आज अधिवास तिथि है। कल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र की आविर्भाव तिथि है। राम नवमी तिथि है। कल विशेष अनुष्ठान है। सुबह 6.30 बजे नगर संकीर्तन निकलेगा। उसके बाद प्रातः 8:30 बजे तक वापस आकर यहाँ सब कीर्तन के लिए बैठेंगे। तत्पश्चात् रामचन्द्र की कृपा प्रार्थना करेंगे एवं गुरु पूजा होगी। भगवान की पूजा से पहले गुरु पूजा होती है। हमारे गुरु जी की पूजा होगी। गुरुजी की कृपा के बिना भगवान की कृपा नहीं होती। (अनेक वक्ताओं द्वारा) भाषण भी होगा। उसके बाद दोपहर को रामचन्द्र की पूजा, भोग-राग, आरती इत्यादि होगी। भोगारती के बाद महोत्सव होगा।
जैसे एकादशी में फल-मूल (अनुकल्प) प्रसाद होता है उसी प्रकार कल एकादशी-विहित प्रसाद होगा। किन्तु भगवान को सब प्रकार का भोग लगेगा। पुजारी पहले ही भक्तों को भोग में लगनेवाली सामग्रियों की सूची दे देगा। भगवान के भोग में कमी नहीं होगी। उसे बाद में वितरण किया जाएगा अथवा जो लोग आविर्भाव तिथि में महोत्सव करते हैं, उन्हें दिया जाएगा। हम लोग उस दिन नहीं खाएँगे। उसके अगले दिन ही पाएँगे क्योंकि हमारे गुरुजी ने इस तिथि में व्रत किया इसलिए हम भी व्रत करेंगे।
अधिवास तिथि का मतलब क्या होता है? जो विशेष तिथि है, उसके पूर्व दिन को अधिवास कहते हैं। अर्थात् जिस तिथि में भगवान का आविर्भाव हुआ, उस तिथि में क्या-क्या करना है, इसके लिए प्रस्तुति लेनी पड़ती है। पहले से तैयार होना होता है। जिसे प्राग-प्रस्तुति कहते हैं।
Preliminary function before a Solemn Ceremony is called Adhivaas. It means to prepare ourselves. Tomorrow Supreme Lord will appear so that Supreme Lord can appear in our heart, we have to prepare ourself. In this way, we can get the grace of Maryada Purushottam Bhagvan Ramchandra.
यह होता है अधिवास का तात्पर्य। आज प्रस्तुत होकर रहना पड़ेगा। कल भगवान किसी ना किसी पर कृपा करेंगे। भगवान की आविर्भाव लीला नित्य है। भगवान अयोध्या धाम में त्रेतायुग में आविर्भूत हुए। उनका आविर्भाव इतने दिन पहले हुआ अब नहीं होगा—ऐसा नहीं है। भगवान की आविर्भाव लीला नित्य है। भगवान अनन्त हैं, उनके ब्रह्माण्ड भी अनन्त हैं।
अभी इस ब्रह्माण्ड में भगवान का आविर्भाव हुआ; आविर्भाव होने के बाद शैशव लीला प्रारम्भ हुई। साथ ही साथ किसी अन्य ब्रह्माण्ड में आविर्भाव लीला हो गई। यहाँ पर शैशव लीला समाप्त हई, साथ ही साथ किसी अन्य स्थान पर शैशव लीला प्रारम्भ हो गई। सब लीलाएँ निरन्तर चलती रहेंगी। अभी भी किसी न किसी ब्रह्माण्ड में भगवान का आविर्भाव हो रहा है। हमें नहीं पता होता, इस ब्रह्माण्ड में, इस भारतवर्ष में प्रकट रूप से नहीं होने पर भी किसी अन्य ब्रह्माण्ड में आज आविर्भाव होगा। इसलिए इसे नित्यलीला कहते हैं। जब सती ने (अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में) जाने के लिए इच्छा की तब महादेव उन्हें जाने के लिए मना करते हुए कहते हैं—
सत्त्वं विशुद्धं वसुदेवशब्दितं
यदीयते तत्र पुमानपावृत:।
सत्त्वे च तस्मिन्भगवान्वासुदेवो
ह्यधोक्षजो मे नमसा विधीयते॥
(श्रीमद्भागवतम् 4.3.23)
