुनः) क्व च (प्रलये) तिरोहितं (लीनं)
तत् उभयं (कार्यावस्थं कारणावस्थं जगत् च)
अविद्धदृक् (अलुप्तदृष्टिः)
आत्ममूलः (आत्मा स्वयमेव मुलं यस्य सः स्वप्रकाशः अतएव)
साक्षी (सन्) ईक्षते (पश्यति)
सः परात्परः
(परात् प्रकाशकात् चक्षुरादेः
अपि परः प्रकाशकः भगवान्)
ऐसे तो अभिधान में है, परात्पर का मतलब परमेश्वर
यहाँ पर व्याख्या की है।
माम् अवतु (रक्षतु)
जिनकी अपनी माया है।
भगवान की माया शक्ति है,
अपने में सारा ही वो जितने हैं, कुछ हैं
अनंत ब्रह्माण्ड, वैकुण्ठ सब भगवान के अंदर में ही हैं,
बाहर नहीं है;
अभी कोई समय में यह विश्व कल्प में प्रकाश होता है।
कल्प होता है, ब्रह्मा का एक दिन
ब्रह्मा का एक दिन गिनती कर के दिखाया;
अभी जो कलियुग है, चार लाख बत्तीस हजार (432,000) सौर वर्ष
कलियुग का दो गुना द्वापरयुग
तिन गुना त्रेतायुग
चौ गुना सत्य युग
सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि लेकर तेत्तालिस लाख बीस हजार (4,320,000)
ऐसा चतुर्युग
सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि
जब एकहत्तर (71) दफे बीत जाता है;
71 करके multiply करना पड़ेगा।
तब एक मनु की आयु खत्म होती है।
चौदा (14) मनु की आयु खत्म होगी तब ब्रह्मा का एक दिन
अभी mathematically you cannot calculate
ब्रह्मा का एक दिन one day is such
वो दिन में सृष्टि होती है, व्यक्त होते हैं,
मनुष्य, जानवर, चिड़िया इनता कुछ पहाड़ पर्वत सब कुछ
हम लोग देख रहे हैं, ना? यह सृष्टि होती है
दिन में सृष्टि, प्रकाशित देखते हैं, व्यक्त देखते हैं।
एक कल्प ब्रह्मा का एक दिन
वही दिन में यह सब प्रकाशित देखा जाता है।
शास्त्र की बात उल्टी-पल्टी नहीं है।
हम लोग को समझना पडेगा, उनका युग क्या है?
युग कहने से एक हो गया ऐसा नहीं
वो लोग भी युग कहते हैं,
golden age, silver age, bronze age and iron age
हम भी कहते हैं, हम लोग का
span of life is different from them
in Western countries
वो भी सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि दूसरे शब्द से कहते हैं;
उनका जो..
एक-एक युग की जो सीमा दिखाई, बहुत कम है;
और हम लोगों की बहुत ज्यादा है।
युग कैसा है? देखना पड़ेगा;
अभी वही
दिन में सृष्टी हुई, व्यक्त हो गया;
सब देख रहा हूँ, और रात को
प्रादुर्भूत हुआ, दिन में
और रात को चला गया।
प्रकृति में लय हो गया, प्रकृति कारण
और यह कार्य है; देखने में
लेकिन प्रकृति में कारणोदक्षायी महाविष्णु ने निगाह दी,
चेतन शक्ति दी तब सृष्टि हुई;
तब भी ऐसा तो देखा जाता है, एक कारण है
एक कार्य है, कार्य यह जगत देख रहे हैं।
सब विचित्र जगत देख रहे हैं।
कितने दिन रहेगा? ब्रह्मा का एक दिन
और ब्रह्मा की रात्री भी ऐसी है।
जब ब्रह्मा का दिन खत्म हो जाएगा, सब प्रलय
खत्म हो गया, कुछ भी नहीं रहेगा;
भगवान निरपेक्ष रूप से देख रहे हैं, साक्षी रूप से
एक लाख आदमी मर गए, दुई लाख आदमी मर गए
सारे अनंत जीव खत्म हो गए;
निर्लिप्त रूप से देख रहे हैं;
फिर सृष्टि का समय आ गया, फिर सृष्टि हो गई।
ब्रह्मा के दिन में सृष्टि हुई।
फिर रात को प्रलय, खंड प्रलय
ऐसा,
इसमे आप अलुप्त दृष्टि में रहते हैं
और कर्मफल नियंता, साक्षी रूप से रहते हैं;
और वहाँ पर हम लोगों को इन्द्रियाँ दी;
इन्द्रियाँ भगवान दिए, जितनी शक्ति देते हैं, उतना हम देखते हैं।
अर्जुन को जब दिव्य नेत्र दिए
दिव्य नेत्र का मतलब; ओपाधिक दिव्य नेत्र
उससे भगवान का स्वरूप, विश्वरूप देखा।
और जितने हैं वो लोग नहीं देख पाए।
कितने लोग वहाँ पर हैं? वो लोग नहीं देख पाए
लेकिन अर्जुन ने देखा, भय हो गया
फिर.. अर्जुन के प्रेम नेत्रों का विषय मैं द्विभुज हूँ;
भीषण रूप देखा, जितना कुछ
वो मारने के लिए आया
सब को देखा अपने दांत में रख दिया, सबको पहले ही मार के रख दिया
भयंकर मूर्ति देखा;
अर्जुन को भय हो गया, हम..
