आज मध्वाचार्य जी की आविर्भाव तिथि है, मध्वाचार्य साधारण व्यक्ति नहीं हैं। मध्वाचार्य हनुमान का अवतार हैं। जो त्रेता युग में हनुमान हैं, द्वापर युग में भीम हैं और वे ही कलियुग में मध्वाचार्य हैं। मध्वाचार्य जी की विचारधारा के अन्तर्गत व्यक्ति कहते हैं—“रामकृष्ण वेदव्यासात्मक लक्ष्मी हयग्रीवाय नमः।” हनुमान के आराध्य हैं राम, भीम के आराध्य हैं कृष्ण और मध्वाचार्य के आराध्य हैं वेदव्यास मुनि। वेदव्यास मुनि के साक्षात् शिष्य हैं। मध्वाचार्य साक्षात् हनुमान के अवतार, भीम के अवतार थे,वे महाबलिष्ठ थे।
उनके पिताजी का नाम मध्वगेह श्री नारायण भट्ट और माताजी का नाम वेदवती देवी था। अरब समुद्र के तट से तीन मील पूर्व की ओर उडुपी है, उडुपी से प्रायः 8 मील दूरी पर, पापनाशिनी नदी के तीर पर विमानगिरि पर्वत है वहाँ से १ मील दूरी पर पाजका क्षेत्र में उनका आविर्भाव हुआ।
एक बार अरब तट में उन्होंने देखा कि एक जहाज फंस गया था। उस समय नाँव मशीन से नहीं चलती थी, कपड़े के पाल की सहायता से चलती थी। तब उस नाँव के यात्रियों ने देखा कि एक महा साधु बैठा है, दूर से वे लोग मध्वाचार्य जी को प्रार्थना करते हैं कि हम लोग बहुत मुसीबत में हैं, आप कृपा करें। मध्वाचार्य ने दूर से ही मंत्र जप करके कुछ ऐसी मुद्रा की, जहाज चलने लगा। उन लोगों को बहुत आनंद हुआ। तब उन लोगों ने मध्वाचार्य जी को कहा कि हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? तब उन्होंने उन नाँव पर सवार लोगों से गोपी-चन्दन तिलक लेना स्वीकार किया। यात्रिओं ने कहा आप जितना चाहे उतना तिलक ले जा सकते हैं। किन्तु वे तो भीम है न, इसलिए सम्पूर्ण तिलक पहाड़ की भांति उठा लिया। उठाकर उडुपी के पास लाकर रखा। जब वह तिलक का पहाड़ टूटकर गिरा, उसमें से दधिमंथन-दण्ड-युक्त नर्तक गोपाल विग्रह निकला। पर्याय क्रम से उन विग्रह की सेवा होती है।
मध्वाचार्य जी ने अच्युतप्रेक्ष से संन्यास लिया। संन्यास के बाद उनका नाम पूर्णप्रज्ञतीर्थ हुआ। अभिषेक के बाद उनका नाम आनंदतीर्थ हुआ। उसके बाद जब उन्होंने आचार्यत्व प्रकाशित किया, तब वे मध्वाचार्य नाम से विख्यात हुए। 12 साल की उम्र में उन्होंने संन्यास लिया।
बाल्य-कल में एक दिन वे अपने पिताजी से कहते हैं कि मैं शंकराचार्य जी के केवलाद्वैतवाद का खण्डन करूँगा। उस समय सब लोगों की शंकराचार्य के ऊपर श्रद्धा थी। उनके पिता ने कहा कि तुम्हारा इसप्रकार घमण्ड ठीक नहीं है। शंकराचार्य तो सबके श्रद्धा-पात्र हैं। उन्होंने श्रीविष्णु के आदेश से मायावाद प्रचार किया।
मायावादम् असच्छास्त्रं प्रच्छन्नं बुद्ध उच्यते।
मयैव कथितं देवी कलौ ब्राह्मण रूपिणा।।
(पद्मपुराण 6.236.7-11)
शिवजी पार्वतीजी से कहतें हैं, “कलियुग में मैं ब्राह्मण के रूप में आऊंगा और मायावाद का प्रचार करूँगा, जो प्रच्छन्न बुद्ध-वाद कहा जाएगा।”
शंकराचार्य ने यह भगवान की आज्ञा से किया, सृष्टि वर्धन करने के लिए मायावाद प्रचार किया। तो उनके पिताजी ने कहा कि तुम इसप्रकार का घमण्ड मत करो। मेरी सूखी लाठी जैसे पेड़ होकर फल नहीं दे सकती, तुम भी उसी प्रकार कभी उनका मायावाद खण्डन नहीं कर सकते। मध्वाचार्य कहते हैं कि आप की लाठी यदि पेड़ होकर फल दे तो क्या आप विश्वास करेंगे?