उन्होंने सती को कहा कि तुम वहाँ जा रही हो, तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नहीं होगा। वासुदेव कृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। यह वसुदेव कौन हैं? वे विशुद्ध सत्त्व हैं, मिश्रसत्त्व नहीं हैं। रजोगुण से सृष्टि, सत्त्वगुण से संरक्षण तथा तमोगुण से नाश होता है—ऐसा विशुद्ध सत्त्व में नहीं होता। उनकी तीन शक्तियाँ हैं—संवित्, सन्धिनी तथा ह्लादिनी। संवित् शक्ति से नित्य एवं चिन्मय धाम है। उस चिन्मय धाम में भगवान का आविर्भाव होता है। विशुद्ध अन्तःकरण निर्गुण होता है। गुणमय अन्तःकरण बद्धजीव का होता है। भगवान अप्राकृत हैं, उनका धाम भी अप्राकृत है।
‘सत्त्वं विशुद्धं वसुदेवशब्दितं’—विशुद्ध सत्त्व में, निर्गुण धाम में, पवित्र ह्रदय में भगवान का आविर्भाव होता है। उसी का नाम वसुदेव है। भगवान वहाँ प्रकट हो जाते हैं।
भगवान अवतीर्ण होते हैं। भगवान को माया की कृपा लेकर आना नहीं पड़ता। क्या राष्ट्रपति को जेलखाने में जाने के लिए अपनी पोशाक बदलकर जाना पड़ता है? कैदी को कैदी वाली पोशाक पहनकर जाना पड़ता है। परन्तु राष्ट्रपति अपनी पोशाक पहनकर ही वहाँ जाते हैं। गवर्नर, डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट अथवा जेलर, ये सब भी अपनी पोशाक में ही जाते हैं। उन्हें जेलखाने की पोशाक पहननी नहीं पड़ती। इसलिए भगवान जब इस कैदखाने (अर्थात् संसार) में आते हैं, वे अपने स्वरूप में ही आते हैं। यह कैदखाना तो उनकी बहिरंगा शक्ति से ही बना है। वे कहाँ अवतीर्ण होते हैं? भगवान निर्गुण हैं, इसलिए वे जहाँ अवतीर्ण होते हैं, वह स्थान भी निर्गुण है। भक्त भी निर्गुण हैं। इसलिए उस शुद्ध अन्तःकरण (विशुद्ध भूमिका) को वसुदेव कहते हैं । भगवान अधोक्षज हैं। ‘अधोकृत इन्द्रियज्ञान येन सः’—अर्थात् इन्द्रियज्ञान को नीचे रखकर जिनकी स्थिति है।
इसका अर्थ अंग्रेज़ी में किया गया है।
Sometimes meaning or expression is better in English. Our Param Gurudev(Srila Bhakti Siddhant Saraswati Thakur Prabhupad) used to translate this. One who is capable to reserve the right of not being exposed to human senses, gross and subtle. You cannot comprehend God through material sense organs or subtle sense organs (mind, intelligence and perverted ego). He is beyond comprehension.
(कई बार कोई शब्द अर्थ अंग्रेज़ी भाषा में अधिक स्पष्ट हो पाता है। हमारे परमगुरुदेव (श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद) इसका (अधोक्षज के) अनुवाद करते हुए कहते थे कि अधोक्षज उन्हें कहा जाता है जिन्हें जड़ इन्द्रियों तथा सूक्ष्म इन्द्रियों द्वारा जाना नहीं जा सकता।}
‘नमसा विधीयते’—अपना अंतःकरण अर्पित करके, उनके चरण पकड़ने से वे प्राप्त होते हैं। अथवा जब नमस्कार करके उनकी कृपा मिलेगी तब वे प्राप्त होंगे।
आज हमें अपने हृदय को साफ करना होगा, वैकुण्ठ बनाना होगा, निर्गुण भूमिका बनानी होगी ताकि कल रामचन्द्र हृदय में प्रकट हो जाएँ। जैसे चैतन्य महाप्रभु ने गुण्डिचा मन्दिर मार्जन किया। जगन्नाथ गुण्डिचा मन्दिर अर्थात् वृन्दावन में जाएँगे। जगन्नाथ कौन हैं? नन्दनन्दन कृष्ण। कृष्ण को खींचकर ले जा रहे हैं। पहले बलदेव। पहले बलदेव की कृपा, फिर सुभद्रा देवी जो भक्ति है फिर जगन्नाथ। पहले जगन्नाथ का दर्शन नहीं होता है। महाप्रभु ने भक्तों को लेकर गुण्डिचा मन्दिर मार्जन किया। उन्होंने कहा, “यहाँ पर जितने कंकड़, धूल, तृण है, सब साफ करो।”
कर्म, योग, ज्ञान की अभिलाष रूपी धूलिकण तथा विषय रूपी कंकड़ आदि सब अभिलाष रहे तो भगवान हृदय में नहीं बैठेगे।
अन्याभिलाषिता-शून्यं ज्ञान-कर्माद्यनावृतम्।
आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा॥
(भक्तिरसामृतसिन्धु 1.1.11)
जब वेद निषिद्ध अभिलाष, पाप करने की प्रवृत्ति रहे तब भगवान हृदय मैं नहीं बैठेंगे। दुर्गन्धयुक्त स्थान पर भगवान नहीं बैठते। भगवान पवित्र स्थान पर ही अवतरित होते हैं। इसलिए अपने हृदय को ठीक करो। आज स्वयं को तैयार करो, अपने हृदय को साफ करो। इतना ही नहीं, यदि वेद-प्रसिद्ध अभिलाष भी यदि भगवान के लिए ना हो, तब भी भगवान नहीं आएँगे। Absolute is for Himself and by Himself. (पूर्ण वस्तु भगवान अपने लिए हैं और अपने द्वारा हैं।) कर्म, यज्ञ इत्यादि द्वारा स्वर्ग आदि सुख प्राप्त होगा किन्तु जब पुण्य क्षीण हो जाएँगे तो पुनः इस जगत में आना पड़ेगा, नाशवान फल मिलेगा। ज्ञानी लोग नाशवान फल नहीं लेते, ब्रह्म-सायुज्य मुक्ति चाहते हैं। किन्तु अपनी सत्ता को लय करने से भक्ति नष्ट हो जाएगी। भगवान प्राप्त नहीं होंगे। योगी अपने आप को परमात्मा में लय करते हैं। यह सब भजन में प्रतिबन्धक हैं, भजन के लिए कंकड़ सदृश हैं। इस सबको उठाकर एकदम मन्दिर के बाहर फेंक दो। उन सब को हृदय मन्दिर की किसी भी जगह पर मत रखो, नहीं तो कल रामचन्द्र नहीं आएँगे। तब भी वे किसी न किसी पर तो कृपा अवश्य करेंगे क्योंकि उनकी लीला नित्य है। वे किसपर कृपा करेंगे? जिसका हृदय निर्मल है, उसके हृदय में भगवान रामचन्द्र का आविर्भाव होगा, अवश्य होगा क्योंकि नित्यलीला है। भक्तों के हृदय में ही आविर्भाव होगा।
आज के दिन संकीर्त्तन करने का नियम होता है। इसके लिए श्रीमन्महाप्रभु ने व्यवस्था की (स्वयं आचरण करके शिक्षा दी)। महाप्रभु ने गुण्डिचा में सभी भक्तों से कहा—जाओ झाड़ू ले आओ, घड़े लाओ, पानी ले आओ। केवल झाड़ू देने से पर्याप्त नहीं होगा। कंकड़ उठाने से भी नहीं होगा। कोई दाग अथवा चिह्न हो तो उसे पानी से धोकर, कपड़े से घिसकर हटाओ। सब पानी देते हुए भी ‘कृष्ण! कृष्ण!’ कर रहे हैं। भगवान का नाम लेते हुए ही सबने गुण्डिचा मार्जन किया। नाम करते-करते ही चित्त रूपी दर्पण मार्जित होगा।
चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्निनिर्वापणं
श्रेयःकैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्।
आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं
सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्णसंकीर्तनम् ॥
(श्रीशिक्षाष्टकम्-1)
सप्त सिद्धि, समस्त सिद्धियाँ श्रीनामसंकीर्तन से प्राप्त हो जाएँगी, हृदय निर्मल हो जाएगा। निरपराध होकर नाम करने से समस्त सिद्धियाँ लाभ होंगी।। जब ऐसा नहीं हुआ तो समझना होगा कि नाम के चरण में अपराध है। भगवान के वाक्यों में भूल नहीं है। सब से गुरुतर नामापराध है—साधु निन्दा, गुरु अवज्ञा।
किसी की निन्दा करने की क्या आवश्यकता है? जो निन्दा करता है वह गुरु की अथवा किसी की भी निन्दा कर सकता है।
Why should you practice this sort of danger by vilifying others? This nature is not good. Why give importance to this? Stop this. You should see your own defects and see qualities in others. This sort of habit of seeing defects in others and qualities in yourself is the greatest impediment to going to Vrindavan. You cannot go there with this sort of mentality. Any moment we may die. What will go with us? Why do we spend time speaking bad against anybody? What benefit shall we get?