मैंने तो गलती की, आप को ऐसा..
हे..! रथ चला ने के लिए नौकर करके रख दिए, हुक्कुम कर दिया.. ये.. ये..
अपराध हो गया, भय हो गया।
इसलिए वो जो है, वो नेत्र दिया तब देखा
दुनिया में भी देखेंगे
मछली पानी के अंदर में देखती है,
उसकी भी आँख है
जब पानी से उठाएँगे तब देख नहीं पाएगी।
हम लोग ऐसे देखते हैं, जब पानी के अंदर में डूब जाएँगे तब नहीं देख सकते हैं।
दूसरा कुछ यन्त्र लगाना पड़ेगा;
नहीं तो नहीं देख सकते हैं।
भगवान ही सृष्टि किए; जितनी हम लोगों को योग्यता दी, उतना ही देख सकते हैं।
ज्यादा नहीं देख सकेंगे,
भगवान ने अभी मनुष्य सृष्टी की, उनका एक दर्शन और प्राणी से अलग है
हर एक का अलग-अलग-अलग-अलग हैं
इसलिए कहते हैं, वही आँखों के आँख
जो शक्ति दिए देखने के लिए
वो भी भगवान ही दिए
भगवान वो शक्ति को जब ले लेंगे, तब देख नहीं सकेंगे
चेतन बग़ैर कोई अनुभव नहीं होता है;
यह चेतनता का मूल कारण भगवान हैं।
और यह चेतन परमाणु है
और चेतन रहते हुए भी हम लोग देखते नहीं, प्राकृत नेत्रों से
मानसिक नेत्र से देखते है, सूक्ष्म
लेकिन प्राकृत नेत्रों से नहीं देखते
इसलिए वो चक्षु के चक्षु
कान के कान, कर्ण के कर्ण ऐसे हैं
परात्पर का अर्थ किए।
‘परात्पर’
चक्षु के चक्षु
जो आँखों से मैं देख रहा हूँ,
उनका हम लोग देख के कुछ देख लिए;
लेकिन इसके पीछे में भगवान हैं, भगवान सब कुछ देख रहे हैं।
हम लोग जो देख रहे हैं,
भगवान हम लोगों को देख रहे हैं, सब कुछ देख रहे हैं;
देवता की भी ज्यादा शक्ति है, मनुष्य से
मनुष्य जितना देखता है, ना? उससे ज्यादा देखते हैं
उसकी भी सीमा है, लेकिन भगवान असीम हैं; सब कुछ देख सकते हैं।
यह आँखों के आँख, कान के कान हैं
परात्पर तत्त्व परमेश्वर हैं;
स्वयं एव स्वतः सिद्ध
आत्मा को ही प्रकाश करते हैं, आत्ममूल
यहाँ पर कहते हैं;
आत्मा स्वयमेव मुलं यस्य सः स्वप्रकाशः
आत्मा का स्वप्रकाश स्वतः सिद्ध
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।
तमस्तदासीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभु:॥
यदा) कालेन
द्विपरार्द्धावसान
द्विपरार्द्ध काल होता है, ब्रह्मा की आयु
एक दिन देखा, हम…
दिन-रात मिलके कितना हुआ?
double हो गया, ना?
ऐसे 365 दिन में ब्रह्मा का एक साल
ऐसी एक सौ साल आयु;
इसको द्विपरार्द्ध कहते हैं,
यह जब खत्म होगा तब ब्रह्मा भी ख़त्म हो जाएँगे।
कब होगा, मालुम नहीं
इसलिए कहते हैं,
(यदा) कालेन
(द्विपरार्द्धावसानरूपेण कालेन)
सर्वहेतुषु (पृथिव्यादितत्त्वेषु)
लोकेषु (तत्कार्य्येषु)
पालेषु च (तत्पालकेषु ब्रह्मादिषु च)
कृत्स्नशः (साकल्येण)
पंचत्वं (लयं)
इतेषु (प्राप्तेषु सत्सु) तदा।
गहनं (अतिसूक्ष्मत्वात् दुरवगाहम्)
गभीरम् (अनन्तं परिच्छेत्तुम् अशक्यं)
तमः आसीत् (आदित्यवर्णं तमसः परस्तादितिश्रुतेः)।
तस्य (एवंभुतस्य तमसः),
पारे यः (प्रकाशस्वरूपः) विभुः
अभिविराजाते (आसीत्, तमहं शरणं प्रपद्ये)॥
इससे पहले
प्रार्थना की मुझे रक्षा करें, भगवान
जो ऐसे साक्षी रूप से देखते हैं;
देखते हैं, जो सारे जितने जीव
पहले लिखा, कितने जीव
आत्मा कभी उसका जन्म भी नहीं है, मृत्यु भी नहीं है
वो मेरी माया से मोहित होकर जन्म लेते हैं, थोड़े दिन रहते हैं, मर जाते हैं;
यह सब झूठ देख रहे हैं,
मैं क्या करूँ?
मैं तो अन्तर्यामी निर्लिप्त रूप से देखता हूँ,
यह लोग ऐसे यहाँ पर जन्म लेते हैं, पृथ्वी सृष्ट होती है
ऐसे फिर खत्म हो जाती है,
खत्म कुछ भी नहीं होता है
और जन्म भी नहीं होता है
लेकिन वो देखते हैं, मेरी माया से
मैं क्या करूँ? जो मेरे शरणागत होता है, मैं उठा लेता हूँ…
यह स्वप्न के माफिक अभी
इसमें कहते हैं, हमको रक्षा करो
यहाँ पर कहते हैं,
मैं उनका शरणागत होता हूँ, किनका?
जब ब्रह्मा जी की भी आयु खत्म हो गई
ब्रह्मा के दिन-रात के बाद नहीं,
दिन में सृष्टि, रात में लय हो गया, उसके बाद नहीं
खंड प्रलय नहीं, एकदम महाप्रलय
absolute dissolution, annihilation of whole world
सब खत्म हो जाय including brahma
वो प्रकाश रहेगा, ना?
वो जो प्रकाश होता है, ना? महाविष्णु का
अप्रकाश रहते हैं
प्रकृति में लय हो जाते हैं, फिर प्रकाश
ऐसा होता है, ना? फिर
यह सृष्टि ऐसी चल रही है
इसलिए वो
भगवान, ब्रह्मा जी से सृष्टि कराते हैं;
अब ब्रह्मा भी खत्म हो गया;
उनके सृष्ट जितने हैं, सब कुछ
वो गया ही नहीं; ऐसा कि ब्रह्मा भी खत्म हो गए
कुछ भी नहीं रहा, सिर्फ उस वक्त
कारण
सकल कारण
काल वशतः
और लोकपाल सपूर्ण रूप से विनाशप्राप्त
जो कारण हम लोग देखते हैं, प्रकृति को
उससे कार्य हुआ—दुनिया,
लेकिन वही कारण के भी कारण भगवान हैं
और यह लोकपाल भी विनाश हो गए;
तब गभीर तमः
अँधेरा रह गया।
सिर्फ वर्तमान थे,
जो भगवान यही तमः राशि के
उस पार विराजमान हैं, मैं उनका आश्रय करता हूँ।
किसका आश्रय कर रहा हूँ? जो महाप्रलय में सब खत्म हो गया
असतो मा सत्गमय,
तमसो मा ज्योतिर्गमय,
मृत्योर्मा अमृतं गमय॥
बृहदारण्यक
बृहदारण्यक उपनिषद् में है, ना?
इसमें बृहदारण्यक उपनिषद् में यह तीन स्तव का पाठ करने के लिए कहा 428[N1]
पाठ करने का कहके अर्थ आखरी में बोल दिए;
अर्थ होता है, मृत्यु से अमृत में ले जाएँगे
अमृतमय भगवान हैं
अमृतं गमय
असतो मा सत्गमय
असत् जो अनित्य है, वही मृत्यु है
जन्म के बाद थोड़े वक्त
असतो मा सत्गमय… सत् में ले जाओ, सत् का मतलब
सत् मतलब हरि ॐ तत् सत् भगवान
मंगलमय अमृतमय भगवान को
असतो मा सत्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय
तमसः अज्ञान
अपने स्वरुप के बारे में अक्कल नहीं है
उसको ज्योति में ले जाओ
अर्थात् अमृत में ले जाओ
तमसः होता है मृत्यु
तो आखरी में अर्थ क्या है?
मा अमृतं गमय इति
इसलिए वही जो
सब नाश होने के बाद भी
चतुर्श्लोकी भागवत
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत् परम्।
पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम्॥
हमारे परम गुरूजी उसकी व्याख्या किए
अहं व्यक्ति हैं
चार श्लोक ना? चार श्लोक को लेकर वेदव्यास मुनि ध्यानस्थ हुए
ध्यानस्थ होकर सब
जीव का किस प्रकार से बंधन होता है, मुक्ति होती है
कृष्ण का महात्म्य सब दर्शन किए
दर्शन करके, द्वादश स्कन्ध भागवत लिखकर, परा-शांति प्राप्त किए
वहाँ कहते हैं,
सृष्टि के प्रारंभ में मैं था;
सृष्टि होने के बाद उसमें मैं ही हूँ;
सृष्टि नाश होने के बाद मैं ही रहूँगा
अहं
वही अहं क्या है? वही अहं साथ में
उनके पार्षद, धाम सब लेकर अहं होता है,
जो भगवान हैं, ना?
भगवान सब को लेकर ही तो भगवान
भगवान और भगवान की जो चिन्मय शक्ति
उनके जो पार्षद हैं, धाम हैं
सब लेकर ही जो भगवान हैं
वही परमेश्वर हैं उनके चरणों में मैं सहारा ले रहा हूँ।
वो नाश नहीं होते हैं
वो अहं कहने से यहाँ पर
वो जो हैं परमेश्वर को कहा जाता हैं, परमेश्वर
अहं, अहमेवासमेवाग्रे
जो सभी के कारण हैं
रसो वै सः। रसं ह्येवायं लब्ध्वानन्दी भवति।
रसो वै सः here ‘sah’ masculine phase of godhead
it नहीं
are you all familiar to masculine?
भोक्ता, कर्ता, मालिक
वो हैं रस (rasa) personified Krishna
अणु चेतन, अणु आनंद है,
जब चेतन रहते हैं, तब आनंद देते हैं
हम लोगों को जड़ पदार्ध मिलने से शान्ति होगी, अच्छा ठीक है
एक आदमी को एक राज्य दे दिया
बहुत बड़ा राज्य है, उसमे कोई प्राणी नहीं है
कोई आदमी भी नहीं कुछ भी नहीं है, लेकिन
सोना चाँदी बहुत हैं, सोना है चाँदी है
वो भर्ती हैं वो उसका एकमात्र मालिक है
उसको सुख होगा?
उसका श्वास बंद हो जाएगा;
जब एक बिल्ली मिले
बिल्ली को लेकर रख दिया उसके भीतर में चेतन है तो
थोड़ा उसको लेकर, थोडा सुख होगा
जब कोई प्राणी नहीं है, जड़ पदार्थ है
फिर श्वास बंद हो जाएगा;
आपको एक जगह दे दी, कोई प्राणी नहीं हैं, सब वैभव हैं
क्या सुख होगा?
सुख नहीं होता है,
एक चिड़िया है
वो चिड़िया रहने से उसको देखकर वो जो है ना?
वो parrot तोता.. तोता
ऐसा-ऐसा करता है, वो उसमे वो ठीक है
उसको लेकर ही रहेगा
उसमे कोई किसी-किसी की आसक्ति हो जाती है, हम देखा गोहाटी में
एक मैना चिड़िया रखी, जैसा उनको शिक्षा दिया ना?
mimicry जिसको कहते हैं,starling
वो शिक्षा दी, ऐसे वो लोग
राधे गोविन्द बोलो, हरे कृष्ण बोलो…
बहुत सुंदर है उसमे उनकी आसक्ति बन जाती है;
वो जब मर जाती है, तब उनको शोक होता है
लेकिन जब तब चेतन नहीं रहे, कोई सुख नहीं रहता
अणु चेतन, अणु सुख
विभु चेतन, विभु सुख
रसो वै सः।
रस, उनका व्यक्तित्त्व हैं
पूर्ण व्यक्तित्त्व हैं, पूर्ण चेतन हैं
जड़ पदार्थ सुखदायक नहीं है;
अणु चेतन अणु; विभु चेतन विभु इसलिए
वही विभु चेतन जो भगवान
वो सब प्रलय हो जाने से, महाप्रलय हो जाय
सब कुछ ख़त्म हो जाय,
उसके उस पार में जो हैं,
मैं उनका सहारा ले रहा हूँ।
किस का सहारा ले रहा है?
कृष्ण अपने पार्षद सब मिलके ही कृष्ण
धाम सब को लेकर वो कभी नाश नहीं होता हैं;
(आसीत् तमहं शरणं प्रपद्ये)
काल वशतः विनाश प्राप्त हईले,
जब काल में विनाश प्राप्त हो जाय, तब अँधेरा रहता है; लेकिन
यह अँधेरे के उस पार में है
जैसे बृहदारण्यक उपनिषद् लिखा
मैं उस पार में जो भगवान हैं, उनका मैं सहारा ले रहा हूँ।
परम पद
न यस्य देवा ऋषय: पदं विदुर्जन्तु: पुन:
कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमण: स मावतु॥
यथा आकृतिभिः (वेशभूषादिभिः)
विचेष्ठतः (तत्तदाकारेण चेष्टमानस्य)
नटस्य (स्वरूपं न कः अपि जनः जानाति तथा)
देवाः ऋषयः यस्य (भगवतः)
पदम् (स्वरूपं) न विदुः (जानन्ति,
अतः मादृशः) जन्तुः
(अज्ञानाभिभूतः पशुः तत्पदम्)
गन्तुं (ज्ञातुं यथावद्वोद्धुम्)
इरितुं (रक्तुं च) कः पुनः अर्हति?
(न कोहपि इत्यर्थः। अतः) सः दुरत्ययानुक्रमणः
(दुरत्ययं दुर्गमम् अनुक्रमणम् चरितं कथनं
वा यस्य सः दुरवबोधस्वरुपः हरिः)
मा (माम्) अवतु (रक्षतु)
अभी इतने तक बोल दिया
बोलने के बाद
गजेन्द्र के भीतर में दीनता आ गई।
अभी गजेन्द्र कहते हैं
जो जैसा कोई नृत्य करने वाला हो
नृत्य करने वाला हो तो वो
उस प्रकार पोषाक पहनते हैं;
और नृत्य की भी एक किस्म की कला, नियम है;
जिससे सबको आकर्षण कर सकते हैं।
जो उसको जानते हैं,
उसका रस उनको मिलता है।
जो नहीं जनाते हैं, उनको रस मिलता नहीं;
इसी प्रकार भगवान का स्वरुप
देवता ऋषि भी जान नहीं सकते हैं,
देवता भी नहीं जान सकते हैं,
ऋषि मुनि लोग भी नहीं जान सकते हैं,
मैं एक अर्वाचीन जानवर हूँ;
हस्ती योनी में हूँ, एक पशु हूँ
मैं किस प्रकार से उनका महात्म्य वर्णन कर सकता हूँ..!!
दुर्ज्ञेय चरित्र जो हैं, श्रीहरि वो मेरी रक्षा करे;
यह दुर्ज्ञेय है, देवता के लिए भी दुर्ज्ञेय हैं, ऋषि मुनि के लिए दुर्ज्ञेय है
उदाहरण दिया, नृत्य
एक दफे क्या हुआ?
पहले television निकला
जब पहले radio निकला था, ना?
गोलपाड़ा में एक किसीके घर पर.. जिस घर के भीतर में
गाना सब, चारों तरफ से ख़बर आती हैं;
तो सब जाकर वहाँ पर radio सुनते हैं,
अभी तो picture भी दिखाते हैं, television
तब television जब निकला वो दिल्ली में
हमारा.. हम को प्यार करते थे प्रहलाद राय गोयल
वो उनके घर पर था, मॉडल टाउन में
वो television दिखा रहे हैं, सब जाकर वहाँ बैठ गए
मुझे बुलाते हैं
कि यहाँ पर television होगा आप आईए
मैं चिंता किया
मैं बैठने से वो लोग सबको बोलेगा,
महाराज खुद बैठकर television देखे;
मैंने चिंता की; मेरा जाना ठीक नहीं है;
नहीं नहीं जरुरत नहीं हमारी जरुरत नहीं
सारी दुनिया television है मुझे वो देखने की जरुरत नहीं
नहीं नहीं नहीं बहुत सुन्दर है,
आप आकर देखिये,
मैं जाता नहीं, वो जबरदस्ती आकर ले गए
मैं वहाँ बैठा
television दिखा रहे हैं, घर में cinema है
cinema hall में जाना नहीं पड़ेगा
घर में, देखा
पहले दिखाया इंग्लैंड में
कोई मछली पकड़ रहा है,
मछली को मार रहा है, ऐसा कर के
बा!! यह देखने से क्या फायदा है?
मछली को पकड़ रहा है;
यह सब हो गया और सब देखने की जरुरत नहीं
नहीं!! नहीं!! नहीं!! आप थोडा धैर्य धारण कीजिए
धैर्य धारण कीजिए, धैर्य
मैं बैठा, उसके बाद
अभी एक play होगा
एक साधु महात्मा हैं, उनका play
play हुआ, उनके
पीछे में बहुत महिलाएँ हैं, यह हैं
वो लोग एक महिला बहुत उनको श्रद्धा करके आते हैं;
उसको देखा सारा तो मुझे याद नहीं है
वो देखा… दिखाने लगा
उसके बाद वो कहते हैं, फलाने time पर
मैं चतुर्भुज रूप से प्रकट हो जाऊँगा;
उसके बाद समय पर वो चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गया,
बाद में देखा गया
कि दो हाथ तो ठीक हैं और दो हाथ लकड़ी का दो हाथ जोड़ दिया कहते हैं चतुर्भुज हुआ
जब देखा यह धोका है
तब सब कहने लगा, सारे हम लोग सारा
ध्यान दिया इसमें ध्यान देकर बेवकूफ बन गया,
वो दिखाया, मैं बोला हो गया और कितना देखेंगे
बोलते हैं, नहीं!! नहीं!! अभी एक थोड़ी देर
क्या किया? अभी वी वी गिरी आएगा
वी वी गिरी आएगा अभी केरल की कोई एक
नौजवान लड़की नृत्य करेगी
सर्वनाश तब तो मेरे लिए ठीक नहीं है,
मैंने कहा – हो गया हम को जाना पड़ेगा; -नहीं!! नहीं!! आप रहिए
क्यों आप जाते हैं? आप देखिये,
वो भी सिन तैयार हो गया
तैयार होने के बाद वो
अभी बहुत बड़ा थिएटर
hall के माफिक एक सुंदर hall है,
वो सब चेयर में बैठे हैं, वो सब देखने के लिए
वी वी गिरी आ गया, शुरू कर दिया
देखा वो नृत्य करने लगी
और हम तो देखकर ताज्जुब हो गए, आँख को
वो ऐसे घुमाती है, हम तो कभी ऐसा देखा नहीं;
एक आँख ऐसे घुमा रही है, बाबा…
ऐसा जो… जिनका जो नृत्य का रस जो जानते हैं, ना?
उनको अच्छा लगेगा; मुझे तो नृत्य आता ही नहीं,
और ऐसी आँख देखाती है, घुमाती है
हमारा हो गया और सब दर्शन नहीं बहुत हो गया;
इस बार हम जाते हैं, हम चलते हैं;
हम तो उठ गया, भाग गया; देख लिया
दिखाया ऐसे आँखों को इधर-उधर इधर-उधर,आप लोग देखे हैं क्या?
इसी प्रकार और
और कभी.. और एक देखा
हमारे जो बिजली पहेलवान
बिजली पहेलवान, पहले
पहेलवान था, बहुत पहेलवानो के leader थे
तो…
और कोई एक लड़की ले लेगा हिन्दु की तो वो…
दुई-चार को लेकर आएगा ऐसा-ऐसा करके
फिर कोई साधु के संग से उनका दिल बदल गया।
बदलने के बाद वो एकदम जो आते हैं, उनको दान करते हैं
दान करते हैं, कोई आया
कोई महात्मा आए
कहाँ से आए?
वो बोलते हैं, बंगाल से आए
कितने महात्मा आए?
बारा महात्मा आए
अच्छा
पहले महात्मा से मिलेंगे
बारा महात्मा हैं, हम महात्मा से मिलेंगे
हम गुरूजी के पास गए
बहुत बड़ा शेठ मालूम पड़ता है,
लेकिन कभी देखा नहीं है, कभी जानता नहीं है
इतनी बड़ी मूछ है, इतना बड़ा है
आपसे मिलने के लिए चाहते हैं, वो आया
बोलो, क्या करंगे?
-क्या? -क्या है?
आपके पास कितने महात्मा हैं?
-बारा है, -ए बारा कम्बल दो
और पॉकेट में ऐसा किया
रुपया देगा शायद
तब गुरूजी ने कहा
आप रुपया देंगे, हम खाकर हमारा टट्टी कर देंगे।
हमारी वृन्दावन में ज़मीन है,
वो ज़मीन में मंदिर बनाना है
-तो मंदिर बनाएगा -हाँ हाँ मंदिर हो जाएगा
रुपया कितना दिए मालूम नहीं पाँच हजार कि दस हजार क्या दिया मालूम नहीं मैं जानता नहीं?
दिया
-आपके पास plan भेज देंगे -हाँ हाँ भेज दीजिए
अरे!! कोई बात नहीं कुछ भी नहीं ऐसा बोलते हैं
बाल किशन जी थे चावला अमृतसर के
उनके निमंत्रण से हम लोग गए
तब वो
कहते हैं, बिजली पहेलवान हैं
यह बहुत बड़े दाता हैं
यह जो बोले हैं, करेंगे
इसके पास कुछ भी नहीं है, बहुत बड़े दाता हैं;
आप उसके पास
वो plan बना के भेज देना
plan बना के भेज दिया
वो उसको लेकर फिर मंदिर का काम शुरू कर दिए
थोड़ा शुरू करने के बाद बंद
वो स्वयं लिखाई-पढ़ाई नहीं जानते हैं, अपनी सही करते हैं
हम लोग ख़बर लेते हैं, कोई आता नहीं
बाद में फिर हम लोग वहाँ पर गए;
तब उनके साथ मिलने के लिए गए
वो गुरूजी को कहा, आपका काम होगा नहीं
-बोलें क्यों? -आपको बैठना पड़ेगा
सब काम देखना पड़ेगा, उनका कोई manager कुछ इधर-उधर किया है
मायापुर में बहुत…
मेरा यहाँ पर हमारा
नारायण ब्रह्मचारी जो अभी पुरी महाराज हुए
वो रहेगा वो बहुत इमानदार है, वो रहेगा
हम बिच-बिच में देखेगा आप चिंता मत कीजिए
— वह जिम्मेदार हैं? — हाँ
तो वो ऐसा बहुत बड़ा मंदिर बना दिया, विग्रह भी दिया
जो कुछ हैं वो कहने के लिए तो नहीं है; अभी,
वो बिजली पहलवान
जैसे ऐसा मंदिर बनाया ना
ऐसा लोरेन्स रोड (अमृतसर) में मंदिर बनाया; और विग्रह भी प्रतिष्ठा किए
और गुरूजी को कहा, गुरूजी आप आईए
तो उनकी बात सुननी पड़ती है
गुरूजी आए, वहाँ ठहरे
और हमको जो कमरा दिया, सामने में बरामदा है
वो बरामदा में उनका अपना कमरा साधारण सीमेंट का floor है
साधारण सीमेंट, एकदम साधा-सीधा
लेकिन बहुत बड़ा-बड़ा मंदिर बहुत कुछ किया हैं
और जो आते हैं उनको दान करते हैं
किसीको वापस नहीं करता,
वहाँ पर बैठे हैं, साथ में दो-तीन आदमी हैं
वो कलावती गान कर रहे हैं
मैं कलावती गान को तो
कभी शुना नहीं ऐसा
कलावती गान में उनकी रूचि है
हम उनकी खिड़की है, ना? देख रहे हैं
प्रभु तुम बड़े दयालु हो
इसके बाद सुर का जोर
प्रभु तुम बड़े… ए.. ए.. बड़े ए.. ए..
मैं तो सुनके हैरान हो गया
उनको आनंद होता है
वो कलावती है, ना? तो ऐसा
वो भी उनके साथ मिलता है
तो वो, जो कलावती सुर जनते हैं, ना?
उनको उसका रस मिलेगा, हमें तो कुछ रस नहीं मिलेगा; क्या रस है यह?
समझ में नहीं आया