14. भक्ति के सूक्ष्म विचार
18. परलोक गमन के पश्चात् की कर्त्तव्यपरायणता का बोध
17. वैष्णव-सेवा से ही जीवन – कृतार्थ
16. अपने गुरुभ्राताओं की आविर्भाव तिथि पर उनका स्मरण, सम्मान और सेवा करना
15. अपने गुरुभ्राताओं के विश्वास के सुपात्र
14. गुरुभ्राता को आश्रय प्रदान
13. विष्णु और वैष्णवों की सेवा में कृपणता का कोई स्थान नहीं
12. बिना विलम्ब किए वैष्णवों की सेवा में नियुक्त होना
11. वैष्णव सेवा अत्यधिक गुरुत्वपूर्ण
10. एक गुरुभ्राता का भयानक विपत्ति से उद्धार
9. निष्पक्ष और कुशल मध्यस्थता – कर्त्ता
8. सभी वस्तुओं को वैष्णवसेवा के उपकरण के रूप में देखना
7. वैष्णव- सेवा गुरु- सेवा से अभिन्न
6. उचित पद्धति के अवलम्बन से वैष्णवों के हृदय को जानना सम्भवपर
5. अपने गुरुभ्राताओं की सेवा करने की उत्कण्ठा
4. वैष्णव मर्यादा का अद्भुत आदर्श
3. वैष्णव सेवा में कृपणता मत करना
2. अपने गुरुभ्राताओं की स्वयं निष्कपट रूप से सेवा करना
1. वैष्णवों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा कर्त्तव्य