महाप्रभु का श्रीधर पण्डित से झगड़ा होता था। श्रीधर पण्डित कृष्ण लीला में द्वादश गोपालों में अन्यतम हैं। जब श्रीकृष्ण गोचारण के लिए जाते हैं तो उनकी सखाओं के साथ नाना प्रकार की लीलाएँ होती हैं—कभी कृष्ण के साथ खेलते हैं, कभी लड़ते हैं, कभी कन्धे पर चढ़ते हैं। फिर थक जाते है तो सेवा करते हैं, हवा करते हैं, चरण दबाते हैं बहुत प्रेम है सबका| उनमें से एक हैं श्रीधर पण्डित। उन्होंने महाप्रभु की लीलाओं में एक गरीब ब्राह्मण की लीला की, जिन्होंने अपने केले के बगीचे के फल,फूल को बेचकर अपना जीवन यापन किया। श्रीधर केले के फूल और थोर (केले के पेड़ के भीतर का डंडा जिससे बंगाल में सब्जी बनती है) को बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं। वे इस तरह से जो भी थोड़ा पैसा कमाते थे उसका आधा हिस्सा गंगापूजा पर खर्च करते थे, दूसरा आधा अपनी आवश्यकताओं पर खर्च करते थे। युधिष्ठिर की तरह, वे महा-सत्यवादी थे और सदैव अपने द्वारा बेची गई वस्तुओं की वास्तविक कीमत बताते थे। नवद्वीप में हर कोई यह जानता था और इसलिए उनके साथ सौदेबाजी नहीं करेगा। किन्तु महाप्रभु श्रीधर के पास आकर श्रीधर के बताए मूल्य का आधा देकर उनसे थोर, केला, मोचा ले जाने के लिए खीचातानी,करके प्रतिदिन चार दंड (डेढ़ घंटा) उनसे झगडा करते। प्रतिदिन वे एक-डेढ़ घंटे तक बहस करते थे; तब अंत में महाप्रभु मांगे गए मूल्य का केवल आधा छोड़कर द्रव्य लेकर चले जाते। उनके कलह में भी आनंद है। बाहरिक रूप से झगडा लगता है किन्तु महाप्रभु की सौम्य मूर्ति का दर्शन करके वे आनंद प्राप्त करते थे। अंत में श्रीधर बोलते आप जह्ग्दा करते हैं, मैं बिना मूल्य ही आपको द्रव्य दे दूंगा’श्रीधर सदैव सत्य बोलते थे और प्रत्येक वस्तु की वास्तविक कीमत लेते थे, किन्तु भगवान फिर भी उनके द्वारा मांगी गई राशि का आधा ही देते और फिर ले लेते। श्रीधर उछल कर उस वस्तु को पकड़ लेते, उसे वापस लेने का प्रयास करते, यहाँ तक कि भगवान को धक्का देते। महाप्रभु बोलते तुम प्रतिदिन गंगापुजा के लिए आधा पैसा खर्च करते हो, गंगा का पति तो मैं हूँ, उसको पैसा देते हो, मझे नहीं दोगे? श्रीधर बोलते ठीक है जैसा आप चाहे आपको दे देंगे।
जिस दिन महाप्रभु ने चांद काजी के उद्धार की लीला के बाद को छुड़ाया श्रीधर पण्डित के घर तक संकीर्तन और नृत्य करते करते श्रीधर आँगन में पहुंचे। महाप्रभु ने पानी पिने कि इच्छा प्रकट की। श्रीधर तो गरीब थे उनके पास लोहे का एक पुराना टूटा हुआ पात्र था। महाप्रभु ने स्वयं श्रीधर के घर में जल से भरे पुराने लोहे के बर्तन को उठाकर परम तृप्ति के साथ पानी पिया। जब श्रीधर ने महाप्रभु को ऐसा करते देखा तो वे जोर-जोर से रोने लगे और बेहोश हो गए।
भक्त का पानी पीकर भक्ति प्राप्त कर सकते हैं-महाप्रभु जी ने आचरण करके शिक्षा दी।वे दिखाना चाहते थे कि एक भक्त के पुराने लोहे के बर्तन का पानी भी भगवान के निकट अमृत के समान व् परम आदरर्णीय होता है। इतनी दुकाने हैं किन्तु प्रभु श्रीधर के पास जाकर उनसे झगड़ा कर द्रव्य खरीदते थे,
भक्तेर द्रव्य प्रभु काड़ि-काड़ि खाय ।
अभक्तेर द्रव्य पाने उलटि ना चाय ॥
विदुर और विदुर पत्नी से छिनकर खाया किन्तु दुर्योधन के द्रव्य स्वीकार ही नहीं किए। भगवान् केवल भक्त का द्रव्य स्वीकार करते हैं। श्रीधर अपने घर में सारी रात जाग कर उच्च स्वर में हरिनाम करते थे, जिससे भक्त तो सुखी होते थे परन्तु अभक्त नींद में व्यवधान पहुँचने पर नाना प्रकार के कटु-वाक्यों द्वारा उनकी भर्त्सना करते। संकीर्तन ही एकमात्र उपाय है, चेतो-दर्पण मार्जनम्..महाप्रभु की शिक्षा है। संकीर्तन से सब कुछ प्राप्त हो जाएगा।
महाप्रभु ने महाप्रकाश लीला के समय श्रीधर को अपना ऐश्वर्य रूप दिखाने के लिए बुलाया, जब वे श्रीवास आंगन पहुंचे, तो वे महाप्रभु जी की अपूर्व ऐश्वर्य मूर्ति के दर्शन करके बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़े। महाप्रभु ने उन्हें अष्टसिद्धि रूप वर देना चाहते थे, परन्तु श्रीधर ने कहा, “जो प्रभु प्रतिदिन मेरे साथ कलह करते थे, जो मेरे द्रव्य खींचातानी करके मुझसे छिनकर ले जाते थे, जिन्होंने मुझे इसप्रकार सेवा का अवसर दिया, वही प्रभु जन्म-जन्म के लिए मेरे स्वामी बन जाए और उनके पाद्पदम की सेवा प्रदान करें।