पिताजी ने कहा—हाँ। मध्वाचार्य ने लाठी को लिया और कहा–हे लाठी, मैं यदि मायावाद विचार को खण्डन कर सकूँ, आप इसी क्षण वृक्ष रूप से प्रकट हो जाओ और फल दो। वह लाठी वृक्ष बन गई और फल दिया। तब उनके पिता ने समझ लिया कि यह तो साधारण व्यक्ति नहीं है।
ससम्प्रदायविहीना ये मन्त्रास्ते विफल मताः
अथौ कलौ भविष्यन्ति चत्वरासम्प्रदयायेन
श्री, ब्रह्म, रूद्र सनक वैष्णवा क्षितिपावना। (पद्मपुराण)
इसलिए इस कलियुग में और कोई उपाय नहीं है, संप्रदाय में आने हुए गुरु से मंत्र ग्रहण किए बिना शतकल्प काल तक साधन करने से भी कोई फल प्राप्त नहीं होगा, वे लोग अप्रकृत जगत से, ऊपर से आते हैं। हमारे परम गुरुजी ने इसमें बहुत आदर्श की बात दिखाई। जब भी कुछ हरि कथा बोलने गए, पहले गुरु परंपरा को प्रणाम किया। जब कृपा उधर से नहीं आएगी, तो कथा होगी नहीं। उनके प्राग्बंध में लिखा है कि यद्यपि महाप्रभु सिद्ध भूमिका में हैं, किन्तु सम्प्रदाय बिना मंत्र निष्फल है। इसलिए यह शिक्षा देने के लिए उन्होंने मध्वाचार्य सम्प्रदाय को ग्रहण किया। ‘जीव ब्रह्मैव न परम्’—इस विचार का खण्डन किया। जब तक यह विचार रहे कि जीव ही भगवान है, वहाँ पर भक्ति हो ही नहीं सकती। मध्वाचार्य जी ने मायावाद मत में 100 दोष दिखा दिए, और मायावाद-शतदु। इसलिए महाप्रभु ने मध्वाचार्य सम्प्रदाय को स्वीकार किया। सभी वैष्णव इस सम्प्रदाय को मानते हैं। आराध्य नित्य, आराधक नित्य, आराधना नित्य।
ऋग्वेद मंत्र का उच्चारण करके, उनको समझाया। श्री सम्प्रदाय का होता है रामानुज, ब्रह्म सम्प्रदाय का मध्वाचार्य, रुद्र सम्प्रदाय का विष्णुस्वामी, वल्लभाचार्य और सनक सम्प्रदाय निंबार्क आचार्य जी का होता है। मन्त्र सम्प्रदाय से आते हैं। सम्प्रदाय के बिना मन्त्र निष्फल हो जाएगा।
आज मध्वाचार्य जी की आविर्भाव तिथि है, वे मूल गुरु हैं। वे क्या नहीं कर सकते? महाशक्तिशाली हैं। मायावाद विचार, जो भक्ति के विरूद्ध है, वे उससे हम लोगों का उद्धार करें, शुद्ध भक्ति प्रदान करें। इसलिए आज की तिथि में हम मध्वाचार्य जी के पादपद्मों में अनन्त कोटि साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करके उनकी कृपा प्रार्थना करेंगे।
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