जब हम सबके गुण देखेंगे तो वैष्णव के अन्दर तो दोष है ही नहीं, तो स्वाभाविक ही उनकी कृपा से उन में गुण देखेंगे। उनके गुण प्रकाशित हो जाएँगे।
इसलिए आज की तिथि में नाम संकीर्तन करना चाहिए। यहाँ कल नगर संकीर्त्तन होगा किन्तु आज से करना चाहिए था क्योंकि आज अधिवास है।
In Adhivaas, we should purify the heart and make it ready so that Krsna or Ramji will come. Ram ji is the Supreme Lord in the ethical form to teach lessons about morality to remove 16.43?
This sort of pastimes He has done.
जितनी प्रकार की दुर्नीति है, उसे हटाने के लिए भगवान आए। जब भगवान हृदय में आएँगे तब हमारे अन्दर जितनी भी प्रकार की दुर्गन्ध है, सब चली जाएगी। हमारे हृदय में किसी के लिए भी द्वेष भावना नहीं रहनी चाहिए। हमें उसे अपने हृदय से निकाल देना चाहिए। जिस प्रकार ध्रुव जी की माता ने उन्हें कहा कि तुम अपनी विमाता के ऊपर क्रोधित होते हो। किसी के ऊपर क्रोध करना छोड़ दो। तुम स्वयं ही अपने दुःख का कारण हो। तुम्हारी सौतेली माता तुम्हारे दुःख का कारण नहीं है। साथ-साथ में ही ध्रुव ने अपने हृदय से सब प्रकार की द्वेष भावनाएँ बाहर निकाल दीं और कृष्ण नाम उच्चारण करना प्रारम्भ कर दिया। He has removed all (kinds of) hostile mentality towards anybody in this world, cleared the heart immediately and started chanting the names of Krishna, name of Narayan.
कहा पद्मपलाशलोचन-हरि…..
Without interaction, without any mental diversion thinking that there is no one enemy to me, that I am getting fruits due to my own karma and people are only instrumental but not the cause. I am the cause. He effaced everything from His heart. By doing this, he got the Grace of the Lord. If the Grace of the Lord is the only aim, we should also follow the idol of Dhruva. We should accept it immediately. Why should we not accept? Any moment we might die, what will go with us? Why should we speak ill about others? Devotees sometimes speak ill about someone out of affection, out of good but not out of animosity or envy. Out of malice, they don’t speak anything. They speak for the eternal good. Even their curse is for the good. By giving curse also, they give eternal benefit to them. They don’t have any other duties.
(ध्रुव ने इस प्रकार सोचा—कोई भी मेरा शत्रु नहीं है। मैं अपने कर्मों का ही फल भोग रहा हूँ। लोग केवल निमित्त मात्र हैं, कारण नहीं। इनका (कर्मफल) कारण मैं ही हूँ। उन्होंने अपने हृदय से समस्त दुर्भावनाएं निकल दी, ऐसा करने से उन्हें भगवान की कृपा प्राप्त हुई। यदि भगवद्कृपा-प्राप्ति ही हमारा उद्देश्य है तब हमें भी ध्रुव के आदर्श का अनुसरण करना चाहिए। हमें शीघ्र ही उसे ग्रहण करना चाहिए। किसी भी क्षण हमारी मृत्यु हो सकती है। हमारे साथ क्या जाएगा? हम दूसरों के बारे में बुरा क्यों कहें? कभी-कभी भक्त स्नेहवश किसी के मंगल के उद्देश्य से उसके दोष दिखाते हैं। वे ईर्ष्या अथवा द्वेष की भावना से ऐसा नहीं करते अपितु उनके मंगल के लिए करते हैं। उनका दण्ड देना भी मंगल के लिए है। दण्ड देकर भी वे कृपा ही करते हैं। उनका कोई अन्य कोई उद्देश्य है ही नहीं।)