कृष्ण-लीला में घोष बंधु, वासुदेव घोष, माधव घोष और गोविंद घोष अपने वास्तविक रूपों में सखी के रूप में विशाखा-सखी के आनुगत्य में युगल की सेवा के लिए गीत गाते हैं। वासु घोष, माधव घोष और गोविंद घोष क्रमशः कृष्ण-लीला में कलावती, रसोल्लासा और गुणतुंगा हैं। गौर-लीला में, गौर-नित्यानंद परमानंद में नृत्य करते हैं, जब गोविंद घोष और वासु घोष कीर्तन करते हैं।
गोविन्द घोष ने लगातार तीन दिन(72 घण्टे) तक कीर्तन किया जिसमें वक्रेश्वर पण्डित ने नृत्य किया था। इतने लम्बे समय तक गान करने के बाद भी उनकी और कीर्तन करने की इच्छा थी। वक्रेश्वर पण्डित लगातार नृत्य कर रहे थे, उनके सामने सब कीर्तन नहीं कर सकते, किन्तु गोविन्द घोष ने लगातार कीर्तन किया था। (पुरी में रथयात्रा के समय सात-मण्डलियों में से चौथी मण्डली में) मूल कीर्तनीया थे—गोविन्द घोष। वासुघोष और माधव घोष (दोहार करने वाले थे।)
कृष्णलीला में वे विशाखा सखी के अन्तर्गत उनके निर्देशानुसार गान करते हैं। इस गौरलीला में जब गोविन्द घोष-वासुघोष गान करते हैं, स्वयं गौर-नित्यानन्द उनके कीर्तन में उद्दंड नृत्य करते हैं।
श्रीमन्महाप्रभु के निर्देशानुसार श्रीगोविन्द घोष जी ने गृहस्थाश्रम स्वीकार किया था। जब उनकी स्त्री व पुत्र ने स्वधाम गमन किया तो उन्हें चिन्ता हुई कि उनकी मृत्यु के बाद उनका पिण्ड कौन देगा। उनके घर में श्रीमन्महाप्रभु द्वारा दी हुई शीला से श्रीगोपीनाथ विग्रह प्रकटित हुए थे। गोपीनाथ ने उन्हें कहा—मैं तुम्हारा पिण्ड दान करूँगा। आज भी श्रीगोविन्द घोष जी की अप्रकट तिथि में श्रीगोपीनाथ जी पिण्डदान करते हैं।
भारत में मृत व्यक्ति की आत्मा के कल्याण के लिए पिण्ड दान करने की व्यवस्था है। आत्मा की कभी मृत्यु नहीं होती। इसलिए व्यक्ति के मरने पर उसकी पत्नी अथवा पुत्र उसका पिण्डदान करते हैं। पाश्चात्य देशों में यह विधि प्रचलित नहीं है किन्तु भारत में यह प्रथा अभी भी देखी जाती